- मिलन सिन्हा
जरा सोचो तो !
आज
न जाने
क्या हो गया है ?
कलतक
जिनके शब्द
आपस में
इस कदर गुंथे थे
कि
उनको अलग -अलग करके
पहचानना मुश्किल पड़ता था
आज वही
दो विपरीत दिशाओं में
दुर्गन्ध बिखेरते
चले जा रहे हैं !
कलतक
जो एक दूसरे के
हाथ में हाथ डाले
घूमा करते थे
उनके वे हाथ
आज शस्त्रों में
कैद हैं !
कलतक
जो एक दूसरे के
मुंह में मुंह डाले
बतियाते थे
वे ही आज
एक दूसरे का मुंह
सदा के लिए
बंद करने पर
तुले हैं !
लेकिन
इतना सब होने के बावजूद
वे सभी एक हैं
सबों को
इस जमीन से
बेहद लगाव है
जरा सोचो तो, क्यों ?
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
# 'मध्य प्रदेश संदेश' के सितम्बर'80 अंक में प्रकाशित
जरा सोचो तो !
आज
न जाने
क्या हो गया है ?
कलतक
जिनके शब्द
आपस में
इस कदर गुंथे थे
कि
उनको अलग -अलग करके
पहचानना मुश्किल पड़ता था
आज वही
दो विपरीत दिशाओं में
दुर्गन्ध बिखेरते
चले जा रहे हैं !
कलतक
जो एक दूसरे के
हाथ में हाथ डाले
घूमा करते थे
उनके वे हाथ
आज शस्त्रों में
कैद हैं !
कलतक
जो एक दूसरे के
मुंह में मुंह डाले
बतियाते थे
वे ही आज
एक दूसरे का मुंह
सदा के लिए
बंद करने पर
तुले हैं !
लेकिन
इतना सब होने के बावजूद
वे सभी एक हैं
सबों को
इस जमीन से
बेहद लगाव है
जरा सोचो तो, क्यों ?
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
# 'मध्य प्रदेश संदेश' के सितम्बर'80 अंक में प्रकाशित
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