- मिलन सिन्हा
सीखने की न तो कोई उम्र होती है और न ही इसका कोई समय। सीखना एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। और इसके फायदे भी अनेक हैं। 'लर्न मोर टू अर्न मोर' वाली प्रबंधनीय उक्ति आपने भी सुनी होगी। अपने भविष्य को सजाने, संवारने और सुखमय बनाने को उद्दत अनेक विद्यार्थी इस सिद्धांत पर चलते हुए एक साथ एकाधिक कोर्स पूरा करने में लगे रहते हैं। जैसे घड़ी की सुई और समुद्र की लहरें किसी का इंतजार नहीं करती हैं और अपने काम में लगी रहती हैं, वैसे ही सीखने को आतुर लोग हर पल का सदुपयोग करने में लगे रहते हैं । कहते हैं चीन के महान नेता माओ-से-तुंग ने सत्तर साल की उम्र में अंग्रेजी भाषा सीखना प्रारम्भ किया। विश्व की सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय चित्र के रूप में 'मोनालिसा' का नाम लिया जाता है जिसे प्रख्यात चित्रकार लियोनार्दो दि विंची ने बनाया था। इटली के फ्लोरेंस शहर में जन्मे इस विलक्षण व्यक्ति ने अपनी सीखने की ललक के कारण चित्रकला के अलावे मूर्तिकला, गणित, सैन्य विज्ञान, संगीत आदि में भी महारत हासिल की। इतिहासकार कहते हैं कि चित्रकला और मूर्तिकला में निपुणता अर्जित करने लिए वे इस कदर मशरूफ थे कि उन्होंने शरीर विज्ञान तक का गहन अध्ययन किया। कहां संगीत, कहां गणित और कहां चित्रकला-मूर्तिकला, लेकिन लियोनार्दो ने हर क्षेत्र में गहरी पैठ बनाई और यह साबित कर दिया कि सीखने का संकल्प हो तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर में भी सीखने की अद्भुत उत्कंठा थी जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने साहित्य के लगभग सभी विधाओं- कविता, कहानी, नाटक, गीत आदि में बहुत लिखा और बहुत उत्कृष्ट लिखा। उनके गीत संग्रह 'गीतांजलि' के लिए उन्हें 1913 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। गुरुदेव पहले भारतीय थे जिन्हें इस सर्वोच्च सम्मान से नवाजा गया। तो आइये, हम सब नववर्ष 2015 का स्वागत कुछ नया और अच्छा सीखने के संकल्प के साथ करें।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।