- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ... ...
खुद को जाने बिना, दुनिया को जानने का प्रयास वांछित फल नहीं देता है. मूल को जानेंगे तभी विराट को जानना आसान होगा. क्षिति जल पावक गगन समीरा अर्थात पंच तत्वों - पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु से निर्मित हर मनुष्य जब तक इन मूल तत्वों की प्रकृति से खुद को जोड़ेगा नहीं और उन्हें अच्छी तरह जानेगा नहीं, तब तक उसे खालीपन, असंतुलन और अपूर्णता का एहसास होता रहेगा.
अगर हम प्रकृति को ठीक से जाने-समझें और उसकी रीति-नीति का अनुसरण करें तो दंभ और आडम्बर से पीड़ित होने और रहने के बजाय सदाशयता-उदारता के भाव से भरते जायेंगे और धीरे-धीरे आर्ट ऑफ़ गिविंग में भी पारंगत होते जायेंगे. ऐसे देखा जाए तो मानव का मूल स्वभाव प्रकृति के समान ही है. जीयो और जीने दो का सिद्धांत. उसमें दूसरे को मदद करने का भाव विद्दमान होता है. बेशक कई तरह के प्रदूषण के कारण व्यवहार में वे वैसा नहीं कर पाते. गुरुजन कहते हैं कि जरुरतमंदों की सहायता करना हर धर्म का मूल आधार है और मानव के आत्मविकास की पूर्व शर्त. जिस व्यक्ति में सहायता-सहयोग-सेवा का भाव भरा होता है वह अन्य मानवीय गुणों से संपन्न होता जाता है. परिणामस्वरुप वह जरुरतमंदों की मदद करने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देता है. गौरतलब बात है कि यह निष्काम कर्म से प्रेरित कार्य है अर्थात मदद के कार्य में न तो दिखाने की बात होती है और न ही उसके एवज में कुछ पाने की. हमारे वेदों, उपनिषदों व अन्य धार्मिक ग्रंथों में इससे जुड़ी अनेक शिक्षाप्रद बातें दर्ज हैं जिनसे अनेक लोग प्रेरणा ग्रहण करते रहे हैं.
स्वामी विवेकानंद का कहना है कि लोगों के दर्शन और धर्म में कितना ही भेद क्यों न हो, जो व्यक्ति अपना जीवन दूसरों के लिए अर्पित करने को उद्दत रहता है, उसके प्रति समग्र मानवता श्रद्धा और भक्ति से नत हो जाती है... ...सभी उपासनाओं का यही धर्म है कि मनुष्य शुद्ध रहे तथा दूसरों के लिए सदैव भला सोचे और करे. वह मनुष्य जो भगवान शिव को निर्धन, दुर्बल तथा रुग्ण व्यक्ति में भी देखता है वही सचमुच शिव जी की सच्ची उपासना करता है, परन्तु यदि वह उन्हें केवल मूर्ति में ही देखता है तो कहा जा सकता है कि उसकी उपासना अभी नितांत प्रारंभिक अवस्था में ही है. यदि किसी मनुष्य ने किसी एक निर्धन मनुष्य की सेवा व देखभाल बिना जाति-पांति अथवा ऊँच-नीच के भेद-भाव के केवल इस विचार के अधीन की है कि उसमें साक्षात भगवान शिव विराजमान हैं, तो शिव जी उस मनुष्य से अधिक प्रसन्न होंगे, बनिस्पत उस व्यक्ति के जो शिव जी को सिर्फ मंदिर में देखता है.
वैश्विक महामारी के कठिनतम दौर में देश-विदेश के करोड़ों लोगों को अप्रत्याशित मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. अपने देश में दिहाड़ी मजदूर हो या कॉन्ट्रैक्ट कामगार या असंगठित क्षेत्र में काम में लगे अन्य करोड़ों लोग, सबको रोटी, कपड़ा और आवास की मूलभूत आवश्यकताओं से जूझना पड़ रहा है. महामारी और अन्य बीमारी से ग्रसित होने का खतरा तो सिर पर है ही. स्वाभाविक रूप से ऐसे समय समाज के समृद्ध लोगों के साथ-साथ मदद की भावना से भरे सज्जन लोगों से यह उम्मीद की जाती है कि वे आगे आ कर गरीब, लाचार और बीमार लोगों की दिल खोलकर मदद करें. यह मदद खाना या कपड़ा या आश्रय या दवा आदि मुहैया करके की जा सकती है. सच तो यह है कि जब हम दूसरों की मदद करते हैं और उन्हें कुछ राहत पहुंचाते हैं, तब न केवल मदद पानेवाले लोगों को संतोष और सुकून के कुछ पल दे पाते हैं, बल्कि खुद भी इसे महसूस कर अच्छा फील करते हैं. इतना ही नहीं ज्ञानीजनों का तो कहना है कि ईश्वर उन्हीं पर कृपा बनाए रखते हैं जो औरों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं. अच्छा कभी सोचा है आपने कि भगवान ने उन बेसहारा और जरूरतमंद लोगों की मदद करने का मौका देकर आपको उनके प्रतिनिधि बनकर काम करने का कितना बड़ा गौरव प्रदान किया है. विचारणीय सवाल यह भी है कि अगर ईश्वर ने आपको इस लायक बनने में अपना आशीर्वाद दिया है या आपकी कोई मदद की है तो उनके भक्त या अनुयायी या समर्थक या प्रशंसक बनकर आप भी अपने आसपास के लोगों को यथासंभव सहायता करें - धन से, ज्ञान से, मार्गदर्शन से या किसी अन्य तरीके से.
सच तो यह है कि दूसरों की सहायता करने के लिए सिर्फ धन की जरूरत नहीं होती. उसके लिए एक अच्छे मन की ज्यादा जरूरत होती हैं. हां, मानव सभ्यता का इतिहास परोपकार के प्रति आसक्त राजाओं और अन्य लोगों के प्रेरक कार्यों के वर्णन से भरा है. सूर्यवंश के राजा हरिश्चंद्र के सत्य और सहायता के प्रति सम्पूर्ण समर्पण की कथाओं से तो आमजन भी परिचित हैं. ख़ुशी की बात है कि विश्वभर में ऐसे बहुत से लोग हैं जो सही तरीके से धन उपार्जित करते हैं और उसका एक हिस्सा परोपकार के निमित्त खर्च भी करते हैं. हम सबने देखा-सुना है कि ऐसे लोग इसी भावना से प्रेरित होकर समाज और देश हित में स्कूल-कॉलेज, अस्पताल, धर्मशाला, अनाथालय आदि के निर्माण व संचालन के साथ-साथ कई अन्य तरीके अपनाते रहे हैं. सेवा, सहयोग और समानुभूति से प्रेरित ऐसे लोग सदैव दूसरे की मदद करके संतोष और सुख अनुभव करते हैं. हम सब भी इस अनुभव के हकदार बन सकें तो सबका मंगल होगा.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय अखबार "प्रभात खबर" के सारे संस्करणों में 20.04.2020 को प्रकाशित
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