Wednesday, December 30, 2020

वेलनेस पॉइंट: प्रशंसा का मनोविज्ञान

                                     - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस  कंसलटेंट ... ...

अमेरिकी दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स कहते हैं,  “मानव प्रकृति में सबसे गहरा नियम प्रशंसा पाने की इच्छा होती है.”
सही है. बच्चे-बूढ़े, राजा-रंक, मालिक-नौकर सबको प्रशंसा अच्छी भी लगती है. मनोवैज्ञानिकों का  कहना  है कि किसी की प्रशंसा करने के लिए हिम्मत चाहिए, निंदा करने के लिए नहीं. सही कार्य के लिए सही समय पर सही प्रशंसा मन को आनंदित कर देता है. इससे प्रशंसा पानेवाले और प्रशंसा करनेवाले दोनों के बीच एक मजबूत भावनात्मक रिश्ता कायम हो जाता है. आचार्य वेदांत तीर्थ  के अनुसार "प्रशंसा की मीठी अग्नि यमराज के कठोर ह्रदय को भी मोम बना देती है, तभी तो वह अपने भक्त को अमर होने का वर दे देते हैं, यह जानते हुए भी कि इस संसार में कोई अमर नहीं." आइए, प्रशंसा से जुड़े कई अहम आयामों की चर्चा करते हैं.


दीगर बात तो यह है कि
सच्ची एवं समय पर प्रशंसा करना सबके बस की बात नहीं होती है. इसके लिए साफ़ दिल और खुले दिमाग के साथ-साथ आत्मिक बल की आवश्यकता होती है. हर मनुष्य के लिए अपने आत्मिक बल को बढ़ाना सदैव लाभकारी साबित होता है. लिहाजा किसी के भी अच्छे काम  की प्रशंसा करने का कोई अवसर कभी नहीं छोड़ना चाहिए. कहते हैं कि मनुष्य में जो कुछ उत्तम विद्दमान है, सही प्रशंसा और प्रोत्साहन के माध्यम से उसके विकास को गति देना आसान होता है. 

   
सदा यह याद रखें कि वर्कप्लेस में किसी भी व्यक्ति के काम की  प्रशंसा एकांत में या अपने चैम्बर में करने के बदले सार्वजनिक रूप से की जाए तो सबसे अच्छा.
इसका मतलब यह कि अगर ऑफिस में या अन्य किसी वर्कप्लेस में किसी कर्मी ने तारीफ़ योग्य कोई काम किया है तो किसी तय समय में उस ऑफिस के सारे लोगों के सामने उस कर्मी का अभिवादन एवं तारीफ़ करें. इससे उस स्टाफ  के अलावे उनके सहकर्मियों को बढ़िया फील होगा, उन सबमें  अनायास ही बेहतर परफॉरमेंस के लिए प्रोत्साहन और प्रेरणा का संचार भी होगा. 


किसी भी उपलब्धि के लिए आप जब उन्हें बधाई देते हैं -आमने-सामने या टेलीफोन पर या संदेश भेजकर, हमेशा अच्छी तरह बधाई दें. खानापूर्ति न करें. उन्हें यह फील होना चाहिए कि बधाई देनेवाले को उनकी उपलब्धि पर सचमुच ख़ुशी हुई है.
बनावटी बातें न करें. इससे आपकी सही भावना  सही तरीके से नहीं पहुँच सकती हैं. अगर आप खुद मिलकर अपनी भावना का इजहार करना चाहते हैं तो यह सबसे अच्छा होता है, बशर्ते कि आप सहजता और सरलता से उस भावना को प्रदर्शित कर सकें. कई बार अच्छी मंशा से की जाने वाली प्रशंसा भी खुशामद प्रतीत होती है क्योंकि उस प्रक्रिया में अतिरेक का तत्व अनायास ही शामिल हो जाता है. लिहाजा किसी की तारीफ़ करते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए. 


प्रशंसा करने में टाल-मटोल करना, बिलंव करना अच्छा नहीं होता.
जैसे बासी खाना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता, उसी प्रकार देर से की जानेवाली प्रशंसा रिश्ते की सेहत के लिए अच्छा साबित नहीं होता. दोस्तों की प्रशंसा उनके पीठ पीछे करने की अहमियत ज्यादा मानी गई है. ऐसा इसलिए कि सांसारिक दुनिया में सिर्फ मुंह पर प्रशंसा करके अपना उल्लू सीधा करना आम होता जा रहा है. 


सामान्यतः हम देखते हैं कि लोग किसी को मात्र खुश करने के मकसद से उनकी तारीफ़ करते हैं जो थोड़े समय के बाद अंततः चापलूसी का रूप ले लेता है. ऐसा तब और भी स्पष्ट साफ़ हो जाता है जब हम किसी के अच्छे काम की तारीफ़ करने के बजाय उस व्यक्ति की यूँ ही तारीफ़ करने लगते हैं. जैसे कि आप जैसा दिलदार आदमी तो हमने अब तक नहीं देखा, आप इतने स्मार्ट कैसे हैं, आपके अंदाज तो वाकई बेमिसाल हैं आदि, आदि. राजनीति में  ऐसी चापलूसी बहुत आम है. जाहिर है, ऐसा स्वार्थवश किया जाता है.
अंग्रेजी के महान कवि जॉन मिल्टन कहते हैं, "प्रशंसा कर्तव्यपरायणता के लिए बाध्य करती है, जब कि चापलूसी कर्तव्यविमुखता की ओर ले जाती है." 


कहने का तात्पर्य यह कि जो भी जब भी कोई अच्छा काम करे और उसे उसके लिए  वाहवाही मिले, प्रशंसा मिले तो निश्चय ही वह और अच्छे काम करने को प्रेरित होगा. इसका सकारात्मक असर उसके परिवार के साथ -साथ पूरे समाज पर पड़ना लाजिमी है.
विश्व विख्यात ब्रिटिश उपन्यासकार चार्ल्स डिकेन्स के जीवन में जो सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट आया वह उस तारीफ़ के कारण था जो उन्हें उनकी पहली कहानी के प्रकाशन के बाद संपादक से मिली. ऐसी अनेक मिसाल इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में  दर्ज है. कहना न होगा, प्रशंसा जैसे सरल पर बेहद प्रभावी मनोवैज्ञानिक औजार से अच्छे काम करनेवालों की तादाद में अप्रत्याशित बढ़ोतरी करके किसी भी समाज और देश को बहुत मजबूत बनाया जा सकता है.

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            और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
# लोकप्रिय अखबार "दैनिक जागरण" में 06.09.2020 को प्रकाशित
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Tuesday, December 22, 2020

कहां हैं रोजगार के बड़े अवसर

                                     - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

देशभर  में रोजगार का मुद्दा हर दिन समाचार पत्रों में किसी-न-किसी रूप में स्थान पाता है. बिहार विधानसभा के चुनाव में तो यह एक अहम मुद्दा है. बेरोजगार लोगों, खासकर शिक्षित बेरोजगारों  की संख्या निरंतर बढ़ रही है.
सरकारी नौकरी को रोजगार का सबसे बड़ा जरिया मानने की  भूल बहुत से जानकार लोग भी करते हैं और पब्लिक के बीच इसका भ्रम भी फैलाते हैं.  हकीकत यह है कि उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण के मौजूदा दौर में सरकारी नौकरी कुल रोजगार  का एक बहुत ही छोटा हिस्सा है और आनेवाले दिनों में इसकी संख्या बढ़ने की गुजाइश कम है. इसके विपरीत इस समय और भविष्य में निजी और कॉरपोरेट क्षेत्र में नौकरी के बड़े अवसर मौजूद रहेंगे. स्वरोजगार का दायरा तो अप्रत्याशित रूप से बढ़ेगा. इसके अनेक जाने-पहचाने कारण हैं.


यह सच है कि विकसित, विकासशील और अविकसित सभी देशों में करोड़ों लोग हैं, जिनके पास कोई रोजगार नहीं हैं.
इनमें से बहुत सारे लोगों को  जिनमें युवाओं की संख्या ज्यादा है, नियोक्ता दक्षता में कमी या प्रोफेशनल  योग्यता में  कमी का हवाला देकर रोजगार से वंचित रखते हैं.  हाल  के वर्षों में विश्व बैंक ने भी एकाधिक बार  दुनिया के देशों से ऐसी शिक्षा पर जोर देने की बात कही है जो युवाओं को जॉब मार्केट के अनुरूप प्रशिक्षित और तैयार कर सके. 


विद्यार्थियों को मालूम है कि
प्रधानमंत्री ने ‘मेक इन इंडिया' और "आत्मनिर्भर भारत" का नारा दिया है और इसे अमल में लाने हेतु अनेक कदम उठा रहे हैं, जिससे कि देश में युवाओं को रोजगार मिले और देश आर्थिक रूप से मजबूत भी बने. इसके लिए बड़ी-बड़ी कंपनियों से यह आह्वान किया गया है कि वे भारत में अपनी फैक्ट्री स्थापित कर यहां अपने उत्पादों का निर्बाध उत्पादन करें. दीगर बात है कि इस अभियान की सफलता के लिए जरुरी है कि देशी-विदेशी निवेशकों और उद्योगपतियों को भारत में अपेक्षित संख्या में कुशल कामगार मिले. ऐसी स्थिति में  शिक्षा और रोजगार को आपस में जोड़ने और विद्यार्थियों को प्रोफेशनल कोर्सेज में शामिल होने का मौका  देना अनिवार्य है, जिससे कि वे नए-नए कौशल से लैस हो सकें. खुशी की बात है कि नई शिक्षा नीति में इसपर यथोचित जोर दिया गया है. इस परिस्थिति में विद्यार्थियों के लिए भी यह जरुरी है कि वे इस बात को ध्यान में रखें कि अभी और आगे कौन-कौन से सेक्टर में रोजगार सृजन की ज्यादा संभावना है, जिससे कि वे उसके अनुरूप कोर्स में योग्यता हासिल कर सकें. आइए, उनमें से तीन बड़े सेक्टर की बात करते हैं जहां आनेवाले दिनों में रोजगार के बेहतर अवसर मिलेंगे. 

  
आईटी सेक्टर: सबको मालूम है कि डिजिटलाईजेसन के इस दौर में कमोबेश छोटे-बड़े सभी कारोबार इंटरनेट और कंप्यूटर आधारित होते जा रहे हैं. सरकारी नौकरी हो या कॉरपोरेट जॉब या अपना व्यवसाय-व्यापार या फिर जीएसटी से लेकर इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की बात हो, कंप्यूटर की उपयोगिता ज्यादा व्यापक  होती जा रही है. कोरोना काल में व्यवसाय परिचालन और व्यक्तिगत जरूरतों के लिए ऑनलाइन-डिजिटल लेनदेन  में एक बड़ा उछाल देखा जा रहा है. अतः आईटी और उससे संबंधित सेक्टर में जॉब की संख्या आनेवाले दिनों में काफी बढ़नेवाली है. 


फार्मा सेक्टर: कोरोना महामारी ने मोटे तौर पर लोगों को अपने और अपने परिवार के हेल्थ के प्रति पहले की तुलना में ज्यादा जागरूक बनाया है. आयुर्वेदिक मेडिसिन की ओर लोगों का रुझान बहुत बढ़ा है और इस बीच उनके टर्नओवर में अच्छी वृद्धि की बात सभी मार्केट विशेषज्ञ मान रहे हैं. मॉडर्न मेडिकल फैसिलिटी को व्यापक और उन्नत करने का एक नया दौर शुरू हो चुका है. मिशन इन्द्रधनुष कार्यक्रम और पीएम जनआरोग्य योजना के तहत बड़े स्तर पर हेल्थ एंड मेडिकल केयर सुविधा के विस्तार पर जोर दिया जा रहा है. साथ ही  फार्मास्यूटिकल कंपनियों और प्राइवेट अस्पतालों के बिज़नेस में बेहतर  ग्रोथ का संकेत व अनुमान है. स्वाभाविक रूप से इस सेक्टर में नौकरी और रोजगार की संभावना पहले से बहुत ज्यादा होगी.


टूरिज्म सेक्टर: इस क्षेत्र का दायरा बहुत व्यापक और संभावनाओं से भरा है. लिहाजा  यहां युवाओं के लिए सरकारी और निजी दोनों ही क्षेत्रों में अनेक प्रकार के मौके उपलब्ध हैं.  राजमार्गों के तीव्र विकास के साथ-साथ पासपोर्ट-वीसा नियमों में सकारात्मक बदलाव के बाद इस क्षेत्र में उच्च  वृद्धि की पूरी संभावना है. इस क्षेत्र से जुड़े कोर्सेज में योग्यता प्राप्त करने के पश्चात छात्र-छात्राएं एयरलाइन्स, होटल, टूर-ट्रेवल, मेडिकल टूरिज्म आदि में अनेक तरह की नौकरी और रोजगार के योग्य बन पाते हैं.

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Tuesday, December 15, 2020

'कुछ तो लोग कहेंगे' तो क्या करें?

                                      - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

पिछले दिनों जेईई, नीट तथा कई अन्य प्रतियोगिता परीक्षाओं का रिजल्ट घोषित हुआ है.
आम तौर पर रिजल्ट निकलते ही सफल-असफल दोनों तरह के छात्र-छात्राओं का लोगों की प्रतिक्रियाओं  से सामना होता है. इस समय उन्हें "कुछ तो लोग कहेंगे" वाली बात सत्य प्रतीत होती है. अगर सफल हुए तो भी घर-बाहर के कुछ लोग बधाई और वाहवाही देने के साथ-साथ मार्क्स-ग्रेड-रैंक आदि के विषय में कई प्रकार के सवाल करते हैं. असफल हुए तो फिर ऐसे लोग सामने और पीठ पीछे न जाने क्या-क्या कहते हैं. सोचनेवाली बात यह है कि इन सब प्रतिक्रियाओं से किसी विद्यार्थी  के रिजल्ट में कोई फर्क नहीं पड़नेवाला है. फिर भी कुछ लोग आदतन ऐसा आचरण करते हैं. हकीकत तो यह है कि रिजल्ट जो होना था, वह तो हो गया. अब सफल-असफल दोनों तरह के विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों को इस पर सोच-विचार कर आगे की योजना  तय करनी है.  हां, यह कहना गलत नहीं होगा कि कुछ विद्यार्थी ऐसे मौकों पर दूसरे की प्रतिक्रिया को जानने और उन्हें तरजीह देने  में रूचि रखते हैं और अनेक मामलों में उन्हें बिना सोचे-समझे सच मानकर अपना स्ट्रेस भी बढ़ा लेते हैं. यह सही नहीं है. दरअसल, ऐसी स्थिति में विद्यार्थियों को अपना रिएक्शन या रिस्पांस देने से पहले निम्न बातों को महत्व देना चाहिए. 


1.
किसी की बात का बुरा न मानें, क्यों कि आपसे बेहतर कोई नहीं जानता कि आपने पिछले  दिनों क्या-क्या किया है, आप फिलहाल क्या कर रहे हैं और आगे क्या करने की योजना है. और सब यह मानते हैं  कि सामान्यतः कार्य या कोशिश के अनुरूप ही परिणाम मिलते हैं. अब अगर कोई दूसरा व्यक्ति - दोस्त, सहपाठी या अन्य कोई, आपके रिजल्ट की आलोचना में कुछ कह दे तो बस उसे एक बार सुन लें. बुरा न मानें और नाराज या गुस्सा न हों, क्यों कि  इससे आपकी स्थिति तो बदलेगी नहीं. उल्टा मूड और रिश्ता खराब होने का जोखिम जरुर रहेगा. हां, आप इस संभावना को भी बिल्कुल ख़ारिज नहीं कर सकते हैं कि अगर तटस्थ रहकर आप उनके कमेंट्स को  सुनें तो शायद कुछ अच्छी बात पता चल जाए और अनायास कुछ लाभ हो जाय. 


2. आपको क्या लगता है, यह ज्यादा अहम है.
लोग तो कुछ-न-कुछ कहेंगे, लेकिन अपने जीवन  के प्रति आपकी सोच का ही सबसे ज्यादा महत्व है. अगर आप सोचते हैं कि आपने जो किया है और जो करनेवाले हैं, वह आपको आपके लक्ष्य तक जरुर ले जाएगा, तो फिर कोई बात नहीं. लेकिन अगर आपको लगता है कि पीछे जो कुछ किया, वह सही नहीं था या उसमें सुधार  और बेहतरी की बहुत गुंजाइश है, तो आपको गंभीर सोच-विचार और जरुरी हो तो परामर्श-विमर्श करके यथाशीघ्र उस पर अमल करना पड़ेगा. चुनौतीपूर्ण और  मुश्किल वक्त में ही आपकी सही परीक्षा होती है. अतः इस समय अपनी भावनाओं पर  नियंत्रण रखना और सही दिशा से न भटकना हर विद्यार्थी के लिए अनिवार्य है. 


3. खुद को आगे के लिए अच्छी तरह तैयार करें.
देखिए  स्वामी विवेकानंद ने कितनी अच्छी  बात कही है. वे कहते हैं, "दुनिया क्या सोचती है, उन्हें सोचने दो. अपने इरादे मजबूत रखो. दुनिया एक दिन आपके कदमों में होगी." कहने का तात्पर्य यह कि अपने उत्कृष्ट कार्य से लोगों को यथोचित उत्तर देने का प्रयास सबसे अच्छा होता है. कहा भी गया है कि इतनी शांति और समर्पण से अपना काम करें कि आपकी सफलता का शोर सबको सुनाई दे. निसंदेह इसके लिए "कल से बेहतर हो आज" के सिद्धांत  को हकीकत में तब्दील करने की जरुरत होगी. अनावश्यक बातों से दूर रहकर पांडव पुत्र अर्जुन की तरह केवल अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करना पड़ेगा. हर समय सफलता के बारे में सोचने के बजाय अपने प्रयास की गुणवत्ता को बराबर उन्नत करना पड़ेगा.  


4. हमेशा आशावादी बने रहें, परिस्थिति चाहे जैसी भी हो. आशावाद वह  विश्वास  है  जिसके सहारे   कुछ भी हासिल किया जा सकता है. विश्व इतिहास के पन्ने उन सच्ची कहानियों से भरे हैं, जिसमें आशा का दामन थामे लाखों लोगों ने अपने कठिन प्रयास से सफलता के नए-नए कीर्तिमान बनाए हैं.
प्रख्यात प्रबंधन गुरु डेल कार्नेगी कहते हैं कि दुनिया की ज्यादातर महत्त्वपूर्ण चीजें उन लोगों द्वारा हासिल की गई हैं जो प्रतिकूल परिस्थिति में भी आशा के साथ अपने प्रयास में लगे रहे."  ऐसे भी निराशा और आशा के दो नावों के बीच चुनाव की स्थिति हो तो कोई भी विद्यार्थी निराशा  के नाव में चढ़ कर मंजिल से बहुत दूर मंझधार में क्यों फंसा रहेगा?  

 (hellomilansinha@gmail.com)  

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 01.11.2020 अंक में प्रकाशित
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Friday, December 11, 2020

सावधान रहें, सुरक्षित रहें

                             - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

कोरोना महामारी के मौजूदा दौर में, जब अनलॉक को चरणबद्ध तरीके से लागू करने की  कोशिश जारी है, धीरे-धीरे ही सही स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी भी खुलने लगे हैं. कोविड-19 के संक्रमण से सुरक्षित रहने के लिए वैक्सीन की उपलब्धता में अभी कुछ और महीनों  का समय लग सकता है. कोरोना वायरस से ग्रसित होनेवाले लोगों के लिए सटीक दवा भी बाजार में अब तक नहीं आ पाई है, तथापि कई सकारात्मक कारणों से संक्रमित लोगों के ठीक होने का प्रतिशत बेहतर हो रहा है. यह अच्छी स्थिति है, पर संक्रमण का खतरा बरकरार है और आसन्न जाड़े के मौसम में इसके बिगड़ने की संभावना की बात मेडिकल एक्सपर्ट भी कर रहे हैं.


कतिपय कारणों से हमारे देश में कुछ लोगों द्वारा नियम और दिशानिर्देश के अनुपालन में गंभीरता का अभाव दिखता है, लेकिन उसका दुष्प्रभाव  सभी झेलते हैं. कोरोना काल में भी स्थिति  कमोबेश वैसी  ही रही है और इसी वजह से इतने लम्बे लॉक डाउन और क्रमिक अनलॉक की अवधि के बावजूद जितनी सुधार की अपेक्षा और गुंजाइश थी, उतना नहीं हो पाया है. हां, तुलनात्मक रूप से हमारे देश की स्थिति कई अन्य देशों से बेहतर है. यह संतोष का विषय है.
खैर, अब जब कि बड़ी संख्या में विद्यार्थी अध्ययन आदि के लिए घर से बाहर निकलेंगे, तो कोरोना के संक्रमण की चुनौती बहुत बड़ी होगी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. एक और बात है. छह महीने से ज्यादा घर में रहने के बाद जब छात्र-छात्राओं को दोस्तों-सहपाठियों से मिलने का मौका मिलेगा तब क्या  सावधानी का समुचित पालन हो पायेगा, जिसका दिशानिर्देश सरकार निरंतर जारी करती रही है? 


रेल यात्रा के दौरान विद्यार्थियों ने कई स्थानों पर यह लिखा हुआ देखा होगा कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी. बिल्कुल यही बात इस समय लागू होती है, शायद कुछ ज्यादा ही.
यह सही है कि हर शिक्षण संस्थान में कुछ विद्यार्थी ऐसे होंगे जो लापरवाह और गैरजिम्मेदार होंगे, लेकिन अगर बाकी विद्यार्थी, जिनकी संख्या 95 प्रतिशत से कम नहीं होगी,  सरकारी दिशानिर्देशों का पालन करें तो कोरोना के संक्रमण से एक बड़े हद तक बचे रहना संभव हो पायेगा. फिर भी  इस मुद्दे पर  स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी प्रशासन को सोच-विचार कर एक प्रभावी प्रोटोकॉल तैयार करना पड़ेगा और उसे सख्ती से लागू भी करना पड़ेगा. इसमें अभिभावकों और जिला प्रशासन की भूमिका भी अहम होगी. एक जरुरी बात और. तीन अहम गाइडलाइन - दो गज की दूरी, मास्क पहनना और साबुन से समय-समय पर ठीक से हाथ धोना, के अनुपालन के साथ-साथ निम्नलिखित बातों को भी सभी विद्यार्थी अमल में लाएं तो उन्हें बहुत लाभ होगा.  


1) घर लौटकर पहले शरीर और कपड़े को साबुन-पानी से साफ़ कर लें. ऐसे आरामदेह और वाशेवल कपड़े पहनकर बाहर जाएं जिससे शरीर कमोबेश ढका रहे. इसे घर लौटकर तुरत वाश कर लें. कहने का आशय यह कि एक ड्रेस को बिना साबुन या डिटर्जेंट से धोए दुबारा न पहनें. हेल्दी लाइफ हेतु पर्सनल हाइजीन की अहमियत  तो हर विद्यार्थी को अच्छी तरह मालूम है. 2)  बाहर से ले कर आए कॉपी-किताब, लैपटॉप, फाइल, मोबाइल आदि को सेनिटाइज कर एक सुरक्षित स्थान पर रखें. घर में उनका इस्तेमाल करने से पहले उन्हें दुबारा सेनिटाइज कर लें तो अच्छा.
3) रोज सुबह-शाम तुलसी, काली मिर्च, लोंग, दालचीनी और अदरक से बना एक कप काढ़ा  चाय  की तरह पीएं. आंवला, नींबू सहित विटामिन सी बहुल चीजों के सेवन के साथ-साथ अन्य आसान तरीकों से अपने इम्यून सिस्टम को हमेशा स्ट्रांग बनाए रखने का प्रयास जारी रखें. सम्प्रति इसकी जरुरत अपेक्षाकृत अधिक है. 4) घर का बना पौष्टिक और सुपाच्य खाना ही खाएं, बेशक मन फ़ास्ट फ़ूड या नॉन वेजीटेरियन या चटपटा खाने के लिए मचलता हो. "हम बीमार तो घर परेशान, अपनी पढ़ाई-लिखाई में भी नुकसान" वाली बात को बराबर ध्यान में रखें. अपने साथ टिफ़िन और पानी फिलहाल घर से ही ले जाएं. जो ले गए हैं उसे ही खाएं. दूसरों से  न अपना खाना साझा करें और न ही उनके प्लेट या टिफ़िन से कुछ खाएं. फिलहाल उनसे भावनात्मक भाईचारा निभाएं. हो सके तो गुनगुना पानी पीने की आदत डालें. इससे स्वास्थ्य संबंधी अनेक लाभ होंगे. सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने से अभी जितना बच सकें, उतना अच्छा. रोज रात में सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध में आधा चम्मच हल्दी पाउडर डाल कर पीएं. 5) सबसे महत्वपूर्ण  बात यह कि हर हालत में अपने सोच को पॉजिटिव बनाए रखें. इसका सेहत पर  गहरा सकारात्मक असर होता है. 

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# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" में 25.10.2020 को प्रकाशित
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Tuesday, December 8, 2020

फिट हैं, तो हिट हैं

                                     - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

हाल ही में प्रधानमंत्री ने
"फिट इंडिया मूवमेंट" की पहली वर्षगांठ के अवसर पर ऑनलाइन फिट इंडिया संवाद के दौरान देश के कुछ प्रमुख लोगों से संवाद किया और यह जानने की कोशिश की कि आखिर वे किस तरह अपने को फिट रखते हैं. इन चुनिन्दा लोगों में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान, एक योग गुरु, एक महिला फुटबॉल खिलाड़ी, एक मॉडल व फिल्म एक्टर, एक डायटीशियन और केन्द्रीय खेल मंत्री भी शामिल थे. इन लोगों ने प्रधानमंत्री और देश के साथ जो बातें साझा की उससे एक बात समान रूप से उभरकर आई कि ये सभी लोग अपने को फिट रखने के लिए पूर्णतः प्रतिबद्ध हैं और तदनुरूप अपनी दिनचर्या में उसे महत्वपूर्ण स्थान देते हैं. 
छात्र-छात्राओं को याद होगा कि पिछले साल प्रधानमंत्री द्वारा एक जन आंदोलन के रूप में फिट इंडिया मूवमेंट की शुरुआत की गई थी जिससे कि देशवासियों में, जिनमें युवाओं की संख्या 65 प्रतिशत से ज्यादा है, फिटनेस के प्रति लगाव बढ़े और फिटनेस हर भारतीय के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन सके.
उनका कहना है कि "सफलता का कोई एलिवेटर नहीं होता, सीढ़ी पर चढ़ने के लिए कदम उठाने ही पड़ते हैं. फिटनेस और सफलता के बीच अटूट  रिश्ता होता है. अतः हर किसी को फिटनेस की अपनी लकीर बड़ी करने पर मेहनत करनी चाहिए." अच्छी बात है कि इस अभियान के तहत गत एक साल के दौरान देशभर में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए जिसमें बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने भी आगे बढ़कर भाग लिया.  


इस संवाद के दौरान क्रिकेटर  विराट कोहली ने कहा कि शरीर के साथ दिमाग को भी फिट रखने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि वे क्रिकेट का प्रैक्टिस सेशन तो मिस कर सकते हैं, लेकिन अपना फिटनेस सेशन नहीं. कोहली ने फिटनेस के लिए सही डाइट और नींद की अहमियत भी बताई. 
फिट इंडिया संवाद के दौरान बिहार स्कूल ऑफ़ योग, मुंगेर के स्वामी शिवध्यान सरस्वती ने योगाभ्यास के विविध फायदों के विषय में बताते हुए मंत्र, आसन, प्राणायाम, शिथिलीकरण और ध्यान रूपी योग कैप्सूल की चर्चा की जिससे कि कम समय में लोग योग का अधिकतम लाभ ले पाएं. जम्मू-कश्मीर की रहनेवाली महिला फुटबॉलर अफशां आशिक ने अपनी फिटनेस की कहानी साझा करते हुए यह बताया कि कश्मीर की ताजी हवा उन्हें फिट रखने में काफी मदद करती है. उनके प्रदेश की लड़कियां फिटनेस के प्रति जागरूक हैं. एक्टर मिलिंद सोमन ने कहा कि फिट इंडिया मूवमेंट से लोगों तक फिटनेस की सही जानकारी पहुंचेगी. उन्होंने कहा कि उन्हें  जितना भी समय मिलता है वे खुद को फिट रखने के लिए कुछ न कुछ करते हैं. वे जिम नहीं जाते हैं और न ही किसी फिटनेस मशीन का इस्तेमाल करते हैं. सार संक्षेप यह कि जहां चाह, वहां राह.


इसमें कोई दो मत नहीं कि विद्यार्थियों समेकित विकास के लिए फिट रहना नितांत जरुरी है. अब सवाल है कि इसके लिए उन्हें जो तीन-चार बातें दिनचर्या में शामिल करनी चाहिए, वे क्या हैं?


1) सुबह जल्दी उठें: फिट रहने के लिए सुबह यानी सूर्योदय के आसपास उठना बहुत लाभकारी होता है. उस समय वायुमंडल अपेक्षाकृत साफ़ रहता है. ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा होती है और विषैले गैस की मात्रा कम. सूर्य के प्रकाश से तनमन ऊर्जा से भर जाता है. रात में अच्छी नीद के बाद सुबह की सकारात्मक सक्रियता विद्यार्थियों के बेहतर मानसिक विकास में अहम रोल अदा करता है. 2) शरीर को जलयुक्त रखें: सभी जानते हैं कि हमारे शरीर में दो तिहाई पानी होता है. मसल्स, हड्डी, ब्रेन, लंग्स सहित शरीर के अन्य अंगों को भी जल की जरुरत होती है. पानी की कमी से अनेक शारीरिक समस्या होती है. अतः सुबह उठने के बाद ही और दिनभर शरीर को जलयुक्त करें और रखें. इससे शरीर के सारे अंग ठीक ढंग से काम करते हैं. 3) एक्सरसाइज करें: शरीर को फिट रखने के लिए रोजाना कम-से-कम आधा घंटा एक्सरसाइज या योगाभ्यास करना जरुरी है. इसीलिए तो प्रधानमंत्री ने देशवासियों को 'फिटनेस का डो़ज, आधा घंटा रोज' का मंत्र दिया है. यहां नियमितता का बड़ा रोल है. 4) पौष्टिक आहार लें: फिटनेस के लिए पौष्टिक आहार का भी बहुत महत्व है. अतः अपने दैनिक आहार में अन्न, दाल, दूध, दही, घी, मौसमी सब्जी-फल आदि को शामिल करना आवश्यक है. हां, विद्यार्थियों  को अपने इलाके में प्रचलित खानपान से खुद को जोड़े रखना चाहिए, क्यों कि हर इलाके की प्राकृतिक स्थिति के अनुरूप वहां खानपान का एक सिस्टम होता है जिससे सामान्यतः वहां के लोगों की शारीरिक जरूरतें पूरी हो जाती हैं. 
 

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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 18.10.2020 अंक में प्रकाशित
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Tuesday, December 1, 2020

संभव-असंभव और आपकी सोच

                                     - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

स्वामी विवेकानंद कहते हैं, "संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरीका है, असंभव से भी आगे निकल जाना.” अपने शब्दकोश में असंभव जैसे शब्द न होने की बात करनेवाले फ़्रांसिसी क्रांति के एक मुख्य योद्धा और बाद में फ़्रांस के सम्राट का पद ग्रहण करनेवाले नेपोलियन बोनापार्ट के जीवनवृत से हमें उनकी इस सोच का परिचय मिलता है.
दिलचस्प और विचारणीय बात यह है कि इतिहास के पन्नों में असाधारण और अकल्पनीय कीर्तिमान और उपलब्धियों के लिए जितने भी लोगों के नाम दर्ज हैं, संभव है कि उनको भी एक समय वह काम असंभव प्रतीत हुआ हो, परन्तु उन्होंने अपने संकल्प, समर्पण व अथक परिश्रम से उसे संभव कर दिखाया. 


यहां अमेरिका के मशहूर तैराक मार्क स्पिट्ज और उनके हमवतन माइकल फेल्प्स का जिक्र बहुत प्रासंगिक है.
मार्क स्पिट्ज ने 1972 के ओलंपिक में एक साथ सात गोल्ड मेडल जीतकर असंभव को संभव कर दिखाया था. उससे पहले 1936 के बर्लिन ओलिम्पिक में अमेरिकी धावक जेसी ओवंस ने  और 1964 के टोक्यो ओलिम्पिक में अमेरिकी तैराक डॉन स्कोलेंडर ने चार-चार स्वर्ण पदक जीतने का रिकॉर्ड बनाया था. जाहिर है कि  मार्क स्पिट्ज ने एक ही ओलिम्पिक में चार गोल्ड मैडल के विश्व रिकॉर्ड को तोड़कर सात गोल्ड मैडल जीतने का अविश्वसनीय कीर्तिमान बना दिया. आगे जो हुआ वह और भी आश्चर्यचकित करनेवाला सत्य था.  अमेरिकी तैराक माइकल फेल्प्स  ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक में आठ गोल्ड मैडल जीतकर असंभव को संभव बनाने का नया इतिहास रच दिया. सच कहते हैं कि इस दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं. हम वो सब कर सकते है, जो हम सोच सकते है और हम वो सब सोच सकते है, जो आज तक हमने नहीं सोचा. 


अमूमन सभी छात्र-छात्राओं के जीवन में एकाधिक बार ऐसा वक्त आता है जब उन्हें लगता है कि यह काम बिलकुल असंभव है. इसके अनेक कारण हो सकते हैं, जिसमें  एक बड़ा कॉमन कारण होता है विद्यार्थी की सोच.
अनेक महान लोगों ने अलग-अलग सन्दर्भ में यह स्पष्ट तौर पर कहा है कि हम जैसा सोचते हैं, धीरे-धीरे वैसा ही बनते जाते हैं. बराबर जीतनेवाले और बराबर हारनेवाले दो विद्यार्थियों में फर्क इसी बात का होता है, जबकि दोनों एक तरह की क्षमतावाले होते हैं. दरअसल, होता यह है कि एक विद्यार्थी ने किसी टास्क के विषय में ठीक से जाने बिना या उसका विश्लेषण किए बिना ही उसे न करने का मन बना लिया. अब सोच के स्तर पर वह टास्क संभव होते हुए भी असंभव प्रतीत होने लगता है. इससे वह अंदर से कमजोर पड़ता जाता है  और फिर खुद को उस टास्क को करने लायक नहीं समझता है. कहने का मतलब यह कि आप खेलने से पहले ही मैदान छोड़ देते हैं. और देखा और पाया गया है कि क्विट करनेवाले कभी विन नहीं करते हैं. इसके विपरीत, जब कोई भी विद्यार्थी पॉजिटिव सोच और एक्शन के साथ आगे बढ़ता है तो वह नेपोलियन हिल की इस बात को साबित करता है कि मस्तिष्क किसी चीज की कल्पना कर सकता है तो उसे साकार भी कर सकता है. हां, यहां अल्बर्ट आइंस्टीन की इस बात को याद रखना जरुरी है कि हर व्यक्ति जीनियस है, लेकिन अगर आप किसी मछली की क्षमता उसके पेड़ पर चढ़ने से आंकना चाहते हैं तो वह जीवनभर यही सोच कर जीएगी कि वह तो निरा बेवकूफ है. कहने का अभिप्राय यह कि विज्ञान के किसी विद्यार्थी से कॉमर्स की परीक्षा में टॉप करने की अपेक्षा करना सही नहीं है. लेकिन अपने विषय की परीक्षा में परीक्षा से पहले ही खुद को फेल समझकर ड्राप हो जाना भी उचित नहीं माना जा सकता है.  तो विद्यार्थियों को क्या करना चाहिए?


1) किसी भी टास्क को बिना सोचे-समझे या जांचे-परखे सीधा ना न कहें और न ही किसी साथी-सहपाठी की बात पर कोई नेगेटिव फैसला कर लें. 2) जिस भी टास्क को हाथ में लें, उसके प्रति यह भाव मन में जरुर रखें कि यह हो सकता है और इसे अच्छी तरह करने की  पूरी चेष्टा करेंगे. 3) काम के बीच में कभी भी कोई रुकावट आए, कारण चाहे जो भी हो, बराबर अपनी क्षमता और अपने आत्मविश्वास पर  भरोसा बनाए रखें और काम करते रहें, और ज्यादा दृढ़ निश्चय के साथ. 4) टास्क थोड़ा कठिन रहे या रखें तो बेहतर होगा. ऐसा इसलिए कि मानव स्वभाव में यह बात अंतर्निहित होता है कि वह कठिन या विपरीत परिस्थिति में पहले से बेहतर परफॉर्म करता है. 5) यथोचित प्रयास के बाद भी अगर असफलता मिलती है तो उस लम्हे को सेलिब्रेट करके यादगार बना दें जिससे कि अगले प्रयास को इतना बेहतर बनाने का जुनून हो कि संभव की संभावना दो सौ फीसदी और असंभव की शून्य हो जाए. 

 (hellomilansinha@gmail.com) 


             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
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