- मिलन सिन्हा
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
मानव शरीर रूपी इस अदभुत मशीन के बारे में जितना जानें, कहें और लिखें, कम ही होगा. बचपन से बुढ़ापे तक अनवरत धड़कने वाला जहाँ हमारा यह दिल है, वहीं अकल्पनीय सोच, खोज व अनुसंधान-आविष्कार का जनक हमारा मस्तिष्क. सोचने से करने तक के सफ़र में निरंतरता को साधे रखने का इस मशीन का कोई जोड़ नहीं है . लेकिन क्या यह सब बस यूँ ही होता रहता है या इस शरीर को चलाए रखने के लिए आहार रूपी संसाधन की भी रोजाना जरुरत होती है ? सही है, लेकिन जैसे मिलावट वाले तेल से गाड़ी की सेहत खराब हो जाती है, वैसे ही अशुद्ध व मिलावटी खान–पान से हमारा शरीर कमजोर, अस्वस्थ और अंततः बीमार हो जाता है. दिलचस्प बात है कि ज्यों ही हम अपने खान–पान की चर्चा करते हैं , त्यों ही हम एक विराट बाजार पर प्रकारांतर से अपनी बढ़ती निर्भरता की बात स्वीकारते हैं, जहाँ आजकल लाखों नहीं बल्कि करोड़ों ऐसे खाद्द्य एवं पेय पदार्थ – ब्रांडेड-अनब्रांडेड, प्रोसेस्ड-सेमी प्रोसेस्ड, पैक्ड–अन पैक्ड, नेचुरल–आर्टिफीसियल, न जाने क्या-क्या और क्यों उपलब्ध है. और हम लोग खरीद कर जाने-अनजाने कितना और कैसे उनका सेवन भी कर रहे हैं. दिनभर के 1440 मिनट में जैसे 2 मिनट का हिस्सा है, शायद वैसे ही ‘टू मिनट मैगी’ प्रकरण का हमारे अनियंत्रित और विज्ञापन पोषित एक बहुत बड़े मार्केट में है, जहाँ फ़ूड सेफ्टी रेगुलेशन के दायरे में बाजार में बिकने वाली चीजों को जांचने-परखने का कोई प्रचलन कम-से-कम जमीन पर तो दिखाई नहीं पड़ता है . फिर जब देश के करोड़ों नादान तथा अपेक्षाकृत कम जागरूक लोग खाद्द्य व पेय सामाग्रियों के विज्ञापन में नामचीन व लोकप्रिय हस्तियों को इन पदार्थों का बढ़–चढ़ कर प्रचार करते हुए देखते हैं, तो वे भी इनके उपयोग के लिए प्रेरित हो जाते हैं. इस क्रम में न केवल आम लोगों की जेब ढीली होती है, अपितु उनकी सेहत भी खराब होती है. लिहाजा यह आवश्यक हो गया है कि विज्ञापनों में चीजों की गुणवत्ता से जुड़े दावों की पूरी जांच-पड़ताल की जाए एवं तथ्यों को सार्वजनिक किया जाय. साथ ही, आम लोगों को इस संबंध में सतत जागरूक होते तथा करते रहने की नितांत आवश्यकता है, जिससे वे एक जागरूक व जानकार उपभोक्ता के तौर पर चीजों का उपयोग कर सकें.
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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