Wednesday, May 1, 2013

लघु कथा : प्रासंगिकता

                                             - मिलन सिन्हा
 आज बद्री बाबू  का मूड बहुत अच्छा है। जब -जब वे भाषण देकर आते, काफी उत्साहित एवं प्रफुल्लित रहते। बद्री बाबू ने आज अपने भाषण में गांधी जी का कई बार उल्लेख किया । गांधी जी के जीवन की कई प्रेरक घटनाएं लोगों को सुनाई। उन्होंने बड़े जोरदार ढंग  से कहा कि किस तरह गांधी जी ने दबे- कुचले, शोषित-पीड़ित लोगों को समाज में उनका उचित स्थान दिलाने की पुरजोर कोशिश की। उन्हें गंदगी से बाहर निकाल कर स्वच्छ एवं सुन्दर बनाने का प्रयास किया । बद्री बाबू के भाषण के दौरान खूब तालियां बजी ।

      रिक्शे से हमलोग घर लौट आये । घर  पहुंचते ही बद्री बाबू ने पत्नी से चाय के लिए कहा । हमलोग बैठकखाने में बैठे ही थे कि बद्री बाबू का छोटा लड़का रोते हुए उनके पास आया और कहा, 'पिता जी, मेरी गेंद बाहर नाले में गिर गयी है । आप चलकर निकाल दीजिए ।'

      पहले तो बद्री बाबू ने टालने की कोशश की, पर जब लड़के ने जिद की तो उसे समझाते हुए कहा, 'बेटा , गेंद नाले में गिर गई तो गिरने दो । बाजार से मैं तुम्हे नई गेंद ला दूंगा । नाले में गिरने से यह गेंद तो गंदा  हो गया है । इसे नाले में ही पड़ा रहने दो । बाहर निकाल कर साफ़ करने से भी गंदा  ही रहेगा, साफ़ नहीं होगा ।

     बद्री बाबू का बेटा  नयी गेंद की आशा लिए लौट गया ।

     चाय में देर थी । लौटने से पूर्व मैंने बद्री बाबू से पूछा कि कुछ देर पहले वे जिस गांधी की चर्चा अपने भाषण में कर रहे थे, उनकी हमारे व्यावहारिक जीवन में कोई  प्रासंगिकता है क्या ? 

   यह सुनकर  एक क्षण के लिए बद्री बाबू निरुत्तर हो गए, बुत बने खड़े रहे, फिर नाले की ओर चल पड़े ! 

( 'हिन्दुस्तान' में 7 मई ,1998 को प्रकाशित

                                   और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं 

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