Saturday, February 27, 2021

जॉब मार्केट और ऑनलाइन सिस्टम

                                 - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

कोविड-19 वैश्विक महामारी ने अध्ययन-अध्यापन से लेकर जॉब मार्केट तक को किसी-न-किसी रूप में कम या ज्यादा प्रभावित किया है. ऑनलाइन क्लासेज से लेकर ऑनलाइन जॉब सेलेक्शन तक बहुत सारे नए सिस्टम से छात्र-छात्राएं परिचित हो रहे हैं. विशेषकर जॉब मार्केट की बात करें तो अब ऑनलाइन जॉब सर्च, आवेदन प्रस्तुति, लिखित परीक्षाएं, इंटरव्यू आदि इस सिस्टम का हिस्सा हैं और अनुमानतः कोरोना काल की समाप्ति के बाद भी ये सिस्टम कमोबेश जारी रहेंगे. कई सर्वेक्षणों में यह बात साफ तौर पर सामने आई है कि जॉब मार्केट में ऑनलाइन सिस्टम को  नियोक्ता और अभ्यर्थी दोनों ही पसंद कर रहे हैं. इसके कई कारण हैं. महामारी के मौजूदा दौर में तो खासकर स्वास्थ्य की दृष्टि से यह सुरक्षित है और कम खर्चीला भी. तुलनात्मक रूप से यह सिस्टम सुविधाजनक, पारदर्शी  और लचीला भी है.
वर्क फ्रॉम होम यानी घर से काम करने की नई कार्य संस्कृति ने भी ऑनलाइन हायरिंग और ट्रेनिंग को स्थापित करने में बड़ी भूमिका अदा की है. अब सवाल यह है कि बदले हुए परिदृश्य के अनुरूप छात्र-छात्राएं खुद में कौन-कौन  से बदलाव सुनिश्चित करें जिससे कि जॉब मार्केट में उन्हें सफलता हासिल हो सके. यकीनन कुछ मूलभूत बातों को जानना-समझना-सीखना लाभदायक होगा.


सबसे पहले अपना ब्रीफ सीवी या प्रोफाइल बना लें, जिसमें आपकी शैक्षणिक योग्यता, हॉबी, स्किल आदि की सटीक तथा यथासंभव प्रामाणिक जानकारी मौजूद हो. इसमें गलत या अधूरी जानकारी कभी  मत दें, क्यों कि इनके सत्यापन के समय आपकी लापरवाही, चालाकी या झूठ तुरत पकड़ी जाएगी.
कहने का मतलब, जानकारी वही दें जो सही हो और जिसके विषय में आप आत्मविश्वास के साथ उत्तर दे सकें. नियोक्ता या इंटरव्यू बोर्ड को धूर्तता से प्रभावित करने की नादानी या हिमाकत  कभी न करें. वे सारे लोग बड़े अनुभवी और पारखी होते हैं. उनके सामने सत्यता, सरलता, साफगोई और शालीनता से पेश आना ही सदा फायदेमंद साबित होता है. एक बात और. सीवी या प्रोफाइल में दी गई जानकारी से संबंधित आवश्यक डॉक्यूमेंट जैसे डिग्री सर्टिफिकेट, मार्कशीट आदि हमेशा एक फाइल में तैयार रखें. हो सके तो उनका एक सॉफ्ट कॉपी स्कैन करके भी रख लें, जिसे जरुरत होने पर कभी भी तुरत ऑनलाइन भेजा जा सके. 

    
अपने क्वालिफिकेशन और स्किल के अनुरूप अब संभावित जॉब या पोस्ट की लिस्ट बना लें. इसे फिर सरकारी या गैर सरकारी क्षेत्र में उपलब्ध रिक्तियों से मैच करने की कोशिश करें और उनमें से जो आपको उपयुक्त लगे, उसे शार्ट लिस्ट कर लें.
इन शार्ट लिस्टेड जॉब हेतु आवेदन करने से पहले उन कंपनियों और वहां उपलब्ध जॉब के बारे में अपनी सामान्य जिज्ञासाओं का उत्तर पाने  का प्रयास करें. मोटे तौर पर इन बातों की जानकारी ऑनलाइन ही मिल जाती है या उन कंपनियों के आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध होती हैं. कहते हैं कि गूगल का सर्च इंजन इसमें बहुत सहायक सिद्ध होता है.


ऐसा पाया गया है कि कई विद्यार्थी अलग-अलग तरह के दसाधिक जॉब के लिए एक साथ ही अप्लाई कर देते हैं. इस क्रम में  वे यह भूल जाए हैं कि ऑनलाइन लिखित टेस्ट या इंटरव्यू में समय सीमित होता है.
लिहाजा तैयारी फुल प्रूफ होना बहुत जरुरी है. भिन्न प्रकार के सभी जॉब के लिए एक साथ समुचित तैयारी बहुत कठिन होती है. यहां इस कहावत को याद रखें कि एक साधे, सब सधे; सब साधे, सब जाय. अतः बेहतर यह होगा कि एक तरह के जॉब के लिए अप्लाई और तैयारी करें. यहां भी उस जॉब से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले सवालों यानी  फ्रीकुएंटली आस्केड क्वेश्चन (एफएक्यू) के उत्तर अच्छी तरह तैयार करना उचित होगा.  


इंटरव्यू में पूछे जानेवाले संभावित सवालों पर फोकस करें और उनका सटीक जवाब लिखकर रखें. ऑनलाइन इंटरव्यू मोटे तौर पर विडियो कॉल के माध्यम से होता है.
इसके लिए आपका इंटरनेट कनेक्शन का स्पीड अच्छा होना जरुरी है, जिससे इंटरव्यू बीच में कभी भी बाधित न हो. सवाल को पूरा सुनने के बाद आराम से साफ-साफ उत्तर दें. यहां स्पीड में बोलना कई बार ठीक से बोर्ड मेंबर्स को सुनाई नहीं देता है, जिसका नुकसान नाहक अभ्यर्थी  को उठाना पड़ता है. इसमें माक इंटरव्यू का अभ्यास लाभकारी होगा. अगर घर से ही इंटरव्यू दे रहे हैं तो भी फॉर्मल ड्रेस में रहें, बैठने के स्थान और बैकग्राउंड को भी साफ़-सुथरा रखें. चूंकि कुछ मिनटों का इंटरव्यू जॉब सेलेक्शन में निर्णायक भूमिका निभाता है, सो आपकी तैयारी और प्रस्तुति उत्तम हो तो अच्छा.   

  (hellomilansinha@gmail.com)

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 27.12.2020 अंक में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com 

Tuesday, February 23, 2021

खुश रहने के पांच आसान सूत्र

                                    - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

सब विद्यार्थी खुश रहना चाहते हैं, लेकिन एक ही सिचुएशन में हम दो विद्यार्थियों को कदाचित भिन्न तरीके से रियेक्ट करते और नतीजतन खुशी प्राप्त करते हुए या दुखी होते हुए देखते हैं. आखिर ऐसा क्यों होता है?
प्रसिद्ध प्रबंधन विशेषज्ञ डेल कार्नेगी कहते हैं कि "खुश होना या दुखी होना  इस पर  निर्भर  नहीं  करता है  कि  आप  कौन  हैं  या  आपके  पास  क्या  है. यह  पूरी  तरह  से  इस  बात  पर  निर्भर  करती  है  कि  आप  क्या  सोचते  हैं." हां, जहां खुश रहने के एकाधिक कारण हो सकते हैं, वहां दुखी या नाखुश रहने के भी. लेकिन अगर हर विद्यार्थी अपने दिनभर के कार्यकलाप की गहन समीक्षा करें और यह जानने का यत्न करें कि किस-किस कार्य में उन्हें अनायास ही खुशी मिली, तो उनके लिए यह तय कर पाना आसान होगा कि वे खुश रहने के लिए क्या-क्या कर सकते हैं. बहरहाल, मोटे तौर पर अगर छात्र-छात्राएं  किसी दूसरे से तुलना किए बगैर कम-से-कम निम्नलिखित पांच बातों पर अमल करते रहें तो खुश रहना आसान हो जायगा.

 
1) खुद को अच्छी तरह  जानने का प्रयास करें.
इसके लिए विद्यार्थियों को निष्पक्ष भाव से खुद का आकलन-विश्लेषण करना पड़ेगा. यह काम स्वयं करें. अच्छी तरह से यह जान लें कि अध्ययन के इस संक्रांति काल में आपको क्या-क्या करना चाहिए और आप क्या-क्या  करना चाहते हैं. अब यह देख लें कि ये कार्य अच्छे और कानून सम्मत हैं या नहीं. बुरे काम का बुरा नतीजा होता है, यह कटु सत्य है. खुद को इस मामले में दुरुस्त करने के बाद अब यह संकल्प लें कि जो तय किया है उस पर पूरी तरह अमल करेंगे और अनुकूल-प्रतिकूल दोनों स्थिति में खुद से प्यार करते रहेंगे. किसी से दुर्व्यवहार नहीं करेंगे. जाने-अनजाने कभी कोई भूल हो जाए तो उसे तुरत मानने और सुधारने का यथासाध्य प्रयास करेंगे, लेकिन खुद को कोसेंगे नहीं और जीवन से भागेंगे नहीं. 


2) खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रखते
हुए आज में जीने का पूरा प्रयास करें. बीता हुआ समय लौट कर नहीं आता और आनेवाले समय को बेहतर तरीके से जीने का एकमात्र तरीका है वर्तमान में जीने की आदत डालना. ऐसे भी आनेवाला पल बस इस पल के बादवाला पल ही तो होता है. अगर इस पल को ठीक से जीने की आदत नहीं होगी तो फिर अगले पल का हश्र भी वैसा ही होगा. है न. भगवान बुद्ध कहते हैं कि हर सुबह हम पुनः जन्म लेते हैं. हम आज क्या करते हैं यही सबसे अधिक मायने रखता है." सो, प्रेजेंट को अच्छे से जीएं और एन्जॉय करें.


3) लोग क्या कहेंगे इसकी चिंता करने के बजाय
इस बात पर फोकस करें कि आप और क्या-क्या अच्छा कर सकते हैं. शार्ट टर्म और लॉन्ग टर्म लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए इसकी एक सूची बना लें. इससे कुछ छूटने या भूलने की गुंजाइश कम हो जाएगी और लक्ष्यानुसार कार्य होते रहेंगे. इससे आपको खुशी का नियमित डोज भी मिलता रहेगा जो आपके मोटिवेशन के लिए जरुरी है. हां, चाणक्य द्वारा कही गई इस बात को सदा याद रखें कि "जब आप किसी काम की शुरुआत करें, तो असफलता से मत डरें और उस काम को ना छोड़ें. जो लोग ईमानदारी से काम करते हैं वो सबसे ज्यादा प्रसन्न होते हैं और सफल भी."  


4) रोज दिन की शुरुआत और अंत अच्छे से करें.
सभी विद्यार्थियों ने यह महसूस किया होगा कि जिस दिन सुबह की शुरुआत अच्छी होती है, दिन मोटे तौर पर अच्छा गुजरता है. शुरुआत अच्छी न हो तो मन अप्रसन्न रहता है और कोई भी कार्य अच्छी तरह सम्पन्न नहीं हो पाता है. कहने का मतलब साफ़ है कि हम खुश रहते है तो काम  अच्छा होता है या काम अच्छा होता है तो हम खुश रहते हैं. यानी दोनों एक दूसरे से जुड़े हैं. उसी तरह दिन का अंत सही नहीं हो तो रात करवटें बदलते हुए अनिद्रा में कटती है. सेहत और अध्ययन दोनों पर इसका बुरा असर पड़ता है.   

 
5) आर्ट ऑफ़ गिविंग यानी देने की कला
में पारंगत हों, खासकर उनको जिन्हें आपके मदद, मार्गदर्शन आदि की आवश्यकता है. यहां "थिंक एंड थैंक सिद्धांत" पर अमल करना बेहतर होगा. कहने का तात्पर्य यह कि चिंतन करें कि कैसे आप किसी की मदद कर सकते हैं और कैसे आप हर मदद करनेवाले को धन्यवाद दे सकते हैं. जहां चाह, वहां राह. आप सोचेंगे तो एकाधिक रास्ते खुलेंगे और आप लोगों की मदद करके असीमित और अकल्पनीय खुशी के हकदार बनेंगे.  


संक्षेप में कहें तो जीवन में तमाम उतार-चढ़ाव और चुनौतियों के बावजूद खुश होने और रहने के सैंकड़ों कारण और तरीके हैं और रहेंगे. फिलहाल इन पांच सूत्रों पर अमल कीजिए, खुशी की कमी नहीं रहेगी. 

  (hellomilansinha@gmail.com)   

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 20.12.2020 अंक में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com 

Friday, February 19, 2021

वेलनेस पॉइंट: हुनर से खोज लिए रास्ते

                                  - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड वेलनेस कंसलटेंट

विविधताओं से भरे इतने बड़े देश में एक साथ आंतरिक और बाहरी मोर्चों पर विविध समस्याओं से डटकर मुकाबला करने के लिए देश के लोगों की आंतरिक शक्ति को पहचानना, उसे जगाना और फिर जनहित व देशहित में उसका सदुपयोग करना कुशल नेतृत्व का प्रमाण है.
आपको याद होगा कि प्रधानमन्त्री ने  महामारी के आरम्भ से अबतक कई बार आम जनों से संवाद किया है और चुनौतियों से लड़कर विजयी होने हेतु उन्हें बराबर प्रेरित और उत्साहित किया है. देशवासियों ने भी धैर्य, साहस और एकजुटता का समुचित प्रमाण दिया है.

    
निसंदेह, इस दौरान देश के आम जनों के साथ-साथ करोड़ों युवाओं ने भी अनेक मुश्किलों को झेला है. अध्ययन हो या नौकरी हो या व्यवसाय या स्व-रोजगार, हर क्षेत्र में उन्हें छोटी-बड़ी कठिनाइयों से पेश आना पड़ा है. लेकिन अधिकांश युवाओं ने चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया है. 


जब कोविड के कारण पूरे देश में लॉक डाउन की मजबूरी हो गई, तब एक वक्त ऐसा लगा, जैसे गतिविधियों के ठप होने से पर देश थम जाएगा, ऑफिस, बाजार, कारोबार आदि बंद हो जाने की आशंका लोगों को डराने लगी थी. महानगरों और बड़े शहरों में तमाम प्रोफेशनल्स और कामगारों को अपने काम-धंधे खोकर विवशता में गांवों-घरों की और कुछ करना पड़ा. यातायात के साधन के बिना सैकड़ों-हजारों किलोमीटर का सफ़र करते देखनेवालों का ह्रदय रो पड़ा.
लेकिन रोजगार खोने वाले तमाम लोगों ने अपने गांव-घर पहुंचकर भी खाली नहीं बैठे. जब उन्हें लगा कि लम्बे समय तक शहरों की और वापसी संभव नहीं है, तो अपने हुनर से रोजगार के नए उपाय खोजने शुरू कर दिए. किसी ने अपनी या किराए की जमीन पर नए तरह से, फलों-फूलों-सब्जियों की खेती शुरू कर दी, तो कोई सब्जियों व अन्य खानपान के सामानों को ही घर-घर पहुंचाने लगा. तमाम युवाओं ने अपने गांव के आसपास बेकार पड़ी जमीन को स्सफ कर उसे खेती करने लायक बना दिया, तो कोई उपेक्षित स्कूल की रंगाई-पुताई करके उसकी साज-सज्जा को आकर्षक रूप दे दिया. 


तलाशे उच्च शिक्षा के रास्ते: कॉलेज / विश्वविद्यालय बंद होने से जो जहां था, वहीँ फंसा था. ऐसे में पढ़ाई ठप पड़ने की आशंका भी थी.
लेकिन सरकार से लेकर शिक्षाविदों तक ने इस समस्या पर गहरा चिंतन-मनन किया और फिर इसका सुफल ऑनलाइन एजुकेशन के रूप में सामने आया. तकनीक ने उनकी राह आसान कर दी. शैक्षणिक संस्थानों ने इसके लिए अपनी विशेषज्ञ फैकल्टी को सक्रीय कर दिया, जिन्होंने सिलेबस के अनुरूप उपयोगी पाठ्यसामग्री और लेक्चर के विडियो बनाकर अपनी वेबसाइट और इन्टरनेट मीडिया के अन्य माध्यमों के जरिए अपने विद्यार्थियों को घर बैठे उपलब्ध कराया. इससे पढ़ाई सुचारू रूप से चलती रही. स्टूडेंट्स ने अपने असाइनमेंट, प्रोजेक्ट भी ऑनलाइन ही पूरे किए और टेस्ट-एग्जाम भी ऑनलाइन दिया. इस विकल्प को सरकार ने भी प्रोत्साहित किया. 

 (hellomilansinha@gmail.com)

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय अखबार "दैनिक जागरण" में प्रकाशित
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Tuesday, February 16, 2021

आलस्य को कहें एक बिग नो

                                       - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

छात्र जीवन में कई जाने-अनजाने कारणों से  आलस्य बहुत सारे विद्यार्थियों को अपने गिरफ्त में ले लेता है, जब कि 
महान दार्शनिक सुकरात कहते है कि "आलस्य में जीवन बिताना आत्महत्या के समान है." सुबह जल्दी उठने और नित्यकर्म से निवृत होकर अध्ययन में जुट जाने की बात हो या समय से क्लास में पहुंचने या अपना हर काम सही समय पर करने की बात हो, सक्षम होते हुए भी बस आलस्य के कारण ऐसे विद्यार्थी पीछे रह जाते हैं. इतना ही नहीं, अपनी गलती के कारण हासिल असफलता से सीख लेने के बजाय वे उसे सही ठहराने की मूर्खता भी करते हैं.  इसका खामियाजा उन्हें अभी और कदाचित जीवन में आगे भी भुगतना पड़ता है. दिलचस्प बात है कि अलग-अलग समस्याओं और परेशानियों से जूझनेवाले विद्यार्थियों से पर्सनल काउंसलिंग के दौरान जब मेरी उनसे वन-टू-वन बातचीत होती है और उनकी समस्या या परेशानी के कारणों की पड़ताल की जाती है तो अमूमन एक कॉमन कारण आलस्य ही होता है. आलस्य के  कारण कितने मेधावी विद्यार्थियों को जीवन के प्राइम टाइम में अपूरणीय क्षति होती है, इसकी कल्पना करना आसान नहीं है. बाद में इसका उन्हें बहुत पश्चाताप होता है. ऐसा नहीं है कि वे संत कबीर के इस दोहे में व्यक्त विचार से अपरिचित हैं कि काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब. आइए, एक बोध कथा के माध्यम से इसे समझने का प्रयास करते हैं. 


एक गुरुकुल में आसपास के इलाकों के विद्यार्थी विद्या ग्रहण करते थे. गुरु जी बहुत ही विद्वान और अनुशासनप्रिय थे. उनकी एक ही इच्छा थी कि गुरुकुल में आए हर विद्यार्थी को एक समर्थ, सजग, सक्रिय, सचरित्र और संवेदनशील इंसान बना सकें. इसके निमित्त वे हरेक विद्यार्थी पर अपनी पैनी नजर रखते थे. विद्यार्थीगण  गुरु जी के इस भावना के अनुरूप पढ़ाई-लिखाई सहित अन्य कार्यों  में पारंगत हो रहे थे. केवल एक विद्यार्थी इसका अपवाद था. यूँ तो वह भी बालसुलभ प्रवृतियों से सपन्न था, लेकिन था थोड़ा ज्यादा ही आलसी. न जाने क्यों और कैसे उसे इस लोकोक्ति पर गहरा यकीन हो गया था कि अजगर करै न चाकरी, पंछी करे न काम,  दास मलूका कह गए, सबके दाता राम. कहने का मतलब यह कि आप अध्ययन-परिश्रम करें या न करें आपको ईश्वर सब कुछ दे देंगे. इसके कारण वह सक्षम होते हुए भी आलस्य में पड़ा रहता. गुरु जी यह सब देखकर थोड़ा परेशान थे, पर निराश नहीं. उन्होंने उस विद्यार्थी को कई तरीके से यह समझाने का प्रयास किया कि आलस्य व्यक्ति की एक बड़ी कमजोरी है, जिससे उसे बहुत नुकसान होता है. फिर भी उस लड़के पर इसका अपेक्षित असर नहीं हुआ. एक दिन गुरु जी ने सभी विद्यार्थियों को एक मैजिकल स्टोन यानी चमत्कारी पत्थर की कहानी सुनाई. इस कहानी को सुनकर जो विद्यार्थी सबसे ज्यादा खुश था वह वही आलसी लड़का था. उसने सोचा कि एकबार मुझे वह पत्थर मिल जाए तो फिर मजा ही मजा है. दूसरे दिन सुबह वह गुरु जी की कुटिया में पहुँच गया और उनसे वह पत्थर हासिल करने का उपाय पूछने लगा. गुरु जी ने बताया कि उपाय बहुत कठिन नहीं है. इसके लिए उसे पूरी निष्ठा व वक्त की पाबंदी से बस एक काम करना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि यहां से कुछ दूर एक गांव है, जहां एक किसान रहता है जो मेरा मित्र है. तुम कल बिलकुल सूर्योदय के वक्त वहां के लिए प्रस्थान करो. दोपहर से पहले वहां पहुंचकर मेरे किसान मित्र से मिलो और उनसे मैजिकल स्टोन का रहस्य जानकर सूर्यास्त से पहले मुझे बताओ. तुम्हारा काम हो जाएगा. लड़का बहुत खुश हो गया. मैजिकल स्टोन पाने की कल्पना में वह इस कदर खो गया कि  देर रात तक वह जगा रहा. नतीजतन वह सोया तो सूर्योदय के बहुत बाद तब जगा जब गुरु जी ने आकर उसे जगाया. स्पष्ट था कि वह अवसर गंवा चुका था, क्यों कि उसे बिलकुल  सूर्योदय के वक्त ही निकलना था.  वह दुःख और निराशा से रोने लगा. तब गुरु जी ने उसे शांत किया और अच्छी तरह समझाया कि मैजिकल स्टोन का रहस्य मात्र यह है कि आलस्य त्यागकर सूर्य की तरह रोज हर काम समय से नियमपूर्वक संपन्न करो, पृथ्वी की तरह सफलता तुम्हारी परिक्रमा करती रहेगी. 


यही कारण है कि सभी ज्ञानीजन बारबार  कहते हैं कि आलसी मनुष्य को दरिद्रता प्राप्त होती है, जब कि  सक्रिय व कार्य-कुशल मनुष्य अपनी क्षमता का सदुपयोग कर अभीष्ट फल के उपभोग का हकदार बनता है. स्वामी रामतीर्थ का तो स्पष्ट मत है कि "आलस्य हर व्यक्ति के लिए मृत्यु समान है; इसका त्याग-तिरस्कार सर्व कल्याणकारी है."  सो, आलस्य को कहें एक बिग नो.   
 

  (hellomilansinha@gmail.com)    

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 13.12.2020 अंक में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com 

Tuesday, February 9, 2021

वेलनेस पॉइंट: जरुरी है उम्मीद का साथ

                                  - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 

विश्वभर में कोरोना महामारी सहित कई वाजिब-गैरवाजिब कारणों से युवा बड़ी संख्या में बहुत तनाव में हैं.
खुशी की बात है कि आम तौर पर हमारे युवाओं ने तनाव से हारने या पस्त होने के बजाय कोशिश और संघर्ष के मार्ग पर चलने को बेहतर समझा है. इसके पीछे उनकी यह सोच रही कि जीवन गतिमान है और मार्ग आसान हो या दुर्गम, सतत आगे बढ़ते रहना सबसे अच्छा विकल्प है. हां, उसके लिए मजबूत आत्मविश्वास का होना अनिवार्य होता है. इस मामले में प्रसिद्ध अमेरिकी फुटबॉलर  जो नामथ का कहना बिल्कुल सही है कि "जब  आपके  अन्दर  आत्मविश्वास  होता है तब आप जीवन का खूब आनंद उठा  सकते  हैं. और  जब  आप  आनंद  उठाते  हैं  तब  आप  अदभुत  चीजें  कर  सकते हैं ." महामारी के दौर में करोड़ों युवाओं ने इस भावना को अच्छी तरह चरितार्थ किया. हां, आत्मविश्वास और उम्मीद के दो आंतरिक सुरक्षा वैक्सीन के साथ-साथ अब तो उनके पास भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिकों द्वारा तैयार दो वैक्सीन का सौगात भी है. लिहाजा  आगे उत्साह और उमंग से जीने की भावना और मजबूत होगी, इसमें कोई दो मत नहीं. 


यहां
स्वामी विवेकानंद का यह कथन भी काबिलेगौर है. वे कहते हैं कि "किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आए तो आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं." कहने का तात्पर्य यह कि इस एक बात को मन में ठान लें कि कुछ भी हो घबराना नहीं है और समस्या से भागने का प्रयास नहीं करना है. इतने से ही आपमें पॉजिटिव चेंज आएगा और आप पॉजिटिव एनर्जी से भरते जायेंगे. मनोवैज्ञानिक मानते और कहते हैं कि स्वस्थ, उत्साहित व ऊर्जावान रहने के लिए जीवन में उम्मीद का साथ होना आवश्यक है. मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने क्या खूब कहा है कि हमें सीमित निराशा को स्वीकार तो करना चाहिए, परन्तु अनंत उम्मीदों का साथ नहीं छोड़ना चाहिए. 


मेरे ऐसे कई युवा मित्र हैं जो निराशा या चिंता या तनाव  के पल में 
बचपन में पढ़ी प्रख्यात कवि मैथिलीशरण गुप्त और रामधारी सिंह दिनकर की दो कविताओं की बस दो-दो पंक्तियां एक-एक बार गुनगुना लेते हैं. कहते हैं, इससे उन्हें प्रेरणा मिलती है, उनमें आशा और शक्ति का संचार होता है. गुप्त जी लिखते हैं, "नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो, जग में रहकर कुछ नाम करो ... " और दिनकर जी की कविता की दो पंक्तियां हैं, "खम  ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड़. मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है..." आप भी तनाव व चिंता के क्षणों में गुनगुनाकर देख सकते हैं. अच्छा फील करेंगे. आनेवाले दिन तो यकीनन बेहतर होंगे ही.  

(hellomilansinha@gmail.com)   


             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
# लोकप्रिय अखबार "दैनिक जागरण" में 06.02.2021 को प्रकाशित
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Tuesday, February 2, 2021

घबराने के बजाय जो कर सकते हैं करें

                              - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

फिर एक बार कोरोना महामारी के संक्रमण का खतरा बढ़ने लगा है. यह दुःख और चिंता का विषय है. इसी के मद्देनजर हाल ही में
प्रधानमन्त्री ने पुनः देशवासियों से यह अपील की है कि  संक्रमण से बचे रहने के लिए घोषित सावधानियों का पालन करें; किसी तरह की लापरवाही न  बरतें और लापरवाही बरतने वालों को समझाने का प्रयास भी करें. निश्चित रूप से  विद्यार्थियों सहित सभी लोगों को प्रधानमंत्री की बातों पर पूरा अमल करना चाहिए. सब जानते हैं कि कुछ लोगों की लापरवाही की कीमत बहुत सारे लोगों को चुकानी पड़ती है. कोरोना के मामले में तो यह बात सौ फीसदी  सच है. गौर करनेवाली बात यह भी है कि ऐसी स्थिति में आम आदमी जो मोटे तौर पर घोषित सावधानियों का पालन करता है, घबरा जाते हैं और उनका शारीरिक-मानसिक संतुलन बिगड़ने लगता है. समाज और देश पर भी इसका व्यापक नकारात्मक असर होता है.

 
खैर, संतोष और खुशी की बात है कि बड़ी संख्या में हमारे देश के विद्यार्थी राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के इन पक्तियों "विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, सूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते ..." को याद  करते हुए एवं कवि- गीतकार अभिलाष के इस गाने "इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना, हम चलें नेक रस्ते पे, हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना..." को गुनगुनाते हुए अपने कर्मपथ पर चलते रहते हैं. सच कहें तो ऐसे सारे विद्यार्थी मूलतः साहसी और बुद्धिमान होते हैं. ये लोग जीवन में कई बार उन परिस्थितियों को जिन्हें बदलना उनके कंट्रोल में नहीं होता है, स्वीकार  कर उसकी सीमाओं में रहते हुए अपने कार्य को कमोबेश नार्मल तरीके से करते रहने का उपाय करते हैं.  उस परिस्थिति विशेष  के कारण हुए परेशानियों का रोना नहीं रोते, बल्कि समाधान ढूंढने में  लग जाते हैं. वे अपने  कार्यकलाप  को अच्छाई और सच्चाई के कवच के अंदर रखते हैं. दरअसल, किसी-न-किसी रूप में वे अमेरिकी विचारक रेनहोल्ह निबुहर द्वारा एक प्रार्थना में व्यक्त इस विचार से सहमति रखकर कार्य करते हैं कि "हे ईश्वर, मुझे उन चीजों को स्वीकार करने की स्थिरता दें जिन्हें मैं बदल नहीं सकता, उन चीजों को बदलने का साहस दें जिन्हें मैं बदल सकता हूँ और दोनों में अंतर करने की बुद्धि दें."


ऐसे सारे विद्यार्थी जानते और मानते हैं कि नॉलेज, स्किल और एटीटूयड यानी ज्ञान, दक्षता और नजरिया में से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है नजरिया. दरअसल किसी भी व्यक्ति का नजरिया ही वह शक्ति होती है जिसके जरिए किसी विचार को आश्चर्यजनक रूप से वास्तविकता में तब्दील करना संभव होता है. कहने का मतलब यह कि नजरिया पॉजिटिव हो तो कठिन-से-कठिन सिचुएशन को भी अपने अनुकूल बनाया जा सकता है. अतः घबराने की तो कोई जरुरत ही नहीं है, परिस्थिति कुछ भी हो. बड़े-बुजुर्ग तो बराबर यही कहते रहे हैं कि  परीक्षा हो या कोई और टेस्टिंग टाइम बस सकारात्मक नजरिया रखते हुए संघर्षशील और प्रयत्नशील बने रहें. जीवन जीना आसान हो जाएगा. सफलता और खुशी दोनों के हकदार भी बनते रहेंगे.
भेड़ चरानेवाले बालक डेविड द्वारा राक्षस रूपी गोलियथ को मारने की कहानी से निश्चय ही  सभी विद्यार्थी परिचित होंगे. 

 
विचारणीय बात है कि घबराने से हम अंदर से कमजोर होने लगते हैं. छोटी सी समस्या भी तब अनावश्यक रूप से बड़ी और कठिन प्रतीत होती है. हमारी सामान्य कार्यक्षमता काफी  दुष्प्रभावित होती है.
कई अच्छे विद्यार्थी तक को इसका नुकसान उठाते आपने भी देखा होगा, जब वे घबराहट में परीक्षा आदि में पेपर अच्छा नहीं लिख पाते हैं और खराब रिजल्ट के भागी बनते हैं. ज्ञानीजन स्पष्ट कहते हैं कि जीवन में प्रगतिपथ पर सतत अग्रसर होने  के लिए यह आवश्यक है कि पहले हम स्थिति-परिस्थिति का शान्ति और बुद्धि से सही आकलन-विश्लेषण करें. घबराएं बिलकुल नहीं. खुद पर विश्वास रखें क्यों कि जीवन में मार्ग आसान हो या दुर्गम, सतत आगे बढ़ते रहने के लिए मजबूत आत्मविश्वास का होना अनिवार्य होता है. ऐसे सोच-विचारवाले विद्यार्थी अनावश्यक मामलों में उलझकर अपना कीमती वक्त और सीमित ऊर्जा नष्ट नहीं करते हैं. जानकार और जागरूक बने रहने के क्रम में उनकी सारी इन्द्रियां सक्रियता से अच्छी बातों को अपने दिमागी हार्ड डिस्क में संजोती रहती हैं, जिससे उचित समय पर उसका पूरा सदुपयोग कर सकें. यही कारण होता है कि उनकी  रचनात्मकता और कल्पनाशीलता भी समय-समय पर अपना रंग दिखाती रहती है. मुझे मालूम है कि आप भी ऐसे ही एक विद्यार्थी है और बने रहेंगे.  

 (hellomilansinha@gmail.com)   


            और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
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