- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर... ....
हाल ही में प्रधानमंत्री ने "मन की बात" कार्यक्रम में इ-सिगरेट के खतरे से युवाओं को बचने की सलाह दी. यह अकारण नहीं था. नशीली पदार्थों की किस्में और दायरा दोनों बढ़ रहा है. हाई प्रोफाइल इलाके से लेकर झुग्गी बस्तियों तक के युवा नशे की चपेट में आ रहे हैं. देश के शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ रहे विद्यार्थियों में से हजारों विद्यार्थियों का किसी-न-किसी प्रकार के नशे के प्रति बढ़ता झुकाव बहुत बड़ी चिंता का कारण है. यह विद्यर्थियों के भविष्य के लिए बहुत बड़ा खतरा है तो देश के सामने एक गंभीर चुनौती भी. ऐसा पाया गया है कि 16-18 वर्ष की उम्र में नशे की लत लग जाती है. सिगरेट, शराब, गुटखा, तम्बाकू, भांग और गांजा की ओर युवा सबसे ज्यादा आकर्षित हो रहे है. इससे आगे उन्हें चरस, अफीम, कोकीन, हेरोइन जैसे नशीले पदार्थ लुभाते हैं. इस छोटी उम्र में जो विद्यार्थी नशे के शिकार हो जाते हैं, उनके लिए आगे यह केवल मौजमस्ती या फैशन का नहीं, बल्कि बड़ी जरुरत का कारण बन जाती है. "शराब है खराब या नशा करता है आपका नाश या सिगरेट-शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है" जैसी चेतावनी उनके लिए निरर्थक है. आम तौर पर यह देखा गया है कि विद्यार्थियों में इस लत की शुरुआत दूसरों के देखादेखी, विज्ञापन प्रेरित, दोस्तों के दवाब, क्षणिक रोमांच, अकेलापन, हीनभावना, उपेक्षाभाव, भय, तनाव, अवसाद आदि कारणों से होती है.
जोर देने की जरुरत नहीं कि नशीले पदार्थों के सेवन से कम उम्र के विद्यार्थी न केवल कई रोगों का शिकार होते हैं, बल्कि कई गैर कानूनी एवं असामाजिक कार्यों में शामिल होकर अपना और अपने परिवार-समाज-देश को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. पहले तो उनको पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता है. इससे उनका रिजल्ट खराब होता है. इधर नशे के दुष्प्रभाव से सेहत खराब होने लगती है. झूठ बोलना और छोटी-मोटी चोरी का सिलसिला भी शुरू हो जाता है. शातिर असामाजिक तत्व इस वक्त रहनुमा और हितैषी बनकर अवतरित होते हैं और ऐसे विद्यार्थियों को अपने जाल में आसानी से फंसा लेते हैं. फिर तो अधिकांश मामले में उन विद्यार्थियों का जीवन छोटा हो जाने के साथ-साथ किसी-न-किसी अवांछित काम में बर्बाद हो जाता है. अपने आसपास देखने पर विद्यार्थियों को ऐसे अनेक मामले दिखाई पड़ जायेंगे. देश-विदेश की कई फिल्मों में भी इन घटनाक्रमों को दिखाया जाता रहा है. यहां सभी विद्यार्थियों के लिए अहम विचारणीय सवाल है कि आखिर क्यों कोई विद्यार्थी अपने अमूल्य जीवन को नशे की लत में पड़कर नाहक विनाश पथ पर ले जाता है, जब कि बचपन से ही उनके अभिभावक-शिक्षक-परिजन उन्हें अच्छी-अच्छी बातें सिखाते हैं और नशे आदि से हमेशा दूर रहने को कहते हैं?
दरअसल, किशोरावस्था के संक्रांति काल में जब हार्मोनल बदलाव के साथ-साथ परिवेशजन्य कई बदलावों से छात्र-छात्राएं गुजरते हैं, तब एक साथ कई परिवर्तनों - शारीरिक, मानसिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक, का प्रबंधन एक जरुरी, पर कठिन काम होता है. मन चंचल होता है. इसी समय एकाधिक कारणों, खासकर संस्कार, संयम और संकल्प में कुछ कमी, से छात्र-छात्राएं भटकते हैं और फिर गलत संगत में पड़कर नशे की तथाकथित रोमानी और रोमांचक दुनिया में प्रवेश करते हैं. माता-पिता, भैया-दीदी, शिक्षक तथा अन्य परिजन अगर इस वक्त विद्यार्थियों को अच्छे तरीके से इन बदलावों को समझने और उनका अपने हित में प्रबंधन करने में मदद करें तो विद्यार्थियों के लिए इन बदलावों के अनुरूप खुद को एडजस्ट करना और सम्हाले रखना आसान हो जाता है. हां, इस अवधि में विद्यार्थियों की असामान्य गतिविधियों पर ध्यान देना और उन्हें समझाना अभिभावकों की बड़ी जिम्मेदारी होती है.
हां, अगर किसी विद्यार्थी को चाहे-अनचाहे नशे की लत लग गई है तो उन्हें इससे यथाशीघ्र बाहर निकलने का प्रयास करना चाहिए. यकीनन इसके लिए साहस और संकल्प की दरकार होती है. बस यह मान लें कि जो हुआ सो हुआ. बीत गई सो बात गई. हर दिन एक नया दिन होता है. जीवन में एक नयी शुरुआत कभी भी और किसी भी परिस्थिति में की जा सकती है. बेशक ऐसे समय घरवालों और अच्छे दोस्तों की भूमिका बहुत अहम होती है. उन्हें नशा करनेवाले विद्यार्थियों से नफरत करने के बजाय उन्हें बढ़िया से समझाने की हर संभव कोशिश करने की विशेष जरुरत होती है, क्यों कि इसी दौरान उनको मोटिवेशन और इमोशनल सपोर्ट की सख्त जरुरत होती है.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 24.11.2019 अंक में प्रकाशित
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