- मिलन सिन्हा
कैसे खेलूं मैं फाग
जब पड़ोस में लगी हो आग ।
किस पर डालूं मैं रंग
होली खेलूं किसके संग
जब कि हो गए हैं
चेहरे सबके बदरंग ।
कैसे खेलूं मैं फाग
जब पड़ोस में लगी हो आग ।
ईमान बिक रहा है
चरित्र बंधक पड़ा है
शासन जैसे सो रहा है
सर्वत्र अंधेरा छा रहा है ।
कैसे खेलूं मैं फाग
जब पड़ोस में लगी हो आग ।
गाँव उजड़ रहा है
कस्बा कराह रहा है
शहर भी अब सड़ रहा है
मन सबका रो रहा है ।
कैसे खेलूं मैं फाग
जब पड़ोस में लगी हो आग ।
राजनीति जब हो जाए गाली
आतंकी खेल रहे खून की होली
बेईमानों की कट रही हो रात
जैसे हर रोज हो दिवाली ।
कैसे खेलूं मैं फाग
जब पड़ोस में लगी हो आग ।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
( प्रवासी दुनिया .कॉम पर 16.03.14 को प्रकाशित)
कैसे खेलूं मैं फाग
जब पड़ोस में लगी हो आग ।
किस पर डालूं मैं रंग
होली खेलूं किसके संग
जब कि हो गए हैं
चेहरे सबके बदरंग ।
कैसे खेलूं मैं फाग
जब पड़ोस में लगी हो आग ।
ईमान बिक रहा है
चरित्र बंधक पड़ा है
शासन जैसे सो रहा है
सर्वत्र अंधेरा छा रहा है ।
कैसे खेलूं मैं फाग
जब पड़ोस में लगी हो आग ।
गाँव उजड़ रहा है
कस्बा कराह रहा है
शहर भी अब सड़ रहा है
मन सबका रो रहा है ।
कैसे खेलूं मैं फाग
जब पड़ोस में लगी हो आग ।
राजनीति जब हो जाए गाली
आतंकी खेल रहे खून की होली
बेईमानों की कट रही हो रात
जैसे हर रोज हो दिवाली ।
कैसे खेलूं मैं फाग
जब पड़ोस में लगी हो आग ।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
( प्रवासी दुनिया .कॉम पर 16.03.14 को प्रकाशित)
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