- मिलन सिन्हा
हर घर में उस दिन हर्ष और उल्लास का माहौल होता है जिस दिन बच्चा अपने पैरों पर पहली बार चलता है, बेशक लड़खड़ाते हुए बस दो कदम ही क्यों न हो . उससे पहले कई दिनों तक उसे हाथ या अंगुली पकड़ कर चलने को प्रेरित करने की प्रक्रिया सुबह –शाम चलती है. इस क्रम में उत्साहवश कई बार बच्चा स्वयं खड़ा होने व चलने का प्रयत्न करता है . वह गिरता है, उठता है , फिर चलने की कोशिश करता है और अंततः चल भी पड़ता है . लेकिन कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि कमोवेश एक जैसी परिस्थिति में एक ही उम्र के बच्चे अलग –अलग समय पर चलना शुरू करते हैं, कोई पहले, कोई बाद में और कई तो काफी देर से , जब कि सबके माता –पिता अपने बच्चे को यथासमय चलते हुए देखना चाहते हैं . इसके एक नहीं, कई कारण होते हैं , किन्तु एक सामान्य पर बड़ा कारण यह होता है कि आप अपने बच्चे को इस जिम्मेदारी के लिए कैसे प्रेरित एवं तैयार कर रहे हैं . यही बात घर–दफ्तर प्रत्येक जगह लागू होती है .
सच पूछें तो जिम्मेदारी देने से सिर्फ बात नहीं बनती, अपितु हमें उस व्यक्ति को जिम्मेदारी के लायक भी बनाना पड़ता है .कई बार यह भी होता है कि व्यक्ति जिम्मेदारी के लायक तो होता है, परन्तु उसे जिम्मेदारी दी नहीं जाती, जिससे उसके अंदर कुंठा और हीन भावना घर करने लगती है. इससे उस व्यक्ति के आत्म विश्वास, प्रतिबद्धता, कार्य क्षमता आदि पर नकारात्मक असर पड़ता है .
सर्वमान्य तथ्य यह है कि मनुष्य मात्र में जिम्मेदारी लेने की स्वभाविक प्रवृति होती है. वह दुनिया के सामने यह साबित करना चाहता है कि वह भी उस कार्य के लायक है. और फिर मौका दिए जाने पर व्यक्ति पूरे लगन, उत्साह और उर्जा के साथ अपेक्षा से कहीं बेहतर परिणाम देने की भरपूर कोशिश करता है . इस क्रम में उस व्यक्ति की सृजनशीलता रंग दिखाती है, उसका काम के प्रति लगाव बढ़ता है और साथ ही अपने सहकर्मियों तथा उस संस्था से जुड़ाव भी. कहते हैं न कि जिस आदमी को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो गया, वह जीवन में कुछ आगे बढ़ गया, घर-समाज के लिए कुछ बेहतर करने लायक बन गया.
यही कारण है कि अच्छी संस्थाएं अपने कर्मचारियों का नियमित आकलन करती है एवं उन्हें सतत प्रेरित करते हुए जिम्मेदारी लेने लायक बनाती है. इतना ही नहीं, जिम्मेदारी देने के बाद एक मार्गदर्शक की भूमिका का बखूबी निर्वहन भी करती हैं .
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
यही कारण है कि अच्छी संस्थाएं अपने कर्मचारियों का नियमित आकलन करती है एवं उन्हें सतत प्रेरित करते हुए जिम्मेदारी लेने लायक बनाती है. इतना ही नहीं, जिम्मेदारी देने के बाद एक मार्गदर्शक की भूमिका का बखूबी निर्वहन भी करती हैं .
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
No comments:
Post a Comment