-मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर....
विभिन्न अवसरों पर अलग –अलग तबके एवं उम्र के लोगों से मुलाक़ात तथा वार्तालाप के क्रम में यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई कि अधिकांश लोग पानी पीने की कला में पारंगत नहीं हैं, जिसके कारण उन्हें तरह –तरह की शारीरिक परेशानियों से जूझना पड़ता है; डॉक्टर के शरण में जाना पड़ता है; दवा खानी पड़ती है. यह सब तब होता है जब हमें मालूम रहता है कि हमारे जीवन में पानी का कितना महत्व है. कहने का अभिप्राय यह कि हमें नहीं मालूम कि पानी कैसे पीना चाहिए, कितना पीना चाहिए, कब पीना या कब नहीं पीना चाहिए. ज्ञातव्य है कि सिर्फ पानी पीने की कला में पारंगत हो कर हम कम- से -कम 30 फीसदी ज्यादा स्वस्थ रह सकते हैं; बीमारियों से बचे रह सकते हैं.
( हम अलग से इस बात की चर्चा कर सकते हैं कि आम जनता कैसा पानी पीने को अभिशप्त है और उसका कितना दुष्प्रभाव उन लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ता है – 60% रोग जल- जनित होते हैं )
ऐसा ही अनुभव तब हुआ जब लोगों से नमक के सेवन के प्रति उनकी जागरूकता के विषय में जानना चाहा. मसलन, प्रोसेस्ड फ़ूड एवं डिब्बा या पैकेट में बंद नमकीन चीजें कितना खाते हैं, रोजाना खाना खाते समय ऊपर से कितना नमक छिड़कते हैं आदि. दूसरे शब्दों में, हमारे जीवन में नमक की अहमियत से भी हम सब परिचित हैं, लेकिन जो नमक हम खा रहे हैं और जाने–अनजाने जितनी मात्रा में रोज खा रहे हैं उसके चलते हमारे स्वास्थ्य को होनेवाले नुकसान से हम जैसे बेफिक्र हैं और गाहे –बगाहे उच्च रक्त चाप, पेट का कैंसर, किडनी स्टोन, ओस्टियोपोरोसिस जैसे बड़े शारीरिक समस्याओं को निमंत्रण दे रहे हैं.
(बताते चलें कि एक रिपोर्ट के मुताबिक़ ब्रिटेन में एक जागरूकता अभियान के परिणाम स्वरुप वर्ष 2003 से 2011 के बीच नमक के इस्तेमाल में 15 फीसदी की कमी आई. इसका सीधा व सकारात्मक असर स्ट्रोक व ह्रदय रोग के मामले में 40% तक की कमी के रूप में सामने आया. )
सवाल है कि लोगों को इस संबंध में कैसे जानकारी दी जाय; उन्हें इस विषय में कैसे जागरूक बनाया जाय ? यक़ीनन ‘ जानकारी ही समाधान’ के सिद्धांत को अमली जामा पहना कर. लेकिन कैसे ? पुरानी अंग्रेजी कहावत है, ‘ चैरिटी बिगिंस एट होम’ अर्थात अच्छे काम की शुरुआत घर से हो अर्थात पहले अपने आसपास के लोगों को टारगेट करें. स्कूल, कॉलेज, ऑफिस आदि में जाकर छोटे-छोटे समूहों के बीच 30-40 मिनट की चर्चा का आयोजन हो. स्कूल–कॉलेज आदि में पहले चरण में अध्यापकों –प्राध्यापकों के साथ विचार –विमर्श हो. स्कूलों में इस तरह का आयोजन अभिभावक –शिक्षक बैठक (पैरेंट –टीचर्स मीट) के दिन भी हो सकता है. बैंक, बीमा कंपनी, सरकारी-अर्ध सरकारी संस्थान, फैक्ट्री आदि में भी यह आयोजन जरुरी है. इस काम में मीडिया का बहुत बड़ा रोल है – न केवल इसे लोगों तक पहुँचाने में, बल्कि इस अभियान को समर्थन व सहयोग देने में. (hellomilansinha@gmail.com)
पुनश्च : हम इसकी एक छोटी सी शुरुआत आपके ऑफिस / प्रतिष्ठान से भी कर सकते हैं.
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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