- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ...
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सभागार से सड़क तक, स्कूल-कॉलेज से वर्कप्लेस तक कमोबेश हर जगह हमें शिष्टाचार और सद्व्यवहार में कमी दिखाई पड़ती है. कथनी और करनी का अंतर भी बढ़ता जा रहा है, जब कि हम मर्यादा पुरुषोत्तम राम की खूब पूजा-अर्चना और गुणगान भी करते हैं. हायरिंग -फायरिंग के आम कॉरपोरेट कल्चर में लीडर के स्थान पर बॉस शब्द का प्रयोग भी आम हो चला है. मानवीयता की मूल भावना को भूलकर कार्यस्थल में पद के अहंकार से चालित लोग अपने अधीनस्थ कर्मियों को बात-बेबात डांटते-फटकारते रहते हैं, हालांकि पद (इसका एक अर्थ लात भी होता है) को सिर पर रखकर चलने से औंधे मुंह गिरना लाजिमी है, ऐसा ज्ञानीजन कहते रहे हैं. बहरहाल, इसके निःसंदेह बहुआयामी दुष्परिणाम होते हैं. बहुत सारे भारतीय कंपनियों में खराब कार्यसंस्कृति का यह एक मुख्य कारण है. स्वाभाविक रूप से इसका बुरा असर कंपनी के बैलेंस शीट सहित उसके मार्केट रेपुटेसन पर स्पष्ट दिखाई पड़ता है. विचारणीय बात यह है कि कंपनी में अगर आपसी रिश्ते ठीक नहीं होंगे तो इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव कमोबेश सभी कर्मचारियों के घर पर भी पड़ेगा. घरेलू माहौल तनावपूर्ण होगा. लोग अनावश्यक रूप से कई रोगों से ग्रसित होंगे और बेवजह अतिरिक्त आर्थिक बोझ से कर्मी और कंपनी दोनों परेशान भी होंगे. आइए इस चर्चा को थोड़ा आगे बढ़ाते हैं.
सबसे पहले एक अहम विचारणीय तथ्य. मेडिकल साइंस भी कहता है कि किसी के साथ भी गलत या अमर्यादित व्यवहार से सबसे पहले हम स्वयं नेगेटिव एनर्जी से भर जाते हैं, जिसका बुरा असर हमारे मेटाबोलिज्म पर होता है. “जैसा बोयेंगे, वैसा ही काटेंगे” सिद्धांत के अनुसार भी हमें आज नहीं तो कल ब्याज समेत उसी तरह का व्यवहार मिलता है, जिससे हमारा तनाव बहुत बढ़ता है. और अगर यह सिलसिला बहुत दिनों तक जारी रहता है तो तनाव जनित कई बड़े रोगों का भी हम आसानी से शिकार हो सकते हैं. सेडिस्ट या परपीड़ासुख पानेवाले लोगों की बात छोड़ दें तो भी सोचनेवाली बात यह है कि क्या जानबूझकर गलत व्यवहार करनेवाले (या बॉस प्रवृति वाले) लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ होते हैं? आखिर ऐसे सभी लोग इस तरह का व्यवहार क्यों करते हैं जिससे संस्थान के नए तथा युवा कर्मी सबसे ज्यादा दुष्प्रभावित होते हैं?
अंदर से कमजोर लोग, असुरक्षा की भावना या हीन भावना से ग्रसित लोग या बहुत जल्दी सब कुछ पाने को लालायित लोग या बराबर तनाव से पीड़ित रहनेवाले लोग जाने-अनजाने ऐसा अमानवीय व्यवहार करते पाए जाते हैं. आक्रामक या दबंग या सुपेरिओरिटी काम्प्लेक्स से ग्रसित लोग भी ऐसा खूब करते हैं. पाया गया है कि इस श्रेणी के लोग भी कहीं-न-कहीं अंदर से दुर्बल और अनजाने भय के शिकार होते हैं. बुद्धि के मामले में भी वे कमतर पाए गए हैं. सो, अपनी कमियों को छिपाने और अपने को बड़ा और पावरफुल दिखाने के प्रयास में डराने-धमकाने का तर्कहीन एवं शॉर्टकट तरीका अपनाते हैं.
एक दिलचस्प बात यह भी है जिसे आपने भी नोटिस किया होगा कि कई लोग बस अपने आसपास के लोगों में अपना अच्छा इम्प्रैशन बनाने के लिए अच्छा होने या अपने आचरण को अच्छा दिखाने का प्रयास करते हैं. इस काम को अंजाम देने के लिए अनेक तथाकथित सेलेब्रिटी पीआर (पब्लिक रिलेशन) फर्म की सेवाएं लेते हैं. इस चालाकी या अभिनय का उन्हें कुछ तात्कालिक लाभ भी हासिल हो जाता है. लेकिन देर-सबेर उनके इस कृत्रिम रूप का पर्दाफाश होना तय होता है. कहते हैं न कि झूठ का मुखौटा सत्य को बाहर आने से ज्यादा दिन तक नहीं रोक पाता है. और जब ऐसा होता है तब उनकी सही ढंग से अर्जित थोड़ी-बहुत विश्वसनीयता भी ख़त्म हो जाती है.
कहने का तात्पर्य यह कि हम कितना भी कीमती और सुन्दर कपड़े पहन लें, बहुत अमीर हों या बड़ी-बड़ी डिग्रियों के मालिक हों या दिखने-दिखाने के लिए कुछ भी कर लें, अगर आम लोगों से हमारा व्यवहार अमानवीय और नकारात्मक है तो अंततः सब कुछ निरर्थक साबित होता है. महात्मा गांधी कहते हैं, "मानवता की महानता मानव होने में नहीं है, बल्कि मानवीय होने में है." दरअसल, अच्छा और कुशल व्यवहार हमारे जीवन का आईना होता है. तथ्य, तर्क और संयम इसके साथी होते हैं. वस्तुतः हमारे आचरण से हमारे संस्कार का दर्शन होता है. हमारे व्यवहार से ही घर-बाहर हमारी अच्छी या बुरी छवि बनती है. हमारा अच्छा आचरण ही लोगों द्वारा हमारे चरण स्पर्श करने का स्वाभाविक कारण भी बनता है. चाणक्य तो कहते हैं कि अच्छे व्यवहार से दुश्मन तक को जीता जा सकता है. जटिल राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने में वार्ताकारों का शिष्ट व मानवीय व्यवहार निर्णायक भूमिका अदा करता रहा है. इतिहास के पन्नों में ऐसी हजारों घटनाएं मोटे अक्षरों में दर्ज हैं. वाकई प्रेरक बात यह है कि सभी सच्चे और अच्छे लोगों का आचरण केवल इन भावनाओं पर आधारित नहीं होता है, बल्कि वे तो इससे आगे उस भावना से प्रेरित हो कर काम करने की पूरी कोशिश करते हैं जिसका उल्लेख गीता के अध्याय -3 के श्लोक -21 में है. इसमें श्री कृष्ण कहते हैं :
"यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।
अर्थात श्रेष्ठ व्यक्ति जैसा आचरण करते हैं, सामान्य लोग भी वैसा ही आचरण करने लगते हैं. श्रेष्ठ जन जिस कर्म को करते हैं, उसी को प्रमाण या आदर्श मानकर सामान्य जन उसका अनुसरण करते हैं. कहने का अभिप्राय यह कि श्रेष्ठ पुरुष को सदैव अपने पद और गरिमा के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि वह जिस प्रकार का व्यवहार करेगा, आम लोग भी उसी का अनुसरण करेंगे. वे अच्छा आचरण करेंगे तो उनके सहकर्मी के साथ-साथ अधीनस्थ कर्मी भी अच्छे आचरण को प्रेरित होंगे, जिससे व्यक्ति, समाज, देश और अंततः विश्व का कल्याण होगा.
इसी कारण हम पाते है कि बड़े पदों पर बैठे जो भी अच्छे एवं सच्चे लोग हैं उनका व्यवहार बहुत ही शालीन और हृदयस्पर्शी होता है. वे मूलतः 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' तथा "बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय" के सिद्धान्त पर चलते हैं. इसके परिणाम स्वरुप वे दूसरों की तुलना में ज्यादा परफार्मिंग , सरल, सोशल, मिलनसार एवं लोकप्रिय होते हैं.
(hellomilansinha@gmail.com)
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