- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
पिछले दिनों जेईई, नीट तथा कई अन्य प्रतियोगिता परीक्षाओं का रिजल्ट घोषित हुआ है. आम तौर पर रिजल्ट निकलते ही सफल-असफल दोनों तरह के छात्र-छात्राओं का लोगों की प्रतिक्रियाओं से सामना होता है. इस समय उन्हें "कुछ तो लोग कहेंगे" वाली बात सत्य प्रतीत होती है. अगर सफल हुए तो भी घर-बाहर के कुछ लोग बधाई और वाहवाही देने के साथ-साथ मार्क्स-ग्रेड-रैंक आदि के विषय में कई प्रकार के सवाल करते हैं. असफल हुए तो फिर ऐसे लोग सामने और पीठ पीछे न जाने क्या-क्या कहते हैं. सोचनेवाली बात यह है कि इन सब प्रतिक्रियाओं से किसी विद्यार्थी के रिजल्ट में कोई फर्क नहीं पड़नेवाला है. फिर भी कुछ लोग आदतन ऐसा आचरण करते हैं. हकीकत तो यह है कि रिजल्ट जो होना था, वह तो हो गया. अब सफल-असफल दोनों तरह के विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों को इस पर सोच-विचार कर आगे की योजना तय करनी है. हां, यह कहना गलत नहीं होगा कि कुछ विद्यार्थी ऐसे मौकों पर दूसरे की प्रतिक्रिया को जानने और उन्हें तरजीह देने में रूचि रखते हैं और अनेक मामलों में उन्हें बिना सोचे-समझे सच मानकर अपना स्ट्रेस भी बढ़ा लेते हैं. यह सही नहीं है. दरअसल, ऐसी स्थिति में विद्यार्थियों को अपना रिएक्शन या रिस्पांस देने से पहले निम्न बातों को महत्व देना चाहिए.
1. किसी की बात का बुरा न मानें, क्यों कि आपसे बेहतर कोई नहीं जानता कि आपने पिछले दिनों क्या-क्या किया है, आप फिलहाल क्या कर रहे हैं और आगे क्या करने की योजना है. और सब यह मानते हैं कि सामान्यतः कार्य या कोशिश के अनुरूप ही परिणाम मिलते हैं. अब अगर कोई दूसरा व्यक्ति - दोस्त, सहपाठी या अन्य कोई, आपके रिजल्ट की आलोचना में कुछ कह दे तो बस उसे एक बार सुन लें. बुरा न मानें और नाराज या गुस्सा न हों, क्यों कि इससे आपकी स्थिति तो बदलेगी नहीं. उल्टा मूड और रिश्ता खराब होने का जोखिम जरुर रहेगा. हां, आप इस संभावना को भी बिल्कुल ख़ारिज नहीं कर सकते हैं कि अगर तटस्थ रहकर आप उनके कमेंट्स को सुनें तो शायद कुछ अच्छी बात पता चल जाए और अनायास कुछ लाभ हो जाय.
2. आपको क्या लगता है, यह ज्यादा अहम है. लोग तो कुछ-न-कुछ कहेंगे, लेकिन अपने जीवन के प्रति आपकी सोच का ही सबसे ज्यादा महत्व है. अगर आप सोचते हैं कि आपने जो किया है और जो करनेवाले हैं, वह आपको आपके लक्ष्य तक जरुर ले जाएगा, तो फिर कोई बात नहीं. लेकिन अगर आपको लगता है कि पीछे जो कुछ किया, वह सही नहीं था या उसमें सुधार और बेहतरी की बहुत गुंजाइश है, तो आपको गंभीर सोच-विचार और जरुरी हो तो परामर्श-विमर्श करके यथाशीघ्र उस पर अमल करना पड़ेगा. चुनौतीपूर्ण और मुश्किल वक्त में ही आपकी सही परीक्षा होती है. अतः इस समय अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना और सही दिशा से न भटकना हर विद्यार्थी के लिए अनिवार्य है.
3. खुद को आगे के लिए अच्छी तरह तैयार करें. देखिए स्वामी विवेकानंद ने कितनी अच्छी बात कही है. वे कहते हैं, "दुनिया क्या सोचती है, उन्हें सोचने दो. अपने इरादे मजबूत रखो. दुनिया एक दिन आपके कदमों में होगी." कहने का तात्पर्य यह कि अपने उत्कृष्ट कार्य से लोगों को यथोचित उत्तर देने का प्रयास सबसे अच्छा होता है. कहा भी गया है कि इतनी शांति और समर्पण से अपना काम करें कि आपकी सफलता का शोर सबको सुनाई दे. निसंदेह इसके लिए "कल से बेहतर हो आज" के सिद्धांत को हकीकत में तब्दील करने की जरुरत होगी. अनावश्यक बातों से दूर रहकर पांडव पुत्र अर्जुन की तरह केवल अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करना पड़ेगा. हर समय सफलता के बारे में सोचने के बजाय अपने प्रयास की गुणवत्ता को बराबर उन्नत करना पड़ेगा.
4. हमेशा आशावादी बने रहें, परिस्थिति चाहे जैसी भी हो. आशावाद वह विश्वास है जिसके सहारे कुछ भी हासिल किया जा सकता है. विश्व इतिहास के पन्ने उन सच्ची कहानियों से भरे हैं, जिसमें आशा का दामन थामे लाखों लोगों ने अपने कठिन प्रयास से सफलता के नए-नए कीर्तिमान बनाए हैं. प्रख्यात प्रबंधन गुरु डेल कार्नेगी कहते हैं कि दुनिया की ज्यादातर महत्त्वपूर्ण चीजें उन लोगों द्वारा हासिल की गई हैं जो प्रतिकूल परिस्थिति में भी आशा के साथ अपने प्रयास में लगे रहे." ऐसे भी निराशा और आशा के दो नावों के बीच चुनाव की स्थिति हो तो कोई भी विद्यार्थी निराशा के नाव में चढ़ कर मंजिल से बहुत दूर मंझधार में क्यों फंसा रहेगा?
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 01.11.2020 अंक में प्रकाशित
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