-- मिलन सिन्हा
कल (14 नवम्बर) बाल
दिवस था और चाचा नेहरु का जन्म दिवस भी। अनेक
सरकारी आयोजन हुए, स्कूलों में पिछले
वर्षों की भांति कई कार्यक्रम हुए, बहुत बातें
हुई, बच्चों की भलाई के
लिए ढेर सारे वादे किये गए, तालियां बजी ।
हां, आजाद देश के पहले प्रधान मंत्री
और बच्चों के चाचा नेहरू के जन्म दिन के उपलक्ष्य में भी अनेक कार्यक्रम आयोजित किये
गये । और
क्या ?
ज़रा सोचिये, इस मौके पर
पूरे देश में जितने रूपये सारे सरकारी आयोजनों में खर्च हुए दिखाए
जायेंगे, उतना अगर कुछ गरीब, बेसहारा, कुपोषित बच्चों के भलाई के लिए कुछ बेहद पिछड़े गांवों में खर्च किये जाते तो कुछ तो अच्छा होता।
आजादी के 66 साल बाद
भी पूरी आजादी से गरीब छोटे बच्चे सिपाही जी
को रेलवे के किसी स्टेशन पर या चलती ट्रेन में मुफ्त में गुटखा, सिगरेट,बीड़ी या तम्बाकू
खिलाता,पिलाता दिख जायेगा। वैसे ही दिख जाएगा
नेताओं, मंत्रियों, अधिकारियों के घर
में भी नौकर के रूप में काम करते हुए लाचार,
बेवश छोटे गरीब बच्चे। सड़क किनारे
छोटे होटलों, ढाबों, अनेक छोटे-मोटे कारखानों, दुकानों आदि में ऐसे छोटे बच्चे सुबह
से शाम तक हर तरह का काम करते मिल जायेंगे, तथाकथित बचपन बचाओ अभियान को अंगूठा दिखाते हुए। हमारे देश
में जन्म से ही गरीब तबके के बच्चों के साथ लापरवाही या जैसे-तैसे पेश आने का प्रचलन रहा हो ऐसा प्रतीत होता है, यह सब देख कर।
इस मौके पर निम्नलिखित तथ्यों पर गौर करना प्रासंगिक होगा :
बच्चों
के अधिकार पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र संघ अधिवेशन में पारित प्रस्ताव के अनुसार 18
वर्ष से कम आयु के लड़का और लड़की को बच्चों की श्रेणी में रखा जाता है। भारतवर्ष
में बच्चों की कुल संख्या देश की आबादी का 40% है, यानी करीब 48 करोड़। देश
में हर घंटे 100 बच्चों की मृत्यु होती है। भारत
में बाल मृत्यु दर (प्रति 1000 बच्चों के जन्म
पर ) अनेक राज्यों में 50 से ज्यादा है जब कि इसे 30 से नीचे लाने की आवश्यकता है। दुनिया
के एक तिहाई कुपोषित बच्चे भारत में रहते हैं। देश
में आधे से ज्यादा बच्चे कुपोषण के कारण मरते
हैं। पांच
साल तक के बच्चों में 42% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। जो बच्चे
स्कूल जाते है उनमें से 40% से ज्यादा बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं
जब कि शिक्षा के अधिकार कानून के तहत उनके स्कूली शिक्षा के लिए सरकार को हर उपाय करना है। हाल
के वर्षों में बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों
में वृद्धि हुई है।
इस तरह के अन्य अनेक तथ्यों से रूबरू होते रहते है हम पढ़े-लिखे,
खाते-पीते लोग। कभी- कभी वक्त मिले तो थोड़ी चर्चा भी कर लेते हैं। लेकिन, अब सरकार के साथ-साथ भारतीय समाज को भी इस विषय पर
गंभीरता से सोचना पड़ेगा और संविधान/कानून
के मुताबिक जल्द ही कुछ प्रभावी कदम
उठाने पड़ेंगे, नहीं तो इन गरीब, शोषित, कुपोषित,अशिक्षित बच्चों की बढती आबादी
आने वाले वर्षों में देश के सामने बहुत बड़ी और बहुआयामी चुनौती पेश करनेवाले हैं।ऐसे भी, हम कब तक सिर्फ सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी ) और शाइनिंग इंडिया की चर्चा से देश की आम जनता को बहलाते रहेंगे।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
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