- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मानस का निवास होता है, ऐसा ज्ञानीजन और हेल्थ एक्सपर्ट दोनों कहते-बताते रहे हैं. परीक्षा के ठीक पहले कई विद्यार्थियों का अस्वस्थ या बीमार होना कोई नयी बात नहीं है. चिंता की जो बात है वह यह कि ऐसे विद्यार्थियों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है. इसके दुष्परिणाम बहुआयामी और व्यापक होते हैं - विद्यार्थी, अभिभावक, परिवार, समाज और देश, सबके लिए.
स्कूल-कॉलेज में मेरे हेल्थ मोटिवेशन सेशन के दौरान विद्यार्थियों से बातचीत के क्रम में यह जानने-समझने का सुअवसर मिलता है कि आखिर क्यों पेट भर भोजन करने के बाद भी कई विद्यार्थियों को ताकत और ऊर्जा की कमी महसूस होती है. थोड़ी गहराई में जाकर बात करने पर कई बातें सामने आई. जब आगे इनकी पड़ताल की गई तो कारण और स्पष्ट होते गए. मैंने विद्यार्थियों को बताया कि आप क्या खा रहे हैं और कैसे खा रहे हैं, अच्छी सेहत बनाए रखने में इसका बड़ी भूमिका होती है. आइए, थोड़े विस्तार से इस पर चर्चा करते हैं.
विद्यार्थियों को चार श्रेणी में रख कर बात करते हैं : 1) जो विद्यार्थी अपने घर में रहकर पढ़ाई करते हैं, 2) जो घर से दूर दूसरे कस्बे-शहर-महानगर में हॉस्टल में रहते हैं, 3) जो दूसरे जगह किराए के मकान में रहते और खुद खाना बनाकर खाते है और 4) वे विद्यार्थी जो किराए के मकान में रहते हैं, लेकिन होटल में या होटल से मंगाकर खाना खाते हैं. सभी जानते हैं कि स्विगी, जोमेटो, मेक्डोनाल्ड आदि से घर बैठे खाना मंगाकर खाने का चलन इन दिनों शहरों-महानगरों में बढ़ रहा है. बहरहाल, गौर करेंगे तो इन चार श्रेणी के विद्यार्थियों के खान-पान में बड़ा अंतर दिखेगा. आगे आकलन-विश्लेषण करने पर खान-पान का इन सभी के सेहत पर अच्छा-बुरा असर भी साफ़ दिखाई देगा. ऐसा होना बिलकुल स्वाभाविक है.
मानव शरीर रूपी इस अदभुत मशीन के बारे में जितना जानें, कहें और लिखें, कम ही होगा. बचपन से बुढ़ापे तक अनवरत धड़कने वाला जहां हमारा यह दिल है, वहीं अकल्पनीय सोच, खोज तथा अनुसंधान-आविष्कार का जनक हमारा मस्तिष्क. सोचने से करने तक के सफ़र में निरंतरता को साधे रखने का इस मशीन का कोई जोड़ नहीं है. लेकिन यह सब बस यूँ ही नहीं होता रहता है. सच तो यह है कि इस शरीर को चलाए रखने के लिए आहार रूपी ईंधन की सबको रोजाना जरुरत होती है. यह भी उतना ही सही है कि जैसे मिलावट वाले तेल से गाड़ी की सेहत खराब हो जाती है, वैसे ही अशुद्ध एवं मिलावटी खान–पान से हमारा शरीर कमजोर, अस्वस्थ और अंततः बीमार हो जाता है.
दिलचस्प बात है कि ज्यों ही विद्यार्थियों के बीच उनके खान–पान की चर्चा करते हैं, त्यों ही वे एक विराट बाजार पर प्रकारांतर से उनकी बढ़ती निर्भरता की बात स्वीकारते हैं. इस बढ़ते बाजार में आजकल लाखों नहीं बल्कि करोड़ों खाद्द्य एवं पेय पदार्थ – ब्रांडेड-अनब्रांडेड, प्रोसेस्ड-सेमी प्रोसेस्ड, पैक्ड–अन पैक्ड, नेचुरल–आर्टिफीसियल, कारण-अकारण लुभावने पैकेट या डब्बे में सब जगह उपलब्ध है. आसानी से उपलब्ध होने और स्वाद में चटपटा होने के कारण छात्र-छात्राएं जाने-अनजाने इनका बहुत मात्रा में सेवन भी कर रहे हैं. इन चीजों का सेवन करते वक्त उन्हें यह याद नहीं रहता कि वे इन कम पौष्टिक या अपौष्टिक वस्तुओं को खाकर अपने शरीर को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं.
स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी में अगले कुछ महीने परीक्षा को समर्पित रहेंगे. इस दौरान विद्यार्थियों को अपने अध्ययन के साथ-साथ खान-पान पर भी विशेष ध्यान देने की जरुरत होगी. खाद्य पदार्थों के विज्ञापन के बजाय उसके फ़ूड वैल्यू और उसका सेहत पर पड़नेवाले प्रभाव पर फोकस करना बेहतर होगा. जहां तक संभव हो घर का बना ताजा खाना खाएं. बेशक थोड़ा कम खाएं, लेकिन जो कुछ भी खाएं बिलकुल पौष्टिक खाएं. हरी सब्जी और मौसमी फल को आहार में शामिल करें. सुबह का नाश्ता बहुत पौष्टिक हो, इसका ध्यान जरुर रखें. खाते वक्त, केवल खाने पर फोकस करें और खाने में जल्दबाजी भी न करें. बैठकर आराम से धीरे-धीरे खूब चबाकर और स्वाद लेकर खाएं. इससे आप अपेक्षित ऊर्जा, शक्ति और उत्साह से युक्त रह पायेंगे और तभी बेहतर रिजल्ट हासिल भी कर पायेंगे. इस दौरान सभी अभिभावक, हॉस्टल के अधीक्षक-वार्डन-केयरटेकर को भी विशेष रूप से सचेत रहने की जरुरत होगी. यह उनकी भी बड़ी जिम्मेदारी है कि वे विद्यार्थियों को रूटीन बनाकर न केवल पढ़ने-लिखने के लिए, बल्कि पौष्टिक भोजन करने के लिए सतत प्रेरित करते रहें. आखिर यह व्यक्ति-समाज-देश सबके भले की बात है.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 29.12.2019 अंक में प्रकाशित
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