Saturday, December 30, 2017

आज की बात : दुष्यन्त कुमार को याद करते हुए




आज दुष्यन्त कुमार की पुण्य तिथि है. मात्र 42 साल की छोटी-सी जिंदगी जीनेवाले वही कवि- गजलकार जिनकी ये पंक्तियां हम लोग संसद से सड़क तक समय-समय पर सुनते रहे हैं:

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए.

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए.

01 सितम्बर,1933 को उत्तर प्रदेश में बिजनौर जनपद के राजपुर नवादा गाँव में दुष्यन्त कुमार त्यागी का जन्म हुआ. इलाहाबाद विश्वविद्द्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के बाद वे आकाशवाणी के भोपाल केन्द्र से जुड़े. दुष्यन्त कुमार के नाम से प्रसिद्ध होने से पहले अपने लेखन के शुरूआती दौर में वे दुष्यन्त कुमार परदेशी नाम से लिखा करते थे. 30 दिसम्बर,1975 को वे दुनिया से विदा हो गए, अपने परिजनों, मित्रों और लाखों-करोड़ों पाठकों-प्रशंसकों को छोड़ कर.

दुष्यन्त ने  गज़ल, कवितागीतकाव्य नाटक आदि कई विधाओं में लिखा, किन्तु उन्हें अपने गजलों के कारण ही साहित्य में वह मुकाम मिला जो विरले कलमकारों को मिलता है. सच कहें तो दुष्यन्त की अपार लोकप्रियता और प्रसिद्धि का मुख्य सबब उनकी बेमिसाल रचनाएं रहीं. लीजिये प्रस्तुत है कुछ और पंक्तियां:

कैसे आकाश में सूराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो.

रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया,
इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारो.

अपने बेहद लोकप्रिय गजल संग्रह, 'साए में धूप' के प्रस्तावना में वे लिखते हैं : "मैं स्वीकार करता हूँ कि उर्दू और हिन्दी अपने-अपने सिंहासन से उतर कर जब आम आदमी के पास आती है तो उनमें फर्क कर पाना बड़ा मुश्किल होता है. मेरी नीयत और कोशिश यह रही है कि इन दोनों भाषाओँ को ज्यादा से ज्यादा करीब ला सकूं. इसलिए ये गजलें उस भाषा में कही गई हैं, जिसे मैं बोलता हूँ." 

दुष्यन्त ने प्रशासन, राजनीति, भ्रष्टाचार, सामाजिक-आर्थिक  विसंगतियों आदि पर अपने तरीके से खुलकर लिखा. आपात काल पर उनकी प्रतिक्रिया देखिए:

मत कहो आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है.

भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चलनेवाले "सम्पूर्ण क्रांति" आन्दोलन के वे समर्थक थे और लोकनायक से प्रभावित भी. ये पंक्तियां जेपी के लिए ही तो लिखे गए:

एक बूढ़ा आदमी है मुल्क में या यों कहो,
इस अंधेरी  कोठरी में एक  रोशनदान है. 

निजी जीवन में दुष्यन्त सहज, सरल, स्वाभिमानी और बेहद संवेदनशील इंसान थे. उनके अभिन्न मित्रों में नामचीन संपादक एवं लेखक कमलेश्वर सहित कई बड़े रचनाकार थे. उनके लेखन के मुरीद तो असंख्य लोग रहे हैं और रहेंगे. जाने-माने कवि-शायर निदा फाजली ने उनके बारे में लिखा है, "दुष्यन्त की नजर उनके युग की नई पीढ़ी के गुस्से और नाराजगी से सजी बनी है... ..." 
तभी तो वे ऐसा लिख सकते थे:

जिन आंसुओं का सीधा तआल्लुक था पेट से,
उन आंसुओं के साथ तेरा नाम जुड़ गया. 

....मौका मिले तो दुष्यन्त को जरुर पढ़ें. मेरे तो ये पसंदीदा रचनाकार रहे हैं.
                   
                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com

No comments:

Post a Comment