Thursday, April 25, 2013

आज की बात: बड़ा और बेहाल भारत - कैसे मिले गरीबों को राहत ?

                                                    - मिलन सिन्हा          

commn man
 हाल ही में योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने देश में गरीबी 2% कम  होने की बात कही है । आप देश में कहीं  भी, गाँव, क़स्बा, नगर या महानगर, चले जाएँ आपको एक बड़ा, पर बेहाल  भारत और एक छोटा, पर शाइनिंग  इंडिया दिख जायेगा। 65 साल के इस  आजाद  लोकतान्त्रिक देश में,जिसके पास दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी है, जिसके पास प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है, जिसके पास खाद्यान्न का पर्याप्त भंडार है , उस देश के लिए क्या यह अत्यंत शर्म की बात नहीं है कि अभी भी करोड़ों लोगों को एक शाम का खाना नसीब नहीं होता है?  

            देश के सभी सत्तासीन  नेताओं ने संविधान का हवाला देते हुए देश के सभी लोगों के लिए रोटी, कपड़ा, मकान की व्यवस्था की बात अपने हरेक चुनाव घोषणा पत्रों में किया है, लेकिन  देश में गरीबों की वास्तविक स्थिति कितनी दयनीय  है,  इसकी झलक निम्नलिखित तथ्यों से मिल जाती है:


  • विश्व बैंक के नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार विश्व के कुल गरीब लोगों में से 33% सिर्फ भारत में ही  रहते  हैं ।
  • देश में हर वर्ष 25 लाख से ज्यादा लोग भूख से मरते हैं ।
  • औसतन 7000 लोग रोज भुखमरी के शिकार होते हैं ।
  • संसार में भुखमरी से मरनेवाले लोगों में भारत पहले स्थान पर है । 
  • देश में 20 करोड़ से ज्यादा लोग रोज रात भूखे सो जाते हैं ।
  • 85 करोड़  भारतीय 20 रुपया प्रतिदिन की आमदनी पर गुजारा करते हैं ।


          उपर्युक्त  वास्तविकताओं के बावजूद केंद्र या राज्यों में सत्तारूढ़ राजनीतिक नेतागण देश की द्रुतगामी प्रगति के ढोल पीटने और इस बात पर मजमा/जलसा करके आम जनता के गाढ़ी कमाई का करोड़ों रूपया खर्च करने से बाज नहीं आते। गरीबों की भलाई के नाम पर बैठक दर बैठक का आयोजन पांच सितारा होटलों में या वातानुकूलित सरकारी कक्षों में लगातार चलते रहते हैं।  सरकार एवं  अन्य संस्थाओं के इन्हीं कार्यकलापों पर  कटाक्ष करते हुए प्रसिद्ध रचनाकार दुष्यंत कुमार ने लिखा है :

भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ 
आजकल दिल्ली में है जेरे बहस ये  मुद्दा !


        ऐसे में क्या यह उचित नहीं होगा कि समाज के  हर उम्र के सारे ऐसे लोग जिन्हें गरीबों के उत्थान से सच्चा लगाव है,  मिल कर अपने अपने  क्षेत्र के चुने हुए प्रतिनिधियों  एवं सरकार से यह आग्रह करे कि सबसे पहले संविधान के प्रावधानों और अपने चुनावी घोषणापत्रों के आलोक में एक निश्चित समय सीमा के भीतर भुखमरी की स्थिति  से देश को आजाद करें, तभी देश की आजादी की सार्थकता एक हद तक सिद्ध  होगी।

 # प्रवक्ता . कॉम   में  प्रकाशित 
                      और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं। 

Saturday, April 13, 2013

आज की कविता : कुछ बात बने

                                           - मिलन  सिन्हा
humanity













दुःख में भी सुख  से रह सको तो कुछ बात बने।
पहले खुद को पहचान सको  तो कुछ बात बने।

जानता हूँ , तुम वो नहीं जो तुम वाकई हो
जो तुम हो, वही रह सको तो कुछ बात बने।

माना की दुनिया बड़ी जालिम है फिर भी
जालिम को भी तालीम दे सको तो कुछ बात बने।

आसपास देखोगे तो बहुत कुछ सीखोगे
आपने पड़ोसी को भाई मान सको तो कुछ बात बने।

ऐसा नहीं है कि जो कुछ  है  यहाँ सब कुछ बेवजह है
बेवजह जो है उसकी वजह जान सको तो कुछ बात बने।

न जाने क्या - क्या बन रहें हैं  आजकल लोग
तुम आदमी बनकर रह सको तो कुछ बात बने।

प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :06.08.2013

               और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं।   

Sunday, April 7, 2013

आज की कविता : लहूलुहान सड़कें

                                                                             -मिलन सिन्हा   
        लहूलुहान  सड़कें   
             कारों में भीड़ नहीं,
          कारों की भीड़ है
          पक्षी सब सहमे से
          सहमे से नीड़ हैं
          सूखते उजड़ते पेड़ हैं
          लहूलुहान सड़कें हैं
          सूख रही धरती है
          फटी फटी परती है
          सूखे नदी ताल हैं
          घर घर अस्पताल है
          गाँव नगर सोये से
          जागता श्मशान है !
          ( 'अक्षर पर्व' के अक्टूबर, 2005 अंक में प्रकाशित) 

                      और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं। 

Saturday, April 6, 2013

मोटिवेशन : मानसिक दबाव दूर करें और जीवन का आनंद लें

                                              - मिलन सिन्हा
विख्यात अमेरिकी दबाव प्रबंधन विशेषज्ञ श्री हंस सेले के अनुसार, किसी व्यक्ति पर, कार्यस्थल पर, दबाव डालनेवाले प्रमुख तत्वों में लक्ष्य प्राप्ति की अतिशीघ्रता (जो कई बार अतार्किक / असंभव होती है), अत्यधिक कार्य तथा निर्धारित समय सीमा का दबाव, आग्रही और आक्रामक नियंत्रक प्राधिकारी, अल्प निष्पादक तथा कभी - कभी गैर निष्पादक कनिष्ठ कर्मचारी, समकक्षों के बीच  प्रतिस्पर्धा, अत्यधिक यात्रा, घरेलू विसंगतियां आदि होती हैं। और सर्वोपरि तत्व के रूप में आज के समष्टिगत जीवन में बढ़ती हुई अनिश्चितता इस अत्यधिक दबाव को बढ़ावा दे रही है।

पहली चीज जो हमें निष्ठांपूर्वक करनी चाहिए वह है अपने को जानना। हमें आँख मूंद  कर दूसरों  की नक़ल नहीं करनी चाहिए। हमें आत्म-विश्लेषक होना  चाहिए और सकारात्मक सोच के माध्यम से, व्यक्तिगत सुधार  हेतु सतत तत्पर रहना चाहिए।

व्यवहार में दब्बू अथवा आक्रामक होने के बदले, यह हमेशा वांछनीय है कि हम निश्चयात्मक बनें। निश्चयात्मक होने से विश्वस्त, प्रौढ़, स्पष्टवादी, संतुलित, वस्तुपरक, प्रगतिशील, निर्णयात्मक, सक्षम, विनोदप्रिय, शांतचित्त और तार्किक होने की गुणवत्ता आ जाती है।

व्यक्ति को कभी भी आशा का परित्याग नहीं करना चाहिए, क्यों कि प्रत्येक परेशानी का  कोई - न- कोई कारगर इलाज अवश्य  है।

दबाव नियंत्रण के  लिए  अमेरिकी  मनोविज्ञानी श्री ई. एल. एलबर्ट  द्वारा विकसित किया गया  सुसंगत भावनात्मक सिद्धांत, कार्यपालकों द्वारा महसूस की जानेवाली कठिनाइयों को कागज़ पर लिख कर उनके हल के तार्किक उपाय प्रस्तुत करने का विवेचन करता है। इस प्रकार अनेक भावनात्मक कुहरे छंट जाते हैं और  समस्या से संबंधित वास्तविक तथ्य सामने आ जाता है।

कतिपय कारपोरेट एककों द्वारा दबाव को हल करने के लिए, त्रिआयामी  दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव दिया गया तथा उसका परीक्षण किया गया (१ ) जिन कर्मचारियों को उच्च स्तर का दबाव हो चुका  है और जिन्हें अनिद्रा की बीमारी हो गयी है और नर्वस होने के लक्षण प्रकट होने लगे हैं तथा अन्य मनोविकार उत्पन्न हो गए हैं - उनके लिए आरोग्यकारी उपाय  (२ ) वरिष्ठ - कनिष्ठ का खुला संजाल तैयार करके दबी हुई भावनाओं को निडरता से प्रकट करके उन्हें पूर्व स्थिति में लाकर निवारक उपाय (३) भारतीय मूल्यों द्वारा एकांत समर्थित एक संस्कृति विकसित करके विकासात्मक उपाय। कार्यपालकों के बीच आवधिक सप्ताहांत प्रकृति के खुले वातावरण में स्वतंत्र, स्पष्ट और आमने सामने होनेवाले विचार - विमर्श के द्वारा भी दबावों से मुक्ति पायी जा रही है।

इस  पर जोर देने की आवश्यकता नहीं है कि हंसी सर्वोत्तम औषधि  है। गांधीजी ने हंसी की अमूल्यता की प्रशंसा की है। ऐसा जान कर वे इस औषधि का उपयोग भी करते थे।प्रेक्षकों की यह स्पष्ट राय है  कि हंसी का समय तनावमुक्त होता है। परिवार के सदस्यों / दोस्तों के साथ फिल्मों / धारावाहिकों का आनंद  लेने से भी हम सामान रूप से तनावमुक्त  होते हैं। 

तनावमुक्ति में संगीत की भी अहम् भूमिका होती है।

मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए शारीरिक स्वस्थता नितांत आवश्यक है। जो चीज हमारे शरीर को प्रभावित करती है, वह हमारे मन को भी प्रभावित करती है। इसी तरह जो चीजें हमारे मन को प्रभावित करती है, उनसे हमारा शरीर भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। कतिपय विलम्ब से ही सही, किन्तु बहुत से कारपोरेट घरानों ने इसके महत्व को समझा है और अब वे अपने कार्यपालकों को तनाव मुक्ति की पुरातन प्रविधियों जैसे योग, ध्यान और प्रार्थना के प्रति आगाह कर रहे हैं। 

योग केवल व्यायाम नहीं है, बल्कि यह एक जीवन पद्धति है। वस्तुतः योग का अर्थ अंतरात्मा से विराट विश्व की एकता। ध्यान का प्रभाव हमारे शरीर और मन दोनों पर ही अत्यंत शामक रूप से पड़ता है। हममें से बहुत से लोग इस बात से अवगत हैं कि हमारे शक्ति का मूल स्रोत प्रार्थना की शक्ति में निहित है। पोषक और संतुलित आहार पर भी जोर दिया गया है।

इस सबसे एक ऐसे वातावरण का सृजन होता है, जिसमे आदमी का मानसिक दबाव पिघलता हुआ नजर आता है। इसके अलावा अगर हम अपने प्राचीन गौरवपूर्ण जीवन मूल्यों को पुनः कारपोरेट जीवन में अपना लें और अर्जुन की तरह जिएं कि " अपना कर्तव्य सर्वोतम रूप में करें और शेष को भूल जाएं", तो निश्चित तौर पर  धीरे - धीरे हमारा मानसिक दबाव अवश्य ही बहुत कम हो जाएगा और हम खुद को ज्यादा  स्वस्थ  व आनन्दित महसूस करेंगे 

( 'कादम्बिनी' के मई ,2002 अंक में प्रकाशित )
                                                
                         और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Monday, April 1, 2013

आज की कविता : मालूम है


                                       - मिलन  सिन्हा 

      मालूम है

कहां क्या हो रहा है, मालूम है ।
जमाना बदल गया है, मालूम है ।

सही वही है, जो सही नहीं है
मान्यताएं बदल गई हैं, मालूम है ।

अतीत ना मालूम, वर्तमान काला है,
भविष्य उनका उज्जवल है, मालूम है ।

जिन्दगी अनिश्चित है, मौत निश्चित है
दुनिया एक अबूझ  पहेली है, मालूम है । 

अमीरी वरदान है, गरीबी अभिशाप है
समाजवाद सिर्फ एक नारा है, मालूम है । 

अंधे का नाम नयनसुख, बहरे का कर्णप्रिय
किसका दिल कहां गिरवी है, मालूम है । 

पैसा ही साध्य है, पैसा ही साधन है
हर चीज यहां बिकाऊ है, मालूम है ।

शिक्षित बेकार है, कुपढ़ नवाब है 
शिक्षा यहां बस मजाक है, मालूम है ।
 ( 'अक्षर पर्व' के मार्च, 2009  अंक में प्रकाशित) 




          और भी बातें करेंगे,चलते-चलते असीम शुभकामनाएं