-मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर....
विश्व योग दिवस निकट है. योग प्रशिक्षण के कार्यक्रम जगह –जगह आयोजित किये जा रहे हैं. योग के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए यह वांछनीय है. ऐसा इसलिए कि शिक्षा व संचार क्रांति के इस युग में योग को लेकर कहीं न कहीं अनेक लोगों को अब भी यह भ्रान्ति है कि इसके अभ्यासी को संत या सन्यासी जीवन व्यतीत करना पड़ेगा और वह एक पारिवारिक व्यक्ति का सामान्य जीवन नहीं जी पायेगा. मजे की बात यह है कि सच्चाई इसके उलट है. योग तो एक ऐसी जीवनशैली है जो जीवन के प्रति हमारे दृष्टिकोण को व्यापक, समग्र एवं समावेशी बनाता है; जिसके कारण हम खुद अपनी एवं साथ ही दूसरों की समस्याओं को अधिक आसानी से समझने तथा उसका समाधान ढूंढने लायक बन पाते हैं. ऐसा करके हम अपने परिवार एवं समाज के लिए भी एक बेहतर इंसान साबित होते हैं.
बिहार योग विद्यालय, मुंगेर के संस्थापक स्वामी सत्यानन्द सरस्वती ने अपनी पुस्तक, 'आसान, प्राणायाम मुद्राबंध' में लिखा है, 'वैज्ञानिक आविष्कारों के इस आधुनिक युग में जीवन को आराममय बनाने के असंख्य साधन हैं, परन्तु बिरले लोग ही इस बिलास सामग्री का आनंद ले पाते हैं. यद्द्पि यह बात एकदम उल्टी लगती है, किन्तु है सत्य. बहुत से लोगों के पास धन है, लेकिन वे वास्तव में निर्धनों की सी जिंदगी जीते हैं. जीवन उनके लिए नीरस हो गया है. उसे भोगने की शक्ति वे खो चुके हैं. जीवन के इस नीरस और निर्जीव ढंग को आसनों द्वारा सुधारा जा सकता है. दिनभर की थकान और तनावों से छुटकारा पाकर अपने आपको स्वस्थ रख सकते हैं.” यही कारण है कि बड़े से बड़ा नेता, अभिनेता, ड़ॉक्टर, अधिकारी, उद्योगपति, शिक्षाविद, वैज्ञानिक, लेखक-पत्रकार सभी ने योग के महत्व को स्वीकारते हुए अपनी दिनचर्या में आसान -प्राणायाम को निष्ठापूर्वक शामिल किया है. लिहाजा, उनका सुबह का समय योगाभ्यास में बीतता है जिससे वे दिनभर पूरी जीवंतता के साथ अपनी जिम्मेदारियों का अबाध निर्वहन कर पाते हैं. फिर सवाल है कि हममें से ज्यादातर लोग ऐसा क्यों नहीं करते हैं या दो-चार दिन करके क्यों छोड़ देते हैं ?
दरअसल, न्यूटन का जड़ता का सिद्धान्त यहाँ भी लागू होता है. जिस कार्य को हम करते रहते हैं, वह हमें आसान लगता है. इसके विपरीत किसी नए काम को करने से पहले तमाम तरह की भ्रांतियां तथा शंकायें हमारे सामने अवरोध बन कर खड़ी हो जाती हैं. दूसरी बात यह कि आस्था, विश्वास और निष्ठा से ऐसे कार्य प्रारंभ नहीं करते; दो- चार दिनों के आधे–अधूरे अभ्यास के बाद ही किसी चमत्कार की अपेक्षा के साथ करते हैं. ऐसा कमोबेश अधिकांश लोगों के साथ होता है. लेकिन खुले दिमाग से सोचने वाले व्यक्ति अच्छे -बुरे का आकलन करते हुए, सब जानते –समझते हुए एक नए जोश व संकल्प के साथ जड़ता को तोड़ कर सही दिशा में कदम बढ़ाते हैं और अच्छाई के साथ जुड़ते चले जाते हैं. जीवन में यही तो योग है, और क्या ?
सच पूछें तो योग एक सम्पूर्ण जीवनशैली है, जिसका अनुसरण करते हुए आर्थिक उदारीकरण एवं सामाजिक-आर्थिक विषमता के मौजूदा दौर में भी हम चिंता, तनाव व शारीरिक अस्वस्थता से अपने को बचाए रख सकते हैं. इसके एकाधिक कारण हैं. नियमित योगाभ्यास से हमारे शरीर को ऑक्सीजन ज्यादा मिलता है, शरीर के सारे अंग सक्रिय हो जाते हैं, कार्बन डाई ऑक्साइड सहित अन्य विषैले पदार्थ शरीर से निष्कासित होते हैं, मस्तिष्क का शुद्धिकरण होता है, सकारात्मक विचार शक्ति बढ़ती है और उत्साह, उमंग और ऊर्जा में अकल्पनीय उछाल महसूस होने लगता है. परिणाम स्वस्वरूप हम अनेक असाध्य रोगों से बचे रह सकते है और अगर रोगग्रस्त हो भी गए तो उससे मजबूती से लड़कर विजय पा सकते है.
कहने का अभिप्राय यह कि योग हमें न केवल खुद से जुड़ना सिखाता है, खुद को तलाशने, निरंतर तराशने और बुलंद बने रहने को सतत उत्प्रेरित करता है, बल्कि अपने भाई-बंधुओं, पेड़–पौधे, पशु–पक्षी आदि से सक्रिय रूप से जुड़ना भी सिखाता है. यह हमारे आहार, विचार एवं व्यवहार में संतुलन कायम करने में मदद करता है, जिससे कि हमारा सर्वांगीण व गुणात्मक विकास होता रहे. हम सच्चे अर्थों में मनुष्य के रूप में खुद भी जी सकें और दूसरों को भी जीने का मौका दें, उनकी मदद करें. संक्षेप में, योग के बहुआयामी फायदे हैं. तो फिर क्यों न हम सभी - बच्चे, युवा, वयस्क तथा बुजुर्ग, योग को अपनी दैनिक रूटीन का हिस्सा बनाकर जीवन को स्वस्थ, सरस और सानंद बनाने का सार्थक प्रयास करें. ( hellomilansinha@gmail.com )
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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