- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
स्वतंत्रता दिवस पर प्रसिद्ध क्रिकेटर महेन्द्र सिंह धोनी ने जैसे ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से खुद को स्वतंत्र करने यानी सन्यास लेने की घोषणा की, वैसे ही उनके करोड़ों प्रशंसकों की प्रतिक्रिया आने लगी. इतना ही नहीं, उसी शाम एक अन्य जानेमाने क्रिकेटर और धोनी के साथी खिलाड़ी सुरेश रैना ने भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया. सबको ज्ञात है कि रैना और धोनी के रिश्ते कितने प्रगाढ़ रहे हैं. खैर, धोनी के इस अप्रत्याशित घोषणा के बाद उनके बचपन के साथी और उनके स्कूल के कोच से लेकर सौरव गांगुली, कपिल देव, शेन वार्न, विराट कोहली सहित देश-विदेश के अनेकों खिलाड़ियों ने धोनी के साथ उनके मधुर रिश्ते की बात कही है. यह सचमुच बहुत ही अच्छी बात है और धोनी की सबसे बड़ी पूंजी - रिश्तों की पूंजी.
रिश्तों की शुरुआत हमारे जन्म से ही हो जाती है और समय के साथ इसका दायरा निरंतर बढ़ता जाता है. घर-परिवार, आस-पड़ोस, अपना समाज, स्कूल, कॉलेज से होते हुए देश-विदेश तक प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से यह व्यापक होता जाता है. भारतीय संस्कृति में तो 'वसुधैव कुटुम्बकम्' यानी "पूरा संसार है मेरा परिवार" की बात कही जाती है. अच्छी बात है कि रिश्ते बनाने और निभाने में माहिर बहुत सारे लोग आपको हर क्षेत्र में मिल जायेंगे जो बिना किसी अपेक्षा के लोगों से जुड़ने का काम करते रहते हैं, क्यों कि वे मानते हैं कि रिश्तों का जीवन में सबसे अधिक महत्व है. क्या सभी विद्यार्थी इस बात को समझते हैं और रिश्तों को यथोचित महत्व देते हैं? छात्र-छात्राओं के लिए यह गंभीर विचारणीय विषय है, क्यों कि संयुक्त परिवार के टूटने, एकल परिवार के बढ़ते जाने, पैसे के प्रति अतिशय आसक्ति जैसे कारणों से हमारे आपसी संबंधों में जो गिरावट और कड़वाहट आई है, उसके कई दुष्परिणामों से उन्हें भी रूबरू होना पड़ता है. अतः उनके लिए इसकी अहमियत को ठीक से जानना-समझना और उसे जीवन में उतारना हर मायने में अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है. दूसरे शब्दों में सभी विद्यार्थियों के लिए सकारात्मक तौर पर रिश्ते बनाने और उसे अच्छी तरह निभाने की कला में पारंगत होना शिक्षा को सार्थक करना है.
विद्यार्थीगण अपने घर में रिश्तों के बारे में जानना शुरू करते हैं. बचपन से उन्हें यह शिक्षा स्वतः मिलती रहती है कि कैसे माता-पिता का सम्मान किया जाता है, कैसे सभी बड़े-बुजुर्गों का आदर-सत्कार किया जाता है, कैसे हमउम्र लोगों के साथ दोस्ती निभाई जाती है, कैसे अपने से छोटे उम्र के लोगों के प्रति अनुराग प्रदर्शित किया जाता है और तो और अनजाने लोगों व जीव-जंतुओं के साथ भी कैसे पेश आया जाता है. जैसा वे देखते हैं, उनका मानस वैसा ही तैयार होता जाता है. यही बड़ा कारण है कि हर विद्यार्थी का व्यवहार एक ही सिचुएशन में भिन्न होता है. कोई तो साधारण सी बात पर बहुत गुस्सा हो जाता है, अपशब्द कहता है और मारपीट तक करने लगता है, वहीँ एक अन्य विद्यार्थी शांति से रियेक्ट करता है, बुद्धिमानी से और हंसकर मामले को रफादफा करता है और अनजाने स्थान पर अनजाने लोगों से प्रेम का रिश्ता कायम कर लेता है. सोच कर देखें तो इन दो विद्यार्थियों के व्यवहार के पीछे सामान्यतः संबंधों से संबंधित उनकी सीख ही रिफ्लेक्ट होती है. हां, अनेक मामलों में समझदारी में उन्नति के साथ रिश्तों की अहमियत समझ में आने लगती है. रोचक बात है कि स्थायी और मजबूत रिश्ते पैसे, प्रलोभन, डर-आतंक, झूठ-फरेब, शॉर्टकट आदि के जरिए कायम नहीं रह सकते हैं. इसकी बुनियाद तो सच्चाई-अच्छाई, म्यूच्यूअल अंडरस्टैंडिंग, ट्रस्ट, रेस्पेक्ट और भाईचारे की भावना होती है.
रिश्ते बनाना और निभाना एक बड़ा लीडरशिप क्वालिटी माना जाता है. अलग-अलग बैकग्राउंड से आए विभिन्न लोगों की छोटी या बड़ी टीम को कप्तान के रूप में एकजुट रखकर एक कॉमन गोल को हासिल करने का काम वाकई चुनौतीपूर्ण और रोमांचक होता है. तभी तो देश-विदेश के मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट में रिलेशनशिप मैनेजमेंट की पढ़ाई होती है; प्रोफेशन, हेल्थ एंड हैप्पीनेस में इस लाइफ स्किल की भूमिका के विषय में विस्तार से चर्चा होती है. कॉरपोरेट सेक्टर के साथ-साथ सरकारी विभागों में भी कर्मियों को इसके बहुआयामी पॉजिटिव रिजल्ट के बारे में बताया जाता है. कहने की जरुरत नहीं कि राजनीति से लेकर कूटनीति तक अच्छे संबंध कायम करने, निभाने और उसके माध्यम से बड़ी-से-बड़ी समस्या का समाधान निकालने और देश को विकास पथ पर तेजी से आगे ले जाने में दक्ष हमारे प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी इसके ज्वलंत उदाहरण हैं.
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और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" में 06.09.2020 को प्रकाशित
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