Friday, January 22, 2021

शिष्टाचार का साथ कभी न छोड़ें

                              - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

जॉब इंटरव्यू हो या एडमिशन के लिए औपचारिक-अनौपचारिक पूछताछ-साक्षात्कार, छात्र-छात्राओं के शिष्टाचार पर भी सेलेक्टर्स की गहरी नजर रहती है. आपने भी सोशल मीडिया पर वह विडियो जरुर देखा होगा जहां एक युवा इंटरव्यू स्थल पर जाते हुए अनायास ही कुछ ऐसे कार्य करता है जिससे उसके शिष्टाचार का परिचय उसके इंटरव्यू बोर्ड को फॉर्मल इंटरव्यू से पहले ही मिल जाता है, क्यों कि उसका मानवीय आचरण सीसीटीवी में कैद हो जाता है. कहने की जरुरत नहीं कि उस युवा का सिलेक्शन आसानी से हो जाता है.
अमूमन सभी विद्यार्थी अपने बदतमीज और बदमिजाज सहपाठी या परिजन या अन्य किसी भी व्यक्ति को नापसंद करते हैं. ऐसे अशिष्ट लोगों को जब डांट-फटकार मिलती है तो सबको अच्छा ही लगता है. बचपन से ही माता-पिता, शिक्षक और सभी गुरुजन छात्र-छात्राओं को शिष्टाचार का पाठ पढ़ाते-समझाते रहे हैं, क्यों कि  यह विद्यार्थियों के संस्कार को परिलक्षित करता है. नोबेल पुरस्कार विजेता  प्रसिद्ध फ्रेंच लेखक अल्बर्ट कामू  तो कहते हैं कि जिस व्यक्ति में संस्कार नहीं हैं, वह एक जंगली जानवर की तरह है.


कोरोना काल के शुरूआती दौर में दूरदर्शन के नेशनल चैनेल और बाद में अन्य टीवी चैनेलों पर रामानंद सागर की  "रामायण" और बी.आर. चोपड़ा की "महाभारत" मेगा सीरियल का  करीब तीन दशकों बाद दुबारा प्रसारण हुआ. इन  दोनों धारावाहिकों को सभी उम्र के लोगों ने इतनी बड़ी संख्या में देखा कि दूरदर्शन ने इस दौरान टीआरपी के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले, जब कि इस लम्बे अंतराल में देश में काफी कुछ बदल गया;  एक नई पीढ़ी ने समाज में जगह बना ली जिसकी पसंद-नापसंद स्वाभाविक रूप से पिछली पीढ़ी से भिन्न थी. जानते हैं क्यों?  कारण तो कई थे, लेकिन  एक बड़ा कारण यह था कि आम भारतीय आज भी शिष्टाचार जैसे मानवीय मूल्यों को जीवन में बहुत अहमियत देता है, जिसके असंख्य प्रसंग रामायण और महाभारत में मिलते हैं.
श्रीराम के वनवास प्रस्थान का प्रसंग हो या  रावण से युद्ध की बात हो या फिर कुरुक्षेत्र के  महासंग्राम की बात, श्रीराम और श्रीकृष्ण का पूरा जीवन शिष्टाचार की कथा कहता है. सुख हो या दुःख, परिस्थिति अनुकूल हो  या प्रतिकूल, हर हाल में उन्होंने शिष्टाचार का सदैव साथ निभाया. 

 
दरअसल, शिष्टाचार मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा है. घर-बाहर हर स्थान पर दूसरों के प्रति अच्छा और मानवोचित व्यवहार शिष्टाचार कहलाता है. कहने की जरुरत नहीं कि सरलता, निश्छलता, सहजता, विनम्रता आदि सबको मोहित करते हैं. सहजता से वार्तालाप करने,  शालीनता और थोड़ा मुस्कुराकर जवाब देनेवालों की प्रशंसा और कद्र अनायास ही होती रहती है.  अनेक अवसरों पर यह देखा गया है कि जो व्यक्ति बराबर शिष्टाचार से पेश आते हैं, वे अपेक्षाकृत कम ज्ञानवान या डिग्रीवाले होने के बावजूद अपने क्षेत्र में लोकप्रिय होते हैं और सफल भी.
जानने योग्य बात है कि शिष्टाचार को मानने और दैनंदिन जीवन में उसका पालन करनेवाला विद्यार्थी अच्छी सोच और  सकारात्मक  नजरिया का धनी बनता जाता है. स्वाभाविक रूप से इसका गहरा असर उसके अध्ययन और उन्नति पर साफ दिखता है. इतना ही नहीं वह शारीरिक तथा  मानसिक रूप से बहुत स्वस्थ भी रहता है. कहने का अभिप्राय यह कि शिष्टाचार जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति को सुगम  बनाने में बड़ी भूमिका निभाता है. यही कारण है कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित द्विपक्षीय या बहुपक्षीय वार्ताओं में शिष्टाचार से जुड़ी छोटी-से-छोटी बात का सख्ती से अनुपालन किया जाता है. 


अंत में एक प्रेरक प्रसंग.
सन 1589 से 1610 तक फ्रांस के सम्राट रहे हेनरी IV एक दिन जब अपने सुरक्षा दल के साथ पेरिस की सड़क से गुजर रहे थे, तब सड़क के पास खड़े एक भिखारी ने अपनी टोपी हिलाकर उनका अभिवादन किया. तत्क्षण हेनरी IV ने अपना सिर झुकाकर इसका उत्तर दिया. इससे वह भिखारी तो उल्लसित हुआ ही, सड़क के दोनों ओर खड़े लोगों को भी राजा का यह आचरण बहुत अच्छा लगा. लेकिन उनके साथ चल रहे एक सुरक्षा गार्ड ने अपने राजा से प्रश्न किया, "क्या आपको इस तरह एक भिखारी का अभिवादन करना चाहिए था?' हेनरी IV ने जवाब दिया, "मुझे ऐसा अवश्य करना चाहिए था, क्यों कि अगर मैंने उस व्यक्ति के मेरे प्रति व्यक्त सम्मान का इस तरह अभिवादन न किया होता तो मेरी अंतरात्मा मुझे सदा कोसती रहती कि राजा होते हुए भी तुमने एक भिखारी के जैसा भी शिष्टाचार नहीं दिखाया." 

 (hellomilansinha@gmail.com)      

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 29.11.2020 अंक में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com 

Sunday, January 17, 2021

सोशल मीडिया और आपकी जिम्मेदारी

                                 - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

हाल ही में आईपीएल -2020 के एक मैच में प्रसिद्ध क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के अच्छा प्रदर्शन न करने पर एक नाबालिग विद्यार्थी ने सोशल मीडिया पर अवांछित कमेंट्स किए, जिसे बाद में  उसने डिलीट भी कर दिया. लेकिन तबतक वह पोस्ट लाखों लोगों के पास पहुँच गया और उसपर व्यापक प्रतिक्रिया आने लगी. पुलिस ने भी इसका संज्ञान लिया और फिर उस विद्यार्थी को गिरफ्तार कर लिया गया.  देखिए, आवेग और आवेश में आकर सोशल मीडिया पर की गई एक अवांछित टिप्पणी के कारण उसे और उसके परिवार को अब कई प्रकार की परेशानी से गुजरना पड़ रहा है. हां, जाने-अनजाने इस तरह की गलतियां रोज सोशल मीडिया पर की जाती हैं और देर-सबेर उसका संज्ञान भी पुलिस लेती है और उनके खिलाफ कार्रवाई भी होती है. 


पिछले एक दशक में सोशल मीडिया - फेस बुक, व्हाट्सएप्प, इनस्टाग्राम आदि के प्रचलन और लोकप्रियता में अपेक्षा से बहुत ज्यादा इजाफा हुआ है. स्मार्ट मोबाइल फोन और इंटरनेट की पहले से सस्ती उपलब्धता ने इसे गति प्रदान की है. सोशल मीडिया का हमारे दैनंदिन जिंदगी में असर बढ़ता जा रहा है. चुनाव तक में इसकी अहमियत को देश-विदेश में लोग महसूस कर रहे हैं. भविष्य में इसके विस्तार की बड़ी संभावना है. इसके एकाधिक कारण हैं जिससे सभी परिचित हैं.
हां, जैसे हर चीज के फायदे और नुकसान होते हैं, उसी तरह सोशल मीडिया का भी है. इसके कुछ बड़े फायदों में ये बातें शामिल हैं. सोशल मीडिया की मदद से आप घर बैठे दुनियाभर के लोगों - रिश्तेदार, दोस्त, परिचित-अपरिचित सबसे जुड़  सकते हैं. नए आइडिया, विविध जरुरी जानकारी एवं स्किल्स से परिचित होने और उसके माध्यम से अपने ज्ञान और क्षमता को उन्नत करने में यह सहायक सिद्ध होता है. अपने आइडिया और सोच को अन्य लोगों तक आसानी से पहुंचाने के क्रम में विद्यार्थियों की संवाद क्षमता और समावेशी-लोकतांत्रिक विचार समृद्ध  होता  है. रोजगार पाने और अपने अच्छे काम को प्रचारित-प्रसारित करने का भी यह एक बड़ा माध्यम है. 


अब विद्यर्थियों पर सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव एवं दुष्परिणाम की कुछ बातें. सब जानते हैं कि उत्सुकता, कल्पनाशीलता, रचनात्मकता और  चंचलता विद्यार्थी जीवन का अहम हिस्सा हैं. नयी  चीजें जानने-सीखने के प्रति उनकी एक स्वाभाविक जिज्ञासा होती है, लेकिन  इस उम्र में उनके लिए  अच्‍छे और बुरे में फर्क करना उतना आसान नहीं होता है. अतः  सोशल मीडिया आसानी से उनके विचार और व्‍यवहार को बदलने में बड़ी भूमिका निभाता है, क्यों कि यह प्लेटफार्म सही-गलत, और अच्छी-बुरी  जानकारी और मनोरंजन का व्यापक और सुलभ भंडार है.
इस परिस्थिति में छात्र-छात्राओं का अवांछित और हानिकारक साइट्स से जुड़ना और वहां ज्यादा समय बिताना उनके सोच को बुरी तरह प्रभावित करने का काम करता है. धीरे-धीरे अनायास ही विद्यार्थियों को इसकी लत लग जाती है, जिसका नेगेटिव असर उनके स्टडी और भावी जिंदगी पर भी पड़ता है.  कई मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि दिनभर में कई-कई घंटे  सोशल मीडिया पर ब्राउजिंग करने, चैटिंग  करने, पोस्‍ट लाइक, कमेंट या शेयर करने जैसे एक्टिविटी में लगे रहने से उनका बहुमूल्य समय तो खर्च होता ही है, साथ में  विद्यार्थियों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी काफी दुष्प्रभावित होता है. अफवाह और भ्रम फैलाकर समाज में विद्वेष और अशांति का माहौल बनाने में सोशल मीडिया के दुरूपयोग की बात भी सबको मालूम है. 

 
कोई भी टेक्नोलॉजी या सुविधा लोगों को बेहतर  जीवन जीने का अवसर प्रदान करता है, किसी दूसरे व्यक्ति को अपशब्द कहने या अवांछित और गैरकानूनी काम में संलिप्त होने का लाइसेंस नहीं देता. कहने का अर्थ यह  कि कोई भी तकनीक जब तक सकारात्मक रूप से उपयोग की जाती है, तभी तक उससे सही लाभ मिलता है. लेकिन अगर उसका इस्तेमाल गलत तरीके से किया जाए तो उससे बहुत नुकसान उठाना पड़ता है.
अतः विद्यार्थियों के लिए ये बातें सदा याद रखना हितकर और लाभदायक होगा: सोशल मीडिया पर किसी भी समाचार और जानकारी का सत्यापन किए बगैर सिर्फ आवेश और आवेग में प्रतिक्रिया  व्यक्त न करें; कमेंट और शेयर करने से पहले सब कुछ जांच-परख और सोच-समझ लें; पर्सनल और धार्मिक मामलों पर कमेंट करने से बचें या फिर लक्ष्मण रेखा का ध्यान जरुर रखें; कभी भूल से भी भूल हो जाए तो तुरत माफी मांगे व  पोस्ट डिलीट करें और छात्र जीवन में सोशल मीडिया को ज्ञानवर्धन का एक जरिया मात्र समझें.  

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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 15.11.20 अंक में प्रकाशित
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Tuesday, January 12, 2021

संकल्प, संयम, कर्म व देशप्रेम के प्रतीक स्वामी विवेकानन्द

                                - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एवं स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 

संकल्प, संयम, कर्म के प्रति निष्ठा और देशप्रेम की भावना स्वामी विवेकानंद (जन्म : 12 जनवरी, 1863, देहावसान : 4 जुलाई, 1902)  के जीवन की कहानी  खुद कहता है. इन विषयों पर उनके विचार हर व्यक्ति के लिए हमेशा प्रेरणादायक थे, हैं और रहेंगे. आइए, इन विषयों पर व्यक्त  उनके विचारों से प्रेरणा लेते हैं.


संकल्प: जिस समय जिस काम का संकल्प करो, उस काम को उसी समय पूरा करो, अन्यथा  लोग आप पर विश्वास नहीं करेंगे... ... जब तुम कोई कर्म करो, तब अन्य किसी बात का विचार ही मत करो. उसे एक उपासना के रूप में करो और उस समय उसमें अपना सारा तन-मन लगा दो... ...उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये. 


संयम: किसी भी काम को अच्छी तरह करने के लिए जरूरी है एकाग्रता.... ....हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है.... .... मन का विकास करो तथा उसका संयम करो. उसके बाद जहां इच्छा हो, वहां इसका प्रयोग करो. इससे जल्दी सफलता मिलेगी. 


कर्म: मनुष्य के रूप में हमारा पहला कर्तव्य यह है कि अपने प्रति घृणा न करें, क्योंकि आगे बढ़ने के लिए यह आवश्यक है कि पहले हम स्वयं में विश्वास रखें ... ...प्रत्येक मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वह अपना आदर्श लेकर उसे चरितार्थ करने का प्रयत्न करें. दूसरों के ऐसे आदर्शों को लेकर चलने की अपेक्षा, जिनको वह पूरा ही नहीं कर सकता, अपने ही आदर्श का अनुसरण करना सफलता का अधिक निश्चित मार्ग है. 


देशप्रेम: हमारा पवित्र देश भारत धर्म, दर्शन, अध्यात्म, प्रेम और मधुरता की पुण्य भूमि है. इन बातों में संसार के अन्य देशों की अपेक्षा हमारा देश अब भी श्रेष्ठ है.  यहीं अनेक बड़े-बड़े महात्माओं एवं ऋषियों का जन्म हुआ है. यह संन्यास और त्याग की भूमि है. आदिकाल से अबतक यहां मानव जीवन के लिए सर्वोच्च आदर्श का द्वार खुला हुआ है.


आज स्वामी जी को सच्ची श्रद्धांजलि यह होगी कि हर भारतवासी  स्वामी जी के व्यक्तित्व से सच्ची प्रेरणा लेकर देश को आत्मनिर्भर, समृद्ध और खुशहाल बनाने में व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से हरसंभव योगदान करें.

 (hellomilansinha@gmail.com)       

      
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Tuesday, January 5, 2021

स्ट्रेस मैनेजमेंट: शॉर्टकट से बचें

                                          - मिलन  सिन्हा,  स्ट्रेस मैनेजमेंट एंड वेलनेस कंसलटेंट 

देखा गया है कि येनकेन प्रकारेण कोई वस्तु या मुकाम प्राप्त करने की मंशा कई प्रकार के तनाव का कारण बनते हैं.
सोचनेवाली बात है कि जिंदगी कोई 20-20 क्रिकेट मैच तो नहीं है कि जल्दी-जल्दी जो चाहो उसे पा लो. लेकिन जो लोग जिंदगी को शॉर्टकट के रास्ते जीना चाहते हैं, उन्हें अप्रत्याशित परेशानी से जूझने  के लिए तैयार भी रहना चाहिए. विशेषज्ञ बताते हैं कि शॉर्टकट की मानसिकता वाले लोग मुश्किलों का सामना करने से घबराते हैं और जब कुछ चीजें, चाहे छोटी ही क्यों न हो, इस रास्ते से पाने में सफल हो जाते हैं, तो बस शॉर्टकट ही उनका एक मात्र रास्ता बन जाता है, क्यों कि तब तक तो ऐसे लोगों का आत्मविश्वास पहले की तुलना में काफी नीचे चला जाता है. आत्मविश्वास की कमी से तनाव को झेलना काफी मुश्किल हो जाता है. इससे तनाव में और वृद्धि होती है और उस अवस्था में सही-गलत का निरपेक्ष विश्लेषण नहीं हो पाता है और यह पाया गया है कि अधिकांश निर्णय गलत होता है. यह एक छोटे चक्रव्यूह से निकलने के बजाय बड़े चक्रव्यूह में फंसने जैसा है. सालभर मौज-मस्ती या अन्य गैरजरूरी कार्य में समय व्यतीत करने वाले छात्र-छात्राओं का परीक्षा से पहले शॉर्टकट तरीके से कोर्स पूरा करने का प्रयास सफल  नहीं होता है. ऐसे वक्त में उनका तनाव बढ़ना बिलकुल स्वाभाविक है. अंतिम क्षण में अपने इच्छानुसार सब कुछ पाने की कोशिश तनाव को खुला निमंत्रण है. तनाव प्रबंधन में एक चीज हमेशा याद रखनी चाहिए और वह यह कि जैसा बोयेंगे, कमोबेश वैसा ही काटना पड़ेगा. गलत मार्ग से सही मंजिल तक पहुंचना हर बार कहां मुमकिन है. 


सार-संक्षेप यह कि अपने शार्ट टर्म या लॉन्ग टर्म लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निश्चित कार्ययोजना बनाकर उस पर गंभीरता से अमल करें. तनाव कम होगा और रिजल्ट अच्छा होगा.  

  (hellomilansinha@gmail.com) 

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# "दैनिक जागरण" में 12.12.20 को  प्रकाशित  
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Friday, January 1, 2021

4-पी फार्मूला फॉर सक्सेस

                               - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

अपने मोटिवेशन और वेलनेस सेशन में स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों के साथ चर्चा और विचार-विमर्श के दौरान मुझसे कई बार यह पूछा जाता है कि छात्र जीवन में
सफलता के अहम मंत्र क्या हैं? सब जानते हैं कि सतत सफलता हासिल करने के लिए आदत और कार्यशैली में सभी अच्छी बातों को शामिल करते जाना और समय व परिस्थिति के हिसाब से उसका सदुपयोग करना नितांत जरुरी होता है. फिर भी, खासकर परीक्षा या किसी इवेंट या टेस्ट को सन्दर्भ में रखकर बात करें, जिसमें विद्यार्थीगण समय-समय पर शामिल होते रहते हैं, तो 4-पी फार्मूला अपनाकर छात्र-छात्राएं सफलता को साध सकते हैं. यहां 4-पी का मतलब है पैशन, प्लानिंग, प्रिपरेशन, परफॉरमेंस. अभी-अभी समाप्त हुए आईपीएल क्रिकेट टूर्नामेंट में शामिल टॉप चार टीमों ने भी मोटे तौर पर इसी फार्मूला को अच्छी तरह अमल में लाया. आइए, इनकी अहमियत पर थोड़े विस्तार से चर्चा करते हैं.  

 
पैशन यानी जुनून या प्रबल मनोभाव.
अमेरिकी लेखक व वक्ता एरिक थॉमस कहते हैं, "मुझे अलार्म क्लॉक की जरुरत नहीं. मेरा जुनून ही मुझे जगा देता है." स्वामी विवेकानंद ने इसे बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा है कि "तुम जब भी कोई काम करो, तब अन्य किसी बात का विचार मत करो. उस काम को इस तरह करो जैसे वह कोई बड़ी उपासना हो और उस वक्त उसमें अपना सारा तन-मन लगा दो." सही है. जब कोई भी विद्यार्थी अपनी परीक्षा या स्टडी के प्रति प्रबल मनोभाव से कोशिश करता है तो अच्छे परिणाम मिलते ही हैं. अपने काम के प्रति एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स के पैशन और उनकी अदभुत सफलता से  सभी विद्यार्थी परिचित हैं. 


प्लानिंग अर्थात योजना.
सभी विद्यार्थियों को इसकी अहमियत मालूम है. सब इसको अपने जीवन में महत्व भी देते हैं . लेकिन कितना? यह बड़ा सवाल है.  अनेक मैनेजमेंट एक्सपर्ट्स ने अपने-अपने अंदाज में इस बात को स्वीकार किया है कि बिना प्लानिंग के आगे बढ़ने का मतलब है हार की प्लानिंग के साथ चलना. मैनेजमेंट गुरु डेल कार्नेगी कहते हैं कि "एक घंटे की सही प्लानिंग से आप अपने काम में दस घंटे बचा सकते हैं." आपने भी देखा होगा कि कई   विद्यार्थी बहुत मेहनत करते हैं, लेकिन बिना किसी प्लानिंग के. लिहाजा उनको अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता है. अतः हर परीक्षा से पहले आपकी प्लानिंग फूल प्रूफ और अमल में लाने योग्य होनी चाहिए जिस पर फोकस करके आप अंतिम परिणाम को आसानी से हासिल कर सकें.   

 
प्रिपरेशन मतलब तैयारी.
बिना अच्छी तैयारी के सक्सेस की कल्पना बेतुकी है. और अधूरी तैयारी से अधूरा रिजल्ट ही मिलता है. अच्छी तैयारी का मतलब होता है सभी पक्षों पर सोच-विचार कर कार्ययोजना के अनुरूप मंजिल की ओर बढ़ते जाना. विद्यार्थियों के लिए हर परीक्षा महत्वपूर्ण होता है, बेशक वह छोटी-बड़ी कोई भी परीक्षा हो. अतः तैयारी में अपनी तरफ से कोई कमी न रह जाए, इसका पूरा ध्यान रखना जरुरी है. परीक्षा के प्रति आपकी यह सोच धीरे-धीरे आपकी आदत बन जाती है जो आपके लिए सदा एक विनिंग टूल  साबित होता है. ऐसा करना मुश्किल नहीं है. बस अपनी प्लानिंग और उस पर आधारित एक्शन प्लान को अमल में लाने में जुट जाना है. काम के प्रति पैशन से यह आसान हो जाता है.   


परफॉरमेंस यानी कार्य निष्पादन.
अंततः परफॉरमेंस में ही रिफ्लेक्ट होता है किसी भी विद्यार्थी का  पैशन, प्लानिंग और प्रिपरेशन. दीगर बात है कि सब कुछ करने के बाद भी अगर कार्य निष्पादन ही अपेक्षित रूप में नहीं कर पाए तो रिजल्ट अपेक्षित कैसे होगा? कहते हैं न कि जब आप सफल हो जाते हो तो फिर बाकी बातें खुद साफ़ हो जाती हैं. यहां सफलता का अर्थ सकारात्मक रूप से हासिल सफलता से है. अतः यह अनिवार्य है कि छात्र-छात्राएं यहां कोई कमी न छोड़ें. एक-एक छोटे-बड़े पॉइंट्स को नोट और रीवाइज करें. परीक्षा के लिए निर्धारित सभी विषयों से संबंधित सवालों का उत्तर समझकर लिखने का अभ्यास करें. इससे आत्मविश्वास बढ़ेगा और परीक्षा के वक्त इसका लाभ मिलेगा जब आप नियत समय में सभी प्रश्नों का उत्तर देने में सफल होंगें. हां, हर ऐसे मौके पर विद्यार्थियों को विश्वविख्यात उद्योगपति और प्रबंधन महारथी हेनरी फोर्ड की  यह बात याद रखनी चाहिए कि "ऐसा कोई भी इंसान मौजूद नहीं है जो उससे ज्यादा ना कर सके जितना कि वो सोचता है कि वो कर सकता है."

 (hellomilansinha@gmail.com)  


            और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
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