- मिलन सिन्हा
शिक्षा खासकर उच्च शिक्षा के निरंतर मंहगे होते जाने के इस दौर में किसी भी सीमित आय वाले मध्यम व निम्न वर्गीय परिवारों के लिए अपने बच्चों को योग्य होते हुए भी नामचीन संस्थानों में मनचाहे कोर्स में एडमिशन दिलवाना और फिर दो-तीन-चार वर्षों तक पढ़ाई जारी रखवाना अत्यन्त मुश्किल काम होता है. लिहाजा बिना छात्रवृति और बैंक लोन के अनेक बच्चों के लिए आगे की शिक्षा एक सपना बनकर रह जाती है. ऐसी परिस्थिति में विज्ञापनों के मायाजाल में उलझे बगैर हर विद्यार्थी व उनके परिवारजनों को सारी संभावनाओं व उसके व्यवहारिक पक्षों-परिणामों पर गहन विचार-विमर्श करके किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए. ऐसे नाजुक मौकों पर भावना में बहकर या किसी दोस्त की देखा-देखी या किसी के सलाह को बिना जांचे-परखे किसी भी कोर्स या संस्थान में एडमिशन लेना मुनासिब नहीं होगा. कहने का अभिप्राय यह कि अपनी रूचि के अनुरूप और “भीड़ के साथ चलने की मानसिकता” से प्रेरित हुए बिना हरेक विद्यार्थी को खूब सोच-समझ कर फैसला करने की आवश्यकता है जिससे कि उनका व उनके परिवार का भविष्य हर मायने में आज से बेहतर बन सके.
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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