- मिलन सिन्हा
क्या हम अपनी इस अनमोल जिंदगी में कुछ करना चाहते हैं, पाना चाहते हैं ? अगर हाँ, तो फिर, क्या हमने निष्ठापूर्वक खुद को देखने, जानने- समझने का प्रयास किया है ? कहते भी हैं, 'खुद को जानो, तभी खुदा मिलेंगे, नहीं तो खुदा तुमसे जुदा रहेंगे।' वैसे भी क्या यह तर्कसंगत लगता है कि हम वैसा ही सोचें जैसा और लोग सोच रहे है एवं वही करें जो और लोग कर रहें हैं ? हमें दूसरों से जरूर सीखना चाहिए, पर आंख बंद कर दूसरों की नक़ल नहीं करनी चाहिए। जब हम ओरिजिनल हैं तो फिर क्यों डुप्लीकेट बनें या दिखें ? किसी का भी कॉपी-पेस्ट संस्करण क्यों बनें ?
हमारे विषय में लोग क्या कहते हैं, उसमें सिर खपाने से कहीं ज्यादा आवश्यक है कि हम अपने कार्य आदि की समय -समय पर खुद निरपेक्ष समीक्षा करें, आत्म-विश्लेषण करें। जहाँ गलती हो रही है, उसे तुरंत सुधारें एवं जहाँ अच्छा कर रहे हैं, उसे और उन्नत करने का प्रयास करते रहें।सच मानिये, सकारात्मक सोच के साथ अगर आत्म-समीक्षक, आत्म-विश्लेषक की भूमिका निभाते हुए हम 'कल से बेहतर हो आज' के सिद्धान्त पर अमल करते रहेंगे, तो हमारे लिए सफलता की सीढ़ियां चढ़ना काफी आसान हो जायेगा।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
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