- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर
( प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :12.11.2016)
'नोट बंदी' को तीन दिन हो गए, आज चौथा दिन है. आपको याद होगा कि 8 नवम्बर '16 के रात आठ बजे इस मामले में देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने भी यह कहा था कि आम लोगों को अगले कुछ दिनों तक थोड़ी परेशानी हो सकती है. इस बात को देश के वित्त मंत्री ने भी बाद में दोहराया और साथ में विस्तार से यह भी बताया कि केन्द्र सरकार ने इस चुनौती से निबटने के लिए कौन-कौन सी व्यवस्था की है और आगे भी परिस्थिति को देखते हुए अनुकूल कदम उठाने में सरकार पीछे नहीं रहेगी, जिससे कि अगले कुछ दिनों में स्थिति सामान्य हो सके.
32.87 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले और करीब 127 करोड़ की आबादी वाले हमारे विशाल देश में इतने बड़े आर्थिक फैसले को लागू करने में कुछ शुरूआती कठिनाई आए, तो उसे असामान्य स्थिति की संज्ञा देना ठीक नहीं - वह भी तब जब आठ तारीख के रात आठ बजे की उक्त घोषणा के बाद डाक घरों, बैंक शाखाओं एवं उनके सभी ए टी एम में जमा पुराने 500 तथा 1000 के नोटों को हटाकर पर्याप्त मात्रा में छोटे नोटों एवं नए 500 -2000 के नोटों को सुरक्षित लाने-ले जाने एवं रखने के अभूतपूर्व कार्य को अगले 36 से 60 घंटे के भीतर पूरा करना हो. बैंक में कार्यरत लोगों के अलावे समाज के वैसे सभी लोग जो देश में बैंकिंग परिचालन व नकदी प्रबंधन से जुड़ी कुछ बुनियादी बातों से वाकिफ हैं, वे जरुर मानेंगे कि केन्द्र सरकार, डाक कर्मियों, रिज़र्व बैंक के समस्त स्टाफ एवं देशभर में कार्यरत लाखों बैंक कर्मियों के लिए यह बेहद चुनौतीपूर्ण व जोखिमभरा कार्य है, जिसमें ग्राहकों की सामान्य सुविधा के साथ -साथ उनके जान -माल (धन) की सुरक्षा का सवाल भी शामिल होता है. लिहाजा, ऐसे मामलों में 'देर आए, दुरूस्त आए' का फार्मूला सख्ती से अपनाना जरुरी होता है. जोर देने की जरुरत नहीं कि इन सबके मद्देनजर देश के विभिन्न भागों - गांव, क़स्बा , शहर, गली, मोहल्ला, पहाड़, रेगिस्तान आदि में कार्यरत करीब 125000 बैंक शाखाओं एवं उनके लाखों ए टी एम के अलावे करीब डेढ़ लाख डाकघरों में इतने सीमित समय में पुराने नकदी बदलने एवं बड़ी मात्रा में नई नकदी (500 /2000 के नोट ) और छोटे नोटों की उपलब्धता सुनिश्चित करना असंभव को संभव बनाने का अकल्पनीय एवं अप्रत्याशित उदाहरण है. इसके लिए हर जिम्मेदार भारतीय को केन्द्र सरकार तथा डाक और बैंक कर्मियों का शुक्रिया अदा करना ही चाहिए और देश हित के ऐसे अभूतपूर्व कार्य को उसके सही अंजाम तक पहुँचाने में जुटे सुरक्षा कर्मियों सहित सभी लोगों का आने वाले कुछ दिनों तक हौसला आफजाई करते रहना चाहिए.
कहना न होगा, डाक व बैंक कर्मियों पर इस वक्त बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, जिसका निर्वहन उन्हें अत्यधिक तन्मयता, दक्षता, संवेदनशीलता, इमानदारी एवं संयम के साथ करने की आवश्यकता है. बड़े डाकघरों तथा बैंक शाखाओं में पुराने नोट बदलनेवालों, वरीय नागरिक, दिव्यांग और महिलाओं, बड़ी जमा राशि को अपने खाते में जमा करने वाले ग्राहकों आदि के लिए अलग-अलग काउंटर खोलने की जरुरत तो है ही. संबंधित विभागों के वरीय अधिकारियों द्वारा इस कार्य की सतत मॉनिटरिंग भी अपेक्षित है. सिविल सोसाइटी के जाने -माने लोगों को भी अपनी भूमिका दर्ज करने की जरुरत है.
बैंक और डाक घर के स्टाफ को ऐसे नाजुक समय में ज्यादा सजग व चौकस भी रहना होगा, क्यों कि निहित स्वार्थी लोग उन्हें एवं उनके सरल-सामान्य ग्राहकों को बहकाने, उकसाने, भड़काने, बहसबाजी में उलझाकर परिसर में शान्ति और व्यवस्था भंग करने का भरपूर प्रयास करेंगे; कर भी रहे हैं - ऐसे रिपोर्ट आने भी लगे हैं. इस दौरान स्थानीय प्रशासन से डाकघरों एवं बैंकों के अन्दर -बाहर अतिरिक्त चौकसी एवं सुरक्षा की अपेक्षा भी स्वभाविक है.
हाँ, एक बात और. इस महती कार्य संचालन में थोड़ी -बहुत ऊँच-नीच हो जाए तो भी ग्राहकों को उसे बहस व हल्ला मचाने का मुद्दा बनाने से बचना चाहिए, क्यों कि कतिपय असामाजिक तत्व ऐसे मौके का गलत फायदा उठा सकते है. ऐसे भी, इस कार्य को और बेहतर तरीके से करने के लिए किसी के द्वारा भी शालीनता से सकारात्मक -रचनात्मक सुझाव देने में कहाँ मनाही है- वह भी मेल- मोबाइल- सोशल मीडिया के इस युग में जब हम अपनी बात किसी भी संस्था के उच्च अधिकारी तक कुछ ही मिनटों में पहुंचा सकते हैं.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
( प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :12.11.2016)
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