Friday, November 18, 2016

आज की बात: एक छोटा-सा उदाहरण और रांची को स्मार्ट सिटी बनाने का सपना

                                                                   - मिलन  सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर... 
झारखण्ड की राजधानी रांची को ‘स्मार्ट सिटी’ बनाने की घोषणा से हम सब वाकिफ हैं. वर्ष 2000 में वजूद में आये इस प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर राज्य का 17 वां स्थापना दिवस समारोह हाल ही में पूरे जोर-शोर से मनाया गया. वर्ष 2000 से अब तक इस राज्य में विकास-विनाश के जितने अच्छे–बुरे काम हुए, उसको दोहराने की जरुरत नहीं. 

खैर, बहुत सालों बाद सम्प्रति राज्य में एक बड़ी राष्ट्रीय पार्टी, भाजपा  की बहुमत वाली सरकार है, जिससे राज्य के हर नागरिक को कुछ ज्यादा व कुछ बेहतर की एक स्वभाविक उम्मीद व अपेक्षा है. हो भी क्यों नहीं, जब देश और प्रदेश में भाजपा की ही सरकार हो. इतना ही नहीं, देश के प्रधानमंत्री व भाजपा नेता श्री नरेन्द्र मोदी स्वच्छ, समृद्ध व समर्थ भारत के सपने को साकार करने में खुद तो जुटे ही हैं, सारे देशवासियों से उस दिशा  में कार्य करने का बराबर आह्वान भी करते रहते हैं. ऐसे में, झारखण्ड के हर इलाके में मौजूदा सरकार को जमीनी स्तर पर विकास के हर काम को पारदर्शी, समयबद्ध व गुणवत्तापूर्ण तरीके से करने-करवाने की महती जिम्मेवारी है. 

आपका सोचना लाजिमी है कि ‘नोट बंदी’ के इस नाजुक दौर में (यह मामला काला  नोट/धन के सृजन से जुड़ा प्रतीत होता है) आखिर मैं यह सब किस सन्दर्भ में कहना चाहता हूँ. हाँ, सन्दर्भ है रांची के एक बड़े रिहायशी इलाके बर्दवान कंपाउंड के सबसे व्यस्ततम जतीन चन्द्र रोड, लाल पुर में पिछले करीब चार महीने से चल रहे कथित नाला और रोड बनाने का मामला. बताते चलें कि इस गलीनुमा रोड से रोज पचासों हजार लोग – बच्चे-बूढ़े,  युवक-युवती, महिलायें गिरते-पड़ते, बचते-बचाते धूल-कीचड़-कचड़े के बीच से गुजरने को अभिशप्त हैं. अतिक्रमण के बावजूद इस सड़क की चौड़ाई दो गाड़ियों के आने–जाने के लायक तो है ही, लेकिन पिछले कई महीनों से किसी तरह एक गाड़ी गुजर पाती है, क्यों कि सड़क के एक ओर खुला नाला है तो दूसरी ओर रोड खुदा हुआ है.  लिहाजा, इस रोड पर जाम लगना आम बात है और रोजाना छोटी-मोटी दुर्घटनाओं की बात  भी. धूल, वायु एवं ध्वनि प्रदूषण से कितने ही बच्चे, महिलायें और  बुजुर्ग दमा आदि से पीड़ित हो रहे हैं, यह एक अन्य विचारणीय विषय है. 

वहां की ये तस्वीरें बहुत कुछ बोलती हैं. आप भी देखें : 

अगर इसे जनता की भलाई के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई से विकास के कार्य को अंजाम देने का एक छोटा उदाहरण मानें, तो इसमें जन-भागेदारी, पारदर्शिता, समयबद्धता एवं गुणवत्ता का स्पष्ट अभाव दिखता है. कोई भी जिम्मेदार और ईमानदार अधिकारी/ पर्यवक्षक आकर स्वयं इसे देख सकते हैं. 
सवाल है
- क्या रांची को स्मार्ट सिटी बनाने का अहम कार्य  प्रदेश की भाजपा सरकार इसी तरीके से करना चाहती है ?  नहीं न.
- क्या प्रधानमंत्री के सपने को उनकी ही पार्टी की सरकार ऐसे ही कार्य संस्कृति के माध्यम से साकार कर पायेगी ? बिलकुल नहीं. 
- क्या विकास के ऐसे कार्य का पूर्ण विवरण यथा, कार्य का प्रकार, अनुमानित लागत और समय, गुणवत्ता के मानक, ठेकेदार का नाम–पता–मोबाइल नंबर के  साथ-साथ, निरीक्षण अधिकारी का नाम-पदनाम-पता-मोबाइल नंबर कार्य स्थान में दो-तीन जगह स्पष्टतः लिखना वांछनीय नहीं है ? सभी मांगेंगे कि यह नितांत जरुरी है और इसके बहुआयामी फायदे हैं. 
  

कहते हैं, “अच्छा बोलने से अच्छा करना सदैव बेहतर होता है” (Well done is always better than Well said). उम्मीद है, संबंधित सरकारी विभाग व अधिकारी विकास से जुड़े इस मामले और ऐसे सभी मामलों पर पूरी संवेदनशीलता व जिम्मेवारी से त्वरित कार्यवाही करेंगे. शायद तभी संभावनाओं से भरा यह राज्य अगले कुछ वर्षों में सही अर्थों में एक स्वच्छ,समृद्ध और खुशहाल राज्य बन पायेगा. 
                                                                                  (hellomilansinha@gmail.com)

                    और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

Sunday, November 13, 2016

आज की बात: 'नोट बंदी' का नाजुक दौर और प्रशासनिक चौकसी

                                                                - मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल  स्पीकर...
black-moneyप्रधानमंत्री ने आज ( 13.11.2016) गोवा में एक सभा को संबोधित करने के क्रम में नोट बंदी पर खुलकर अपने विचार रखे और देशवाशियों से अनुरोध किया कि वे थोड़ा संयम रक्खें, वर्तमान में जनता को जो कठिनाई हो रही है, वे सभी अगले कुछ दिनों में समाप्त हो जायेंगी  और  30 दिसम्बर’16  तक नोट बंदी का  अपेक्षित सकारात्मक असर सबको दिखने लगेगा. उन्होंने जनता से इस विषय पर समर्थन और सहयोग माँगा है.

हमें हर वक्त यह याद रखने की जरुरत है कि नोट बंदी के इस अति साहसिक फैसले, जिसका व्यापक व बहुआयामी असर आने वाले दिनों में  देश के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में दिखनेवाला है, की सफलता के लिए कुछ बातों पर बराबर ध्यान देने की आवश्यकता है. मसलन:  
  • 10 नवम्बर से 30 दिसम्बर '16 तक हरेक बैंक खाते में जमा होनेवाली नकदी पर कड़ी नजर रखने की जरुरत है. पिछले एक वर्ष के औसत जमा के मुकाबले इस बीच जमा होनेवाली राशि की तुलना आवश्यक है.
  • जुगाड़ संस्कृति के दिग्गज, राजनीति, प्रशासन, व्यवसाय आदि के लाखों बागड़ बिल्ले और मगरमच्छ चालाकी और फरेब के हर हथकंडे अपनाएंगे और अपने –अपने नौकरों, सेवकों, उनके रिश्तेदारों के साथ –साथ बिचौलियों के माध्यम से बैंकों में पुराने नोट बदलवाने और ऐसे लोगों के मृत प्राय एवं कम बैलेंस वाले  खातों में 2.5 लाख के ऐसे नोट जमा करवाने का हर संभव प्रयास जरुर करेंगे. करने  भी लगे हैं , ऐसा  मीडिया में रिपोर्ट है.
  • गांवों, कस्बों, गली –मोहल्ले में भी अगले कुछ दिनों तक निरीह व गरीब लोगों को  बरगलाकर, उनका इस्तेमाल करके निहित स्वार्थी  लोग अपने काले धन को सफ़ेद करने के पूरी कोशिश करेंगे.
  • गांव में कार्यरत डाकघर और बैंक की शाखाओं में इस तरह की कोशिश ज्यादा देखने में आयेगी. डाटा विश्लेषण तकनीक के मार्फ़त बहुत हद तक आसानी से इसका पता  चल सकता है. 
  • बैंक के प्रबंधकों, वरीय अधिकारियों के साथ –साथ स्थानीय प्रशासन पर गैर कानूनी कार्यों में संलिप्त ऐसे सभी लोगों को चिन्हित करके उनके विरुद्ध उपयुक्त त्वरित कार्रवाई करने की महती जिम्मेदारी है.
कहना न होगा, देश के करोड़ों आम लोगों  के दुःख–दर्द–तकलीफ के प्रति जागरूक एवं संवेदनशील केन्द्र सरकार के साथ–साथ प्रदेश सरकारों  के संबंधित विभागों – वित्त, गृह, कस्टम एंड एक्साइज, कृषि आदि से यह उम्मीद करना मुनासिब है कि वे प्रधानमंत्री के इस आह्वान को जमीनी स्तर पर पूरी मुस्तैदी से लागू करेंगे –करवाएंगे. 
                                                        (hellomilansinha@gmail.com)

                     और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

Saturday, November 12, 2016

आज की बात: 'नोट बंदी' का नाजुक दौर और हम

                                                                    - मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल  स्पीकर

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'नोट बंदी' को तीन दिन हो गए, आज चौथा दिन है. आपको याद होगा कि 8 नवम्बर '16 के रात आठ बजे इस मामले में देश को संबोधित करते हुए  प्रधानमंत्री ने भी यह कहा था कि आम लोगों को अगले कुछ दिनों तक थोड़ी परेशानी हो सकती है. इस बात को देश के वित्त मंत्री ने भी बाद में दोहराया और साथ में विस्तार से यह भी बताया कि केन्द्र सरकार ने इस चुनौती से निबटने के लिए कौन-कौन सी व्यवस्था की है और आगे भी परिस्थिति को देखते हुए अनुकूल कदम उठाने में सरकार पीछे नहीं रहेगी, जिससे कि अगले कुछ दिनों में स्थिति सामान्य हो सके. 

32.87 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले और करीब 127 करोड़ की आबादी वाले हमारे विशाल देश में इतने बड़े आर्थिक फैसले को लागू करने में कुछ शुरूआती कठिनाई आए, तो उसे असामान्य स्थिति की संज्ञा देना ठीक  नहीं - वह भी तब जब आठ तारीख के रात आठ बजे की उक्त घोषणा के बाद डाक घरों, बैंक शाखाओं  एवं उनके  सभी ए टी एम में जमा पुराने 500 तथा 1000 के नोटों को हटाकर पर्याप्त मात्रा में छोटे नोटों एवं नए 500 -2000 के नोटों को सुरक्षित लाने-ले जाने एवं रखने के अभूतपूर्व कार्य को  अगले  36 से 60 घंटे के भीतर पूरा करना हो. बैंक में कार्यरत लोगों के अलावे समाज के वैसे सभी लोग जो देश में  बैंकिंग परिचालन व नकदी प्रबंधन  से जुड़ी कुछ बुनियादी बातों से वाकिफ हैं, वे जरुर मानेंगे कि केन्द्र सरकार, डाक कर्मियों, रिज़र्व बैंक के समस्त स्टाफ एवं देशभर में कार्यरत लाखों बैंक कर्मियों  के लिए  यह बेहद  चुनौतीपूर्ण व जोखिमभरा कार्य है, जिसमें ग्राहकों की सामान्य सुविधा के साथ -साथ उनके जान -माल (धन) की सुरक्षा का सवाल भी शामिल होता है.  लिहाजा, ऐसे मामलों में 'देर आए, दुरूस्त आए' का फार्मूला सख्ती से अपनाना जरुरी होता है. जोर देने की जरुरत नहीं कि इन सबके मद्देनजर देश के विभिन्न भागों - गांव, क़स्बा , शहर, गली, मोहल्ला, पहाड़, रेगिस्तान आदि में कार्यरत करीब 125000 बैंक शाखाओं  एवं  उनके लाखों  ए टी एम के अलावे  करीब  डेढ़ लाख डाकघरों में इतने सीमित समय में पुराने नकदी बदलने एवं बड़ी मात्रा में नई नकदी (500 /2000 के नोट ) और छोटे नोटों की उपलब्धता सुनिश्चित करना असंभव को संभव बनाने का अकल्पनीय एवं अप्रत्याशित उदाहरण है. इसके लिए हर जिम्मेदार भारतीय को केन्द्र सरकार तथा डाक और बैंक कर्मियों का शुक्रिया अदा करना ही चाहिए और देश हित के ऐसे अभूतपूर्व कार्य को उसके सही अंजाम तक पहुँचाने में जुटे सुरक्षा कर्मियों सहित सभी लोगों का आने वाले कुछ दिनों तक हौसला आफजाई करते रहना चाहिए.

कहना न होगा, डाक व बैंक कर्मियों पर इस वक्त बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, जिसका निर्वहन उन्हें अत्यधिक तन्मयता, दक्षता, संवेदनशीलता, इमानदारी एवं संयम के साथ करने की आवश्यकता है. बड़े डाकघरों तथा बैंक शाखाओं में पुराने नोट बदलनेवालों, वरीय नागरिक, दिव्यांग  और महिलाओं, बड़ी जमा राशि को अपने खाते में जमा करने वाले ग्राहकों आदि के लिए अलग-अलग काउंटर खोलने की जरुरत तो है ही. संबंधित विभागों के वरीय अधिकारियों द्वारा इस कार्य की सतत मॉनिटरिंग भी अपेक्षित है. सिविल सोसाइटी के जाने -माने लोगों को भी अपनी भूमिका  दर्ज  करने की जरुरत है. 

बैंक और डाक घर के स्टाफ को ऐसे नाजुक समय में ज्यादा सजग व चौकस भी रहना होगा, क्यों कि  निहित स्वार्थी लोग उन्हें एवं उनके सरल-सामान्य ग्राहकों को बहकाने, उकसाने, भड़काने, बहसबाजी में उलझाकर परिसर में शान्ति और व्यवस्था भंग करने का भरपूर  प्रयास करेंगे; कर भी रहे हैं - ऐसे रिपोर्ट आने भी लगे हैं. इस दौरान स्थानीय प्रशासन से डाकघरों एवं बैंकों के अन्दर -बाहर अतिरिक्त चौकसी एवं सुरक्षा की अपेक्षा भी स्वभाविक है.   

हाँ, एक बात और. इस महती कार्य संचालन में थोड़ी -बहुत ऊँच-नीच हो जाए तो भी  ग्राहकों को उसे बहस व हल्ला मचाने  का मुद्दा बनाने से बचना चाहिए, क्यों कि कतिपय असामाजिक तत्व ऐसे मौके का गलत फायदा उठा सकते है. ऐसे भी, इस कार्य को और बेहतर तरीके से करने के लिए किसी के द्वारा भी शालीनता से सकारात्मक -रचनात्मक सुझाव देने में कहाँ मनाही है- वह भी मेल- मोबाइल- सोशल मीडिया के इस युग में जब हम अपनी बात किसी भी संस्था के उच्च अधिकारी तक कुछ ही मिनटों में पहुंचा सकते हैं.   
                                                                         (hellomilansinha@gmail.com)

                     और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

( प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :12.11.2016)

Tuesday, November 8, 2016

लघु कथा : मनीआर्डर

                                                                                          - मिलन सिन्हा
डाकिया आज बहुत खुश था. आज पहली बार पंडित जी के नाम पांच हजार रूपये का मनीआर्डर जो आया था. उसे बख्शीश मिलने की पूरी उम्मीद थी.

डाकिया ने पंडित जी को आवाज दी और उन्हें खुश–खबरी से अवगत कराया. पंडित जी ने बड़े गर्व से डाकिया को बताया कि यह मनीआर्डर उनके लड़के ने उन्हें दिल्ली से भेजा है जहाँ उसे हाल ही में एक शानदार नौकरी मिली है.

मनीआर्डर की राशि प्राप्त करने के बाद पंडित जी ने डाकिया को अपेक्षित बख्शीश दिया. डाकिया खुश हो गया. पंडित जी के कहने पर उसने यह खबर मोहल्ले के कई लोगों को दी. पंडित जी ने भी इधर अपने हर पहचानवालों से अपने लड़के के सदगुणों की खूब चर्चा की, उसके शानदार नौकरी और मनीआर्डर वाली बात विशेष तौर पर बताई.

डाकिया अगले महीने फिर मनीआर्डर देने आया और बख्शीश लेकर लौटा.

पंडित जी एवं उनके लड़के की चर्चा उनके अपने स्वजनों –स्वजातीय लोगों में जोर-शोर से होने लगी. लडकी वाले शादी के लिए पंडित जी के घर आने लगे.

जल्दी ही पंडित जी के लड़के की शादी बड़े धूमधाम से संपन्न हो गयी. पंडित जी की पुत्रवधू देखने में सुन्दर तो थी ही, पंडित जी की मांग एवं अपेक्षा से कहीं अधिक दहेज़ भी लायी थी.

डाकिया को पंडित जी से मनीआर्डर की बख्शीश पाने की एक आदत-सी लग चुकी थी. शादी के लगभग पन्द्रह दिनों के बाद जब उसने पंडित जी के लड़के को वहीं देखा तो बरबस पूछ बैठा, आप अब तक दिल्ली नहीं गये? कब जायेंगे ? लड़के ने पहले तो टालने की कोशिश की, पर जोर डालने पर यह कहते हुए चले  गये कि अब दिल्ली जाने की कोई जल्दी नहीं है. डाकिया को बात जंची नहीं. उसने इधर –उधर पूछताछ की तो पंडित जी के लड़के के एक अभिन्न मित्र ने बताया कि वह तो दिल्ली में नौकरी के तलाश में छः –आठ महीने भटका, नौकरी नहीं मिली सो लौट आया. 

तो फिर वह मासिक पांच हजार रुपये का मनीआर्डर ?

हुआ ऐसा कि लड़के को दिल्ली भेजने के बाद पंडित जी हर महीने के अंत में पांच–छह हजार रूपये उसे भेज देते. उसी राशि में से उनका लड़का अगले महीने के आरम्भ में पंडित जी को मनीआर्डर से पांच हजार रुपये भेज देता. चार –छह महीने के मनीआर्डर के इस आवाजाही से शादी के बाजार में पंडित जी के लड़के की अच्छी बोली लग गयी. सो दिल्ली की यात्रा रुक गयी. और कोई बात नहीं ! 
                    
                    और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

(लोकप्रिय अखबार 'हिन्दुस्तान' में 4 दिसम्बर ,1997 को प्रकाशित)