Sunday, March 16, 2014

आज की कविता : कैसे खेलूं फाग

                                                       - मिलन सिन्हा 
holi

कैसे खेलूं  मैं फाग 
जब पड़ोस में लगी हो आग ।

किस पर डालूं मैं रंग 
होली खेलूं किसके संग 
जब कि हो गए हैं 
चेहरे सबके बदरंग ।

कैसे खेलूं  मैं फाग 
जब  पड़ोस में लगी हो आग ।

ईमान  बिक रहा है 
चरित्र बंधक पड़ा है 
शासन जैसे सो रहा है 
सर्वत्र अंधेरा छा रहा है ।

कैसे खेलूं  मैं फाग 
जब पड़ोस में लगी हो आग ।

गाँव  उजड़ रहा है 
कस्बा कराह  रहा है 
शहर भी अब  सड़ रहा है 
मन सबका रो रहा है ।

कैसे खेलूं  मैं फाग 
जब  पड़ोस में लगी हो आग ।

राजनीति जब हो जाए गाली 
आतंकी खेल रहे खून की होली 
बेईमानों की कट रही हो रात 
जैसे हर रोज हो दिवाली ।

कैसे खेलूं  मैं फाग 
जब  पड़ोस में लगी हो आग ।

                 और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

 ( प्रवासी दुनिया .कॉम पर 16.03.14 को प्रकाशित)

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