- मिलन सिन्हा
गलती करना, उसका एहसास होना, फिर पछताना और उस गलती से सीख लेने एवं आगे उसे पुनः न दोहराने का संकल्प लेकर जीवन में अग्रसर हो जाना, मानव जीवन का उत्तम उसूल माना जाता रहा है। देखने पर हर महान व्यक्ति का जीवन इस सिद्धांत का पालन करता हुआ प्रतीत होगा। लेकिन, हम अपने आसपास नजर दौड़ाने पर पाते हैं कि हममें से अनेक लोगों के लिए गलती करना और फिर पछताना, समानांतर व सतत चलनेवाली प्रक्रिया है। देखा गया है कि वे जानते हुए भी ऐसे काम करते हैं जिसके लिए उन्हें पिछली बार भी पछताना पड़ा था।
गलती करना, उसका एहसास होना, फिर पछताना और उस गलती से सीख लेने एवं आगे उसे पुनः न दोहराने का संकल्प लेकर जीवन में अग्रसर हो जाना, मानव जीवन का उत्तम उसूल माना जाता रहा है। देखने पर हर महान व्यक्ति का जीवन इस सिद्धांत का पालन करता हुआ प्रतीत होगा। लेकिन, हम अपने आसपास नजर दौड़ाने पर पाते हैं कि हममें से अनेक लोगों के लिए गलती करना और फिर पछताना, समानांतर व सतत चलनेवाली प्रक्रिया है। देखा गया है कि वे जानते हुए भी ऐसे काम करते हैं जिसके लिए उन्हें पिछली बार भी पछताना पड़ा था।
ऐसे स्वभाव व व्यवहारवाले लोग मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं - एक तो सबमिसिव अर्थात दब्बू और दूसरे एग्रेसिव अर्थात आक्रामक। इन दोनों प्रकृति के लोगों को यह मालूम नहीं होता या मालूम होने पर भी यह तय नहीं कर पाते कि कब बोलना चाहिए और कब चुप रहना चाहिए। कहां और कब अपना पक्ष दृढ़ता से रखना है और किस मौके पर सिर्फ वेट एंड वाच की अवस्था में रहना श्रेयस्कर होता है। दिलचस्प बात यह है कि ये दोनों विपरीत स्वभाव के व्यक्ति होते है, पर दोनों ही विभिन्न राज रोगों (मधुमेह, ह्रदय रोग डिप्रेशन आदि) से ग्रसित होते हैं। जो सबमिसिव होते हैं, वे 'यस सर' (जी, महाशय ) श्रेणी के होते हैं. सही हो या गलत, बॉस के हर बात में 'यस सर' और बाद में सिर पकड़ कर बैठना, करवटें बदलते हुए सोने का प्रयास करना। दूसरी ओर जो एग्रेसिव होते हैं वे अपने को सही दिखाने के लिए अनावश्यक रूप से हर जगह हावी होना चाहते हैं। ये 'हायरिंग- फायरिंग' सिद्धांत वाले हैं। ऐसे लोग विवेचना कर जवाब देनेवाले लोगों को पसंद नहीं करते। इन्हें तो हर स्थिति में 'यस सर' कहनेवाले सबमिसिव लोग बहुत पसंद हैं। इस तरह ये गलती पर गलती करते हैं, पछताते हैं, किन्तु दूसरों पर दोष डाल कर फिर वैसी ही गलती करते रहते हैं।
कहने का तात्पर्य, व्यवहार में दब्बू अथवा आक्रामक होने के बदले, यह हमेशा वांछनीय है कि हम दृढ़ यानि निश्चयात्मक (एसर्टिव) बनें। पाया गया है कि निश्चयात्मक व्यवहारवाले मनुष्य संतुलित, सक्षम, विश्वस्त, वस्तुपरक, प्रगतिशील, निर्णयात्मक, विनोदप्रिय, शांतचित्त और तार्किक होते हैं। फलतः वे गुड लाइफ का पूरा आनंद उठाते हैं।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
# 'प्रभात खबर' के मेरे संडे कॉलम, 'गुड लाइफ' में प्रकाशित
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