- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
हाल ही में "परीक्षा पे चर्चा" प्रोग्राम में प्रधानमंत्री ने देशभर से आए स्कूली छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों-शिक्षकों से बात करते हुए अनेक अनुकरणीय बातें बताईं. बातों-बातों में प्रधानमंत्री ने बच्चों से कहा, "स्मार्ट फोन आपका जितना समय चोरी करता है, उसमें से 10 प्रतिशत कम करके आप अपने मां, बाप, दादा, दादी के साथ बिताएं. तकनीक हमें खींचकर ले जाए, उससे हमें बचकर रहना चाहिए. हमारे अंदर ये भावना होनी चाहिए कि मैं तकनीक को अपनी मर्जी से उपयोग करूंगा." आइए, मोबाइल / स्मार्ट फोन की उपयोगिता पर थोड़े विस्तार से चर्चा करते हैं.
हाल ही में एक चैनल में एक सर्वे के हवाले से कहा गया कि सामान्य तौर पर एक व्यस्क भारतीय एक साल में 1800 घंटे अपने मोबाइल / स्मार्ट फ़ोन पर बिताता है यानी साल के करीब ढ़ाई महीने. अगर दिनभर के चौबीस घंटों में नींद की अवधि के औसतन आठ घंटे को घटा दिया जाय, तो सालभर में मोबाइल को समर्पित समय लगभग चार महीना होता है. कई बड़े शहरों में किए गए सर्वे में यह बात निकल कर सामने आई है कि छात्र-छात्राएं आम तौर पर सालभर में इससे कहीं ज्यादा समय मोबाइल से चिपके रहते हैं. किसी भी महानगर या बड़े शहर में राह चलते या स्टेशन-बस स्टॉप-एअरपोर्ट पर प्रतीक्षारत विद्यार्थियों को देख लें, मोबाइल पर उनकी बढ़ती निर्भरता का अंदाजा लग जायगा. देशभर में स्मार्टफ़ोन के कुल खरीददारों में विद्यार्थियों की बढ़ती संख्या भी इस ओर स्पष्ट संकेत करती हैं. खैर, अगर सालभर में 1800 घंटे को ही लेकर बात करें तो छात्र-छात्राएं दिनभर में करीबन इतने घंटे अध्ययन आदि में व्यतीत करने से चूक जाते हैं. लिहाजा, इसका दुष्परिणाम उनके कैरियर और रिजल्ट में दिखाई पड़ता है.
प्रसंगवश मोबाइल के लगातार और ज्यादा इस्तेमाल से विद्यार्थियों के सेहत - मानसिक और शारीरिक दोनों, को होनेवाले नुकसान पर संक्षिप्त चर्चा करते चलते हैं. स्वास्थ्य संबंधी एकाधिक रिपोर्ट में कहा गया है कि मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडियो तरंगों के दुष्प्रभाव के कारण अनावश्यक थकान, पाचन की शिकायत, सिर दर्द, स्मरण शक्ति में गिरावट के साथ-साथ श्रवण और नेत्र दोष जैसी आम समस्याएं होती हैं. कालान्तर में इससे ब्रेन ट्यूमर, ह्रदय रोग, आंख-कान -पेट के रोग, डिप्रेशन आदि से ग्रसित होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है.
बताने की जरुरत नहीं कि परीक्षा के मौसम में मोबाइल का सामान्य इस्तेमाल भी (यानी सालभर में 1800 घंटे के हिसाब से) विद्यार्थियों के लिए बहुत नुकसानदेह साबित होता है. इस समय उन पर परीक्षा में अच्छा करने का प्रेशर रहता है और इस कारण वे बहुत कुछ पढ़ना तो चाहते हैं, लेकिन मोबाइल का मोह और उससे चिपके रहने की बुरी आदत पीछा नहीं छोड़ती है. नतीजतन, संतुलन बिगड़ता है, तनाव बढ़ता है और वे अध्ययन पर फोकस नहीं कर पाते. दोस्तों को फोन करने या उनका फोन आने का सिलसिला भी शायद ही रुकता या कम होता है. हाल के हफ़्तों में स्ट्रेस मैनेजमेंट और मोटिवेशन के सेशन में कई बड़े स्कूलों में दसवीं और बारहवीं क्लास के विद्यार्थियों से बात करते हुए जब मैंने उनसे परीक्षा से कम-से-कम एक महीने पहले से मोबाइल से पूरी तरह दूर रहने के दसाधिक फायदे बताए, तो मेरे सुझावों से लगभग सभी विद्यार्थियों ने सहमति जताई. हां, मैंने उनसे कहा कि मोबाइल से उनके प्रगाढ़ रिश्ते के मद्देनजर इसपर अमल करना थोड़ा कठिन तो है, लेकिन असंभव नहीं.
विद्यार्थियों के लिए यह विचारणीय सवाल है कि क्या मोबाइल ही उनका जीवन है या उनके जीवन को बस थोड़ा आसान करनेवाला एक छोटा जरिया या उपकरण है? परीक्षा के समय और बाद में भी अगर वे मोबाइल/स्मार्ट फोन को जरुरी संचार और उपयोगी संवाद-जानकारी आदि का माध्यम बना सकें तो यक़ीनन विद्यार्थियों को बहुत सारे जीवनोपयोगी फायदे होंगें. रिचार्ज के लिए पैसे कम लगेंगे, समय की बड़ी बचत होगी, अपनी और दोस्तों की सेहत अच्छी रहेगी, मनोरंजन के नाम पर गैर-जरुरी और ज्यादातर नकारात्मक चीजों से बचना संभव होगा, माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी और अन्य परिजनों के साथ क्वालिटी टाइम बिताने और सीखने -सीखाने का अच्छा अवसर मिलेगा, जैसा कि प्रधानमंत्री ने उनसे कहा. इतना ही नहीं, रात में नींद अच्छी आएगी, स्वाद लेकर भोजन कर पायेंगे, अध्ययन के अलावे खेलकूद पर फोकस कर पायेंगे. इस सबका समेकित असर विद्यार्थियों की ख़ुशी, स्वास्थ्य और सफलता में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होगा. अतः मोबाइल को अपना जीवन नहीं, जीवन को थोड़ा सुविधाजनक बनाने का बस एक छोटा साधन मानें. बीच-बीच में बिना मोबाइल के जीवन जी कर तो देखें. वाकई अच्छा लगेगा.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 16.02.2020 अंक में प्रकाशित
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