Friday, November 22, 2013

आज की कविता : जरा सोचो तो, क्यों ?

                                               - मिलन सिन्हा

जरा सोचो तो !
आज 
न जाने 
क्या हो गया है ?

कलतक 
जिनके शब्द 
आपस में 
इस कदर गुंथे थे 
कि 
उनको अलग -अलग करके 
पहचानना मुश्किल पड़ता था 
आज वही 
दो विपरीत दिशाओं में 
दुर्गन्ध बिखेरते 
चले जा रहे हैं !

कलतक 
जो एक दूसरे के 
हाथ में हाथ डाले 
घूमा करते थे 
उनके वे हाथ 
आज शस्त्रों में 
कैद हैं !

कलतक 
जो एक दूसरे के 
मुंह में मुंह डाले 
बतियाते थे 
वे ही आज 
एक दूसरे का मुंह 
सदा के लिए 
बंद करने पर 
तुले हैं !

लेकिन 
इतना सब होने के बावजूद
वे सभी एक हैं 
सबों को 
इस जमीन से 
बेहद लगाव है 
जरा सोचो तो, क्यों ? 

  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

#  'मध्य प्रदेश संदेश' के सितम्बर'80 अंक में प्रकाशित

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