Tuesday, January 28, 2020

हेल्थ मोटिवेशन : धूप का रोज लें आनंद, सेहत ठीक रहे हरदम

                                              - मिलन  सिन्हा,   हेल्थ मोटिवेटर  एवं  स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 
सूर्य के बिना जीवन की कल्पना नामुमकिन है. हमारे देश में हजारों वर्षों से सूर्य को देवता के रूप में पूजा जाता है. सूर्य की पहली किरण हमारे लिए रोज एक नयी सुबह लेकर आती है. हरेक के जीवन में आशा, उत्साह, उर्जा और उमंग को प्रतिबिंबित करती है ये किरणें. दिलचस्प बात  है कि सूर्य हमें सिर्फ प्रकाश और ऊर्जा प्रदान नहीं करते, बल्कि हमारे लिए वायु, जल, अन्न, फल और साग-सब्जी का भी प्रबंधन करते हैं.  इतना ही नहीं, सूर्य की किरणों का हमारी सेहत से गहरा रिश्ता है. हम सभी जानते हैं कि धूप विटामिन-डी का सबसे सशक्त, प्रभावी और आसानी से उपलब्ध प्राकृतिक स्रोत है.

ज्ञातव्य है कि हमारा देश विश्व के ऐसे देशों में शामिल है, जहां लोगों को सूर्य की रोशनी पर्याप्त मात्रा में कमोबेश हर मौसम में उपलब्ध होती है. फिर भी हाल में एक रिसर्च में जो  तथ्य सामने आया है उसके मुताबिक़ देश में बड़ी संख्या में लोगों में विटामिन-डी की कमी पाई गई है, जिसके कारण उन लोगों का कई सारे रोग के चपेट में आने का खतरा स्वतः बढ़ जाता है. 

दरअसल फ़ास्ट लाइफ के वर्तमान दौर में  मुफ्त में मिलनेवाली धूप के विषय में ठीक से जानने, समझने और उसका आनन्द ही नहीं, बल्कि हेल्थ के सन्दर्भ में उसका अपेक्षित लाभ उठाने का अवसर नहीं मिल पाता है या उसके प्रति अपेक्षित जागरूकता का अभाव है. 

रोचक तथ्य है कि सूर्य न केवल हमें बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड को ऊर्जा प्रदान करता है. सूर्य की सप्तरंगी किरणें रोगनिवारक होती हैं. धूप के सेवन से हमारा शरीर अनेक प्रकार की बीमारियों से बचा रहता है. प्रकृति विज्ञानी तो कहते हैं कि सूर्य एक प्राकृतिक चिकित्सालय है. ऐसी मान्यता बिलकुल सही है जब हम आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के तराजू पर धूप के असीमित फायदों को तौलते हैं.

1. धूप के कारण हमारे शरीर को उचित मात्रा में विटामिन-डी मिलने पर कैल्शियम शरीर में ठीक से एब्जोर्ब यानी अवशोषित होता है. इसी कारण विटामिन-डी को शरीर में हड्डियों की मजबूती के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. हड्डियां कमजोर होने से फ्रैक्चर का खतरा बढ़ता है. हम ऑस्टियोपोरोसिस के  शिकार भी हो सकते हैं. 

2. धूप का नियमित सेवन न करने यानी विटामिन-डी की कमी से दिल की बीमारी भी होती है. हार्ट स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. मांस -पेशियों में दर्द रहता है जिससे कई अन्य दिक्कतें भी पैदा होती हैं.

3. सूरज की किरणों में एंटी कैंसर तत्व होने से कैंसर का खतरा टलता है. जिन्हें कैंसर है, उन्हें धूप से बीमारी में आराम महसूस होता है. कई शोधों से यह बात सामने आई है कि जहां धूप कम समय के लिए होती है या जो लोग धूप में कम समय बिताते हैं, कैंसर की आशंका वहां ज्यादा होती है.

4. धूप के कारण शरीर गर्म होता है. नाड़ियों में रक्त प्रवाह सुचारू रहता है. इससे शरीर के सारे अंग सक्रिय रूप से काम करते हैं. धूप के सेवन से जठराग्नि ज्यादा सक्रिय रहती है. फलतः पाचनतंत्र बेहतर ढंग से काम करता है और खाना ठीक से पचता है. नतीजतन हमारे शरीर को अपेक्षित पोषण मिलता है और सेहत ठीक रहती है.

5. शरीर को अपेक्षित धूप न मिलने के कारण सेरोटोनिन तथा  एंडोर्फिन जैसे फील गुड और फील हैप्पी हार्मोन का यथोचित स्राव नहीं होता है जिससे तनाव और अवसाद से ग्रस्त लोगों को ज्यादा परेशानी होती है. ऐसे भी सुबह की धूप हमारे मन -मष्तिष्क को आनंदित करता है. 

6. धूप का संबंध हमारी नींद से भी है. नींद की क्वालिटी को प्रभावित करनेवाला  मेलाटोनिन नामक हार्मोन का स्राव धूप सेंकने से अच्छी तरह संभव हो पाता  है, क्यों कि धूप का सीधा असर  हमारे शरीर के पीनियल ग्रंथि पर होता है जिससे यह हार्मोन निकलता है. 

7. धूप का सेवन त्वचा संबंधी कई शारीरिक समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है. एक्ने, सोरायसिस और एग्जिमा इनमें से कुछ हैं. दरअसल, धूप सेंकने से हमारा खून साफ़ होता है और इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है. धूप के सेवन से कई तरह के संक्रमण अपने-आप ख़त्म हो जाते हैं. 

8. जाड़े के मौसम में धूप में बैठने से  शरीर को गर्मी मिलती है, जिससे शरीर की जकड़न दूर होती है और ठंड के कारण आई अंदरूनी परेशानियां दूर होती है. इससे हड्डियों और मांसपेशियों को बहुत लाभ मिलता है.

9. नियमित रूप से कुछ समय धूप का सेवन करने से सर्दी-जुकाम से बराबर पीड़ित रहनेवाले  लोगों को बहुत फायदा होता है. दरअसल, धूप में बैठने से हमारे शरीर में वाइट ब्लड सेल्स की संख्या तेजी से बढ़ती है जो रोग का प्रतिकार कर पीड़ित व्यक्ति को राहत पहुंचता है.

हां, एक वाजिब सवाल हैं कि किस समय और कितनी देर धूप का सेवन स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है? 
सुबह की धूप हमेशा अच्छी होती है. मौसम के हिसाब से कहें तो जाड़े में सुबह 12 बजे तक आधे घंटे तक धूप का सेवन बेहतर लाभ पहुंचाता है. गर्मी में सुबह 9-10 बजे तक का समय उपयुक्त है. जो लोग सुबह धूप का लाभ नहीं उठा सकते वे अपराह्न सूर्यास्त से पहले यानी 4-6 बजे के बीच इसका आनंद ले सकते हैं.

ध्यान रहे कि किसी भी मौसम में चिलचिलाती धूप में बैठना-लेटना सही नहीं है. जैसे कोई भी चीज बहुत अधिक ठीक नहीं होती, वैसे ही बहुत देर तक धूप में बैठे रहना भी हानिकारक है. इससे स्किन कैंसर, आंख की परेशानी, एलर्जी आदि का खतरा रहता है.

अंत में एक और विचारणीय बात. लाइफ कितना  भी फ़ास्ट हो, प्राथमिकताओं का सही प्रबंधन करते हुए हम सभी अपनी सेहत को ठीक रखने के लिए रोज थोड़ा वक्त तो निकाल ही सकते हैं. कहते हैं न कि जहां चाह, वहां राह. उदाहरण के लिए अगर हम सूर्योदय के बाद वाकिंग करते हैं  तो हमें अनायास ही थोड़ी देर धूप में भी रहने का अवसर मिल जाता है. शनिवार-रविवार या अवकाश के दिन अगर बच्चों के साथ किसी पार्क में चले गए तो बच्चों का मनोरंजन और व्यायाम हो जाएगा तथा साथ  में सबको धूप में रहने का मौका भी मिल जाएगा. उसी तरह जब भी मौका मिले, थोड़ा सन बाथ लेने का प्रयास करेंगें तो सेहत को ठीक रख पायेंगे.   
(hellomilansinha@gmail.com) 

                 
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# दैनिक भास्कर में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com 


Tuesday, January 21, 2020

"ना" कहना भी एक कला

                                                       - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर... .... 
ना सुनना शायद ही किसी को अच्छा लगता है.  दरअसल, सामनेवाले  के मुंह से हां या 'यस सर' सुनना आम तौर पर सबको अच्छा लगता है. विद्यार्थियों को भी घर-बाहर हर जगह हां ही सुनना पसंद है, भले ही वह सच न हो. पर थोड़ा ठहर कर सोचने पर अटपटा लगता है कि हर मुद्दे पर सहमति में हां कहना कैसे संभव है? फिर, सिर्फ हां कह देने मात्र से बात बन जाती है या उस हां के अनुरूप अपेक्षित कार्य को  अंजाम देना मुख्य उद्देश्य होता है? अधिकतर मामलों में हम पाते हैं कि छात्र-छात्राएं 'ऑल प्लीज एटीट्यूड' अथवा 'फियर साइकोसिस' के तहत 'यस सर' का सहारा लेते हैं. ऐसी स्थिति में कमिटमेंट पूरा नहीं होने पर अनावश्यक मानसिक द्वन्द या तनाव, विश्वसनीयता  का संकट, वादाखिलाफी के आरोप आदि से जूझना पड़ता है.

महात्मा गांधी ने कहा है, 'शुद्ध अंतःकरण एवं  प्रतिबद्धता से बोला गया एक स्पष्ट 'ना'  उस 'हां' के वनिस्पत कहीं ज्यादा अच्छा है जो महज दूसरे को खुश करने या किसी समस्या से तात्कालिक निजात पाने के लिए किया जाता है.' गांधी जी के इस विचार के तराजू पर अगर कोई भी विद्यार्थी  खुद को और अपने दोस्तों-सहपाठियों को तौले तो बहुत सारे कटु सत्य सामने आ जायेंगे. सोचिए, आपने अब तक कितनी बार अपने आसपास के लोगों से हां सिर्फ इसलिए कहा होगा  कि वे तात्कालिक रूप से वे आश्वस्त हो जाएं और अच्छा फील करें. लेकिन कभी आपने इस पर गंभीरता से विचार किया है कि जब उन लोगों की आशा-अपेक्षा आपके हां के अनुरूप पूरी नहीं हुई होगी तो उनका आपके प्रति विचार या मंतव्य कैसा रहा होगा. क्या उनकी नजरों में आप एक भरोसेमंद  विद्यार्थी या इंसान माने जायेंगे?

विद्यार्थी अपने आसपास गौर से देखेंगे तो पायेंगे कि कई साथी-सहपाठी, रिश्तेदार या कई बड़े अधिकारी-नेता लोगों को मात्र खुश करने या टरकाने-टहलाने या भ्रम में रखने के लिए हां कहकर अनावश्यक रूप से ओवर कमिटमेंट के जाल में स्वतः फंस जाते हैं. फिर एक झूठ को छुपाने के लिए सौ झूठ बोलने वाली कहावत को वास्तव में जीने लगते हैं. और  आज नहीं तो कल जब झूठ का भांडा फूटता है तब वे न घर के रहते हैं न घाट के. दसाधिक सर्वेक्षणों में यह पाया गया है कि कई छात्र-छात्राएं अपने अभिभावक, शिक्षक या  बड़े-बुजुर्ग के दवाब में कोई कोर्स ज्वाइन कर लेते हैं जहां उनका मन नहीं होता है. सही समय पर पूरी शालीनता व दृढ़ता से तर्क और तथ्य के आधार पर ना कह देने से भविष्य में होनेवाली अनेक समस्याओं से बचा जा सकता है. कहने का तात्पर्य यह कि जहां एक ना से काम आसान हो सकता है, वहां हां रूपी झूठ बोलकर खुद के लिए समस्या मोल लेना कहां की बुद्धिमानी है? सच तो यह है कि आप तो अच्छी तरह जानते हैं कि ना की जगह हां कह कर आपने दूसरे को थोड़ी देर के लिए खुश तो कर दिया, पर आपकी परेशानी का आरम्भ वहीँ  से हो गया. इसके चलते आप सोच और कार्य के स्तर पर जटिलता की राह पर चल पड़ते हैं जहां सफलता, स्वास्थ्य, सुख और शांति से कम या ज्यादा समझौता अनिवार्य हो जाता है. 
    
दरअसल हां कहने का सीधा मतलब है कि जो वादा किया है उसे तो जरुर निभाएंगे. मेरा तो स्पष्ट मत है कि हर विद्यार्थी को ना बोलने की कला में माहिर होना चाहिए. इससे वे कहीं भी अपनी बात या पक्ष दृढ़ता से रखने में सक्षम हो पायेंगे. विद्यार्थियों के लिए यह अच्छी तरह जानना-समझना बहुत लाभप्रद है कि जीवन एक खूबसूरत, लेकिन चुनौतियों से भरी लम्बी यात्रा है, जिसमें सहजता-सरलता से जीने के लिए हां और ना का सदुपयोग करते रहना है. जरुरतमंदों की मदद करना बहुत अच्छी बात है लेकिन सिर्फ बातों या वादों से नहीं, बल्कि उसके अनुरूप कार्य निष्पादन से. इससे ना कहने पर भी अगले को बुरा नहीं लगता और वे आपसे नाराज नहीं होते. दूसरे, आपको भी उन कार्यों को करने का समय मिलता है, जिसके लिए आपने हां बोला है, चाहे वह किसी दोस्त या सहपाठी को परीक्षा से पहले तैयारी में मदद करने की बात हो, दोस्त या  किसी परिजन की शादी में शिरकत करने की बात हो या ब्लड डोनेशन कैंप में सक्रियता से शामिल होने की बात. विश्वविख्यात एप्पल कंपनी के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स भी कहते हैं, "कुछ कार्यों या लोगों को ना बोलकर ही हम उन कार्यों पर अपना ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं जो वाकई बहुत महत्वपूर्ण हैं." सार-संक्षेप यह कि  किसी को एकदम से  ना कहना आसान नहीं होता, पर ना कहना कोई गुनाह भी तो नहीं. हां, ना कहना निश्चित रूप से एक अदभुत कला है और देखा गया है कि जो लोग इस  कला में पारंगत हो जाते हैं वे ना कहकर भी लोगों के बीच लोकप्रिय बने रहते हैं,  क्यों कि ऐसे लोग अमूमन हां और ना की मर्यादा को बखूबी निभाना जानते हैं. 
(hellomilansinha@gmail.com) 

                 
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 17.11.2019 अंक में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com  

Friday, January 17, 2020

हेल्थ मोटिवेशन: अच्छी सेहत के लिए जरुरी यह काम, रोज टहलें सुबह या शाम

                              - मिलन  सिन्हा, हेल्थ मोटिवेटर  एवं  स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 
हाल ही में स्वास्थ्य पर एक परिचर्चा के दौरान अनायास ही कह दिया था - चलते रहेंगे तो चलते रहेंगे ! फिर गहराई में जाकर सोचा तो पता चला कि इस छोटे से वाक्य में कई तरह के अर्थ छुपे हैं. मनोज कुमार अभिनीत मशहूर हिन्दी फिल्म, 'शोर' का यह गाना भी बरबस याद आ जाता है : 'जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-शाम.....'

सच पूछें तो चलना-टहलना ऐसे तो एक सामान्य शारीरिक क्रिया है, पर इसके परिणाम अत्यन्त  बहुआयामी एवं दूरगामी होते हैं. दरअसल, टहलना-चलना एक लोकतान्त्रिक सोच है, एक समावेशी दर्शन है और एक सम्पूर्ण विकास यात्रा भी. गौतम बुद्ध, स्वामी विवेकानंद,  महात्मा  गांधी, विनोबा भावे जैसे कितने ही महान व्यक्ति इसका ज्वलंत उदाहरण हैं. 

फादर ऑफ़ मेडिसिन हिप्पोक्रेटीस का तो कहना है कि मनुष्य के लिए टहलना सबसे अच्छी दवा है. शायद इसलिए इसे सौ मर्जों की एक दवा भी कहा जाता है.

बहरहाल, दुःख की बात है कि यह जानने-समझने के बावजूद  कि टहलना सबसे आसान व्यायाम है, अधिकांश लोग दिनभर में टहलने के लिए 20-30 मिनट का समय भी नहीं निकाल पाते हैं. ज्ञातव्य है कि हमारे देश में कार, बाइक आदि पर निरंतर बढ़ती निर्भरता के कारण हम नजदीक के स्थानों तक जाने के लिए  भी कार और बाइक का सहारा लेते हैं, जहां हम आसानी से पैदल जा सकते हैं. एक सर्वे के अनुसार करीब 20 % लोग उन स्थानों के लिए पैदल के बजाय किसी -न-किसी वाहन का उपयोग करते हैं.  सोचिए जरा, अगर हम पास की जगह तक भी पैदल जाने लगें तो हमारी सेहत  थोड़ी अच्छी जरुर हो जाएगी, साथ-ही-साथ हमारे थोड़े पैसे बच जायेंगे, देश का तेल आयात बिल थोड़ा घटेगा और वायु प्रदूषण में भी थोड़ी कमी आएगी. मतलब सबको फायदा.  

ऐसे तो कई लोग खुद को फिट रखने के लिए पैसे खर्च करके जिम आदि जाते हैं, लेकिन मेडिकल रिसर्च तथा स्वास्थ्य विशेषज्ञ का स्पष्ट कहना है कि सभी उम्र के लोगों के लिए  वाकिंग से सहज, सरल और मुफ्त कोई दूसरा और विकल्प नहीं है.

टहलना वाकई बहुत आसान है,  क्योंकि हम अपनी सुविधानुसार टहल सकते हैं. इस कार्य में न तो पेट्रोल-डीजल-मोबिल का खर्च आता है, न तो पार्किंग की कोई जरुरत होती है और न ही इससे कोई प्रदूषण  फैलता है. हम  अपने शारीरिक अवस्था के हिसाब से टहलने की गति निर्धारित कर सकते हैं. और-तो-और हम अकेले, जोड़े में या ग्रुप में भी टहल सकते हैं. 

ऐसे टहलने के लिए सुबह का समय उपयुक्त माना गया है, लेकिन किसी कारण से अगर हम सुबह समय नहीं निकाल सकते हैं तो शाम को टहल सकते हैं. अपने सामान्य गति से थोड़ा तेज टहलना ज्यादा फायदेमंद माना गया है. टहलने में नियमितता का महत्व बहुत अहम है.
  
स्वाभाविक रूप से सुबह सूर्योदय के बाद टहलने के फायदे अपेक्षाकृत ज्यादा  हैं. आजकल तो डॉक्टर, खासकर ह्रदय रोग विशेषज्ञ, मधुमेह रोग विशेषज्ञ आदि अपने-अपने मरीजों को रोज सुबह कम से कम आधा घंटा टहलने की सलाह जरूर देते हैं.

रोजाना सुबह खुले स्थान और कमोबेश स्वच्छ वातावरण में तेज गति से आधे घंटे टहलने से न केवल शरीर के सारे अंग सक्रिय हो जाते हैं एवं पूरे शरीर में रक्त प्रवाह तेज हो जाता है, बल्कि इससे हमारे मेटाबोलिज्म को बहुत लाभ मिलता है. इतना ही नहीं, सुबह टहलने से हमारे अंदर की नकारात्मकता कम होने लगती है और हम सकारात्मकता से भरने लगते हैं. कहने की जरुरत नहीं कि जो लोग स्वस्थ हैं उन्हें  नियमित रूप से  मॉर्निंग वॉक करने पर कई लाइलाज रोगों से छूटकारा मिल सकता है.

आइए जानते हैं सुबह टहलने के कुछ अहम फायदे :

1. हमारे देश में बड़ी संख्या में लोग डायबिटीज यानी मधुमेह से ग्रसित हो रहे हैं. इससे बचे रहने के लिए नियमित रुप से टहलना बहुत लाभकारी है. मधुमेह के रोगियों के लिए भी टहलना काफी फायदेमंद माना जाता है. दो-तीन किलोमीटर टहलने के बाद अगर इसके मरीज ब्लड शुगर की जांच करवाते हैं तो उसमें सुधार दिखता है. यही कारण है कि डॉक्टर उन्हें  नियमित  रूप से टहलने की राय देते हैं.

2. रेगुलर वाकिंग हार्ट को हेल्दी रखने का एक सहज-सरल उपाय है.  नियमित मॉर्निंग वाक से हाई ब्लड प्रेशर सहित ह्रदय रोग के अन्य मरीजों को बहुत लाभ मिलता है. इस क्रम में उनके मांसपेशियों का व्यायाम हो जाता है, दिल अच्छी तरीके से काम करता है,  शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह उन्नत होता है  और गुड कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ता है.  बुजुर्गों के लिए तो  यह विशेष रूप से फायदेमंद है. 

3. हम सब जानते हैं कि मोटापा अपने-आप में एक बीमारी है. इसके कारण हम स्वतः अन्य कई रोगों के चपेट में आ जाते हैं. हर रोज तेज रफ्तार से 30-40 मिनट टहलने से मोटापा कम करने और अपने शारीरिक वजन को  नियंत्रण में रखने में बहुत लाभ मिलता है, क्यों कि  इस प्रक्रिया में अच्छी मात्रा ऊर्जा खर्च होती है और फैट बर्न होता है. फलतः धीरे-धीरे वजन कम होने लगता है. बेशक इसके साथ-साथ खानपान में नियंत्रण भी जरुरी होता है.

4. टहलने से हमारी हड्डियां मजबूत होती हैं. शरीर के जोड़ों को कार्यशील और मजबूत बनाए रखने में रेगुलर वाकिंग की अहम भूमिका है. इससे हमें  ऑर्थराइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस जैसे रोगों में लाभ मिलेगा और हममें से कई लोग इन रोगों से बचे भी रह पायेंगे. हर उम्र के पुरुष और महिलाओं को इससे बहुत लाभ मिलता है. 

5. ऐसे तो कैंसर से बचाव के मामले में मर्द-औरत सबके लिए वाकिंग की स्पष्ट भूमिका है, लेकिन एकाधिक  मेडिकल रिसर्च के मुताबिक़ यदि महिलाएं कम-से-कम 30-40 मिनट रेगुलर वाक करें तो उनके लिए एक बड़े हद तक स्तन कैंसर से  बचे रहना संभव हो सकता है. टहलने से हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत होता है अर्थात हमारी प्रतिरोधक क्षमता उन्नत होती है, जिससे कैंसर सेल्स को बहुत नुकसान पहुँचता है. 

6. टहलने का हमारे मानसिक स्वास्थ्य से भी गहरा रिश्ता है. इससे हमारी मेमोरी अच्छी रहती है. प्राकृतिक परिवेश  और ऑक्सीजन की सुलभता के कारण ब्रेन की सक्रियता बढ़ती है. चिंतन-मनन की क्षमता में इजाफा होता है. तभी तो प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे कहते हैं, "वाकई सभी महान विचार वाकिंग के दौरान ही मन में आते हैं."

एक रोचक जानकारी और. पैदल चलने की प्रक्रिया के क्रम में शरीर में सिरोटोनिन नामक फील गुड केमिकल का स्राव होता है और चलना अच्छा लगने लगता है. इसी दौर में आगे हमारे शरीर में एंडोर्फिन नामक फील हैप्पी केमिकल का स्राव भी शुरू हो जाता है जिससे  चिंता और तनाव में कमी आती है तथा हमें आनंद की अनुभूति होती है. 

तो फिर क्यों न हम सब चलें टहलने के लिए प्रसिद्ध कवि गिरिजा कुमार माथुर की चर्चित कविता "हम होंगे कामयाब" की यह पंक्तियां गुनगुनाते हुए कि हम चलेंगे साथ-साथ, डाल हाथों में हाथ... ...मन में है विश्वास, हम होंगे कामयाब? 
(hellomilansinha@gmail.com) 

                 
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# दैनिक भास्कर में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com 


Tuesday, January 14, 2020

नई राहें: जॉब मार्केट में कैसे रहें डिमांड में?

                                                - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस  कंसलटेंट ...
हम सब जानते हैं कि दुनिया परिवर्तनशील है. उदारीकरण के इस दौर में नौकरी का बाजार भी कई प्रकार के परिवर्तन का गवाह रहा है. पिछले दो-तीन दशकों में  नौकरी पाने को इच्छुक लोगों की बढ़ती संख्या के कारण मांग और आपूर्ति का अर्थशास्त्रीय गणित गड़बड़ा गया है. सरकारी  या अर्द्ध सरकारी नौकरी का दायरा सिमटता जा रहा है. अब ज्यादातर नौकरियां निजी क्षेत्र में उपलब्ध हैं. नौकरी का परम्परागत चरित्र भी बदल गया है. अब बहुत कम संख्या में लोग एक संस्थान में नौकरी ज्वाइन करते हैं और वहीँ  से रिटायर यानी सेवानिवृत होते हैं. अब तो नौकरी के बाजार में लोगों को 5-10 साल में तीन-चार नौकरियां  बदलते देखना जैसे आम बात हो गई है, बेशक इस दौरान उन्हें अनिश्चितता और अतिरिक्त तनाव से निबटना पड़ता है. ये सारी  बातें सही हैं. लेकिन इन सब चुनौतियों के बावजूद हमारे देश में आज और भविष्य में भी नौकरी चाहनेवालों और नौकरी करनेवालों की संख्या में न तो कमी आएगी और न ही नौकरी के बदलते मानदंडों और जरूरतों को समझने और साधनेवाले लोगों में कमी होगी. ऐसा इसलिए कि मानव स्वभाव ही चुनौतियों और बदलाव को गले लगाकर सफलता की सीढ़ियां चढ़ते जाने का रहा है. हां, इसके लिए कुछ बुनियादी बातों को दैनंदिन जीवन में अमल में लाने की आवश्यकता होती है, तभी हम नौकरी हासिल  करने के अलावे जॉब या कैरियर  में ग्रोथ को भी सुनिश्चित कर पायेंगे. आइए, पांच अहम बातों पर चर्चा करते हैं. 

1. स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि सब शक्तियां हममें मौजूद हैं. हम कोई भी काम संपन्न कर सकते हैं. बस खुद पर विश्वास बनाएं रखें. गिरिजा कुमार माथुर की प्रेरक कविता की पहली पंक्ति इसी भाव को रेखांकित करते हुए कहती है कि हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब, मन में है विश्वास, हम होंगे कामयाब. लिहाजा हम खुद पर भरोसा रखें और मन के विश्वास को कभी कमजोर न होने दें. इसके बहुआयामी फायदे हैं. दरअसल, जॉब इंटरव्यू हो या प्रमोशन के लिए साक्षात्कार  या कार्यक्षेत्र में समस्या विशेष का समाधान तलाशने की बात, जॉब नॉलेज के साथ-साथ इसका असर भी हर जगह दिखता है. 
   
2. जीवन में होनेवाले बदलाव से घबराना ठीक नहीं. लम्बी जीवन यात्रा में कुछ बदलाव हमारे कारण होते हैं तो कुछ दूसरों के कारण. कुछ पर हमारा नियंत्रण होगा, कुछ पर कम होगा या बिलकुल नहीं होगा. ऐसा सबके साथ होता है. सफल लोग इन बदलावों को  नए अवसर के रूप में लेते हैं, उनका निष्पक्ष विश्लेषण करते हैं  और तदनुसार  रणनीति बनाकर आगे बढ़ते हैं. सोचिए जरा, सालभर बदलते मौसम के अनुरूप हमारे खान-पान से लेकर पहनावे तक हम कितनी स्वाभाविकता से सब कुछ अंगीकार कर जीवन का आनंद उठाते हैं. कुछ वैसा ही दृष्टिकोण कार्यक्षेत्र में होनेवाले चाहे-अनचाहे परिवर्तनों के प्रति रखें तो कई लाभ होंगे. 

3. सीखने का सिलसिला सदा जारी रखें. बीते हुए कल से आज हमारा कुछ बेहतर हो, इस फलसफे को अमल में लाकर हम खुद को निरंतर उन्नत कर सकते हैं. यह बेहतरी सोच, विचार, व्यवहार, ज्ञानार्जन, स्वास्थ्य आदि किसी भी मामले में हो सकता है. इससे हम सकारात्मक कार्यों से जुड़े रह पायेंगे और परिणामस्वरूप जीवन में सकारात्मक बदलाव के हकदार और भागीदार भी बनते जायेंगे. दुनिया में स्वस्थ, सफल और सुखी लोगों की जीवन यात्रा हमें यही संदेश तो देती है.

4. कुशल कर्मी बने रहने के लिए अपने कौशल को बढ़ाते और निखारते रहना जरुरी होता है. अपने कार्यक्षेत्र से संबंधित वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों को ध्यान में रखकर कौशल विकास के पथ पर बढ़ते रहना सर्वथा अच्छा होता है. अगर नौकरी चेंज करने की मंशा है, तो संभावित पोजीशन और संस्थान को ध्यान में रखकर प्रो-एक्टिव प्लानिंग और तैयारी करना बेहतर  है. हम सबको एक और बात का जरुर ख्याल रखना चाहिए और वह यह कि जब भी किसी संस्थान से नौकरी छोड़ें तो विदाई में अपनी तरफ से पूरी शालीनता और सदभाव बनाए रखें; सबके प्रति आभार प्रकट करें. किसी तरह की कटुता न छोड़ कर जाएं और न ही ले कर जाएं.  कहा भी गया है कि आल इज वेल दि एंड्स वेल अर्थात अंत भला तो सब भला. यही नजरिया नए कार्यस्थल पर नौकरी ज्वाइन करते समय रखें. कहते हैं न कि वेल विगन इज हाफ डन अर्थात अच्छी शुरुआत आधा काम आसान कर देती है. खुले मन से अच्छाई के साथ जुड़ते रहना अच्छा है.

5. आज में यानी वर्तमान में जीना श्रेष्ठ माना गया है. यह विज्ञानं नहीं बल्कि एक कला है. जो बीत गई सो बात गई - सुप्रसिद्ध रचनाकार डॉ. हरिवंश राय बच्चन की एक कविता की पहली पंक्ति है. यूं भी जो आनेवाला कल है, वह भी तो एक दिन बाद का वर्तमान ही है. वर्तमान को अंग्रेजी में प्रेजेंट कहते है जिसका एक अर्थ उपहार भी होता है. वाकई वर्तमान हम सबके लिए सर्वोत्तम उपहार है. जिसने वर्तमान को सम्मान नहीं दिया, वह भविष्य में सम्मान का हकदार बनेगा इसकी संभावना क्षीण होती है. बोनस में अवांछित तनाव व दुश्चिंता से जूझना पड़ता है. पूर्व प्रधानमंत्री और कवि अटल बिहारी वाजपेयी की "जीवन बीत चला" शीर्षक  कविता की पहली चार पंक्तियां आज में जीने की महत्ता को बखूबी रेखांकित करती हैं: कल, कल करते, आज / हाथ से निकले सारे, / भूत, भविष्य की चिंता में / वर्तमान की बाजी हारे. कहने का अभिप्राय यह कि अगर हम कार्यक्षेत्र में अपने हर काम को बिना टालमटोल के या बिना देर किए  पूरी निष्ठा और तन्मयता से यथाशक्ति और यथाबुद्धि करने की कोशिश करें तो संतोष, सफलता और सम्मान सबको एन्जॉय कर पायेंगे.   
(hellomilansinha@gmail.com)

                 
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com 

Tuesday, January 7, 2020

हेल्थ मोटिवेशन : गुड हेल्थ के लिए साल्ट स्मार्ट होना जरुरी

                             - मिलन  सिन्हा,   हेल्थ मोटिवेटर  एवं  स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 
आपने भी शायद वह कहानी पढ़ी होगी  जिसमें राजा की छोटी बेटी अपने पिता को नमक जैसा महत्वपूर्ण बताती है. नमक का हक़ अदा करने के सन्दर्भ में नमक हराम, नमक हलाल जैसे जुमले तो हम सब बचपन से सुनते आये हैं. नमक के एकाधिक विज्ञापनों में कई नामचीन लोगों को देश का नमक खाने और उसका हक़ अदा करने का वादा करते भी देखा-सुना है.

सच कहें तो खाने में नमक न हो तो भोजन बेस्वाद लगता है. तभी तो  नमक को सबरस कहा जाता है, सभी रसों के केन्द्र में रखा जाता है. कहने का अभिप्राय यह कि नमक हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. रसायन शास्त्र में नमक को  सोडियम क्लोराइड के नाम से जाना जाता है. सच पूछिए तो सोडियम क्लोराइड में 40 प्रतिशत सोडियम होता है और 60 प्रतिशत क्लोरीन. सोडियम हमारे शरीर के लिए एक जरुरी तत्व है. यह मनुष्य के शरीर में पानी का सही स्तर बनाए रखने से लेकर ऑक्सीजन और दूसरे पोषक तत्वों को शरीर के सभी अंगों तक पहुंचाने के काम में सहायता करता है. हमारे तंत्रिकाओं को सक्रिय बनाए रखने में भी यह अहम भूमिका अदा करता है. 

हमारे देश में आम आदमी आमतौर पर रिफाइंड नमक अर्थात आयोडाइज्ड नमक का इस्तेमाल करते हैं. दरअसल समुद्री नमक को रिफाइंड करने के क्रम में उसे कृत्रिम रूप से आयोडीन युक्त किया जाता है. इस आयोडाइज्ड नमक को घेंघा या गोइटर रोग से बचाव के लिए उपयोग करने की सलाह दी जाती है. ऐसे दूध, केला, सब्जी, अंडा आदि कई आम खाद्द्य पदार्थों के सेवन से भी हमें आयोडीन की पूर्ति होती है और वह भी प्राकृतिक रूप से. ज्ञातव्य है कि एक व्यस्क आदमी को प्रतिदिन एक सुई के नोंक के बराबर आयोडीन (150 mcg) की जरुरत होती है. 

दिलचस्प तथ्य है कि  सोडियम प्राकृतिक रूप से अनाज, सब्जियों, दूध, फल आदि चीजों में अलग-अलग मात्रा में मौजूद होता है. सोडियम युक्त चीजों में मूली, गाजर, मीठा आलू, ब्रोकली, पपीता, प्याज, टमाटर आदि शामिल हैं. कहने का मतलब, जो लोग मोटे तौर पर संतुलित आहार लेते हैं, उन्हें कई वैकल्पिक स्रोतों से भी सोडियम की आपूर्ति हो जाती है. साथ में उन्हें आयोडीन भी प्राकृतिक रूप में मिल जाता है. अतः उन्हें आयोडाइज्ड नमक लेने की खास जरुरत नहीं होती. आजकल ऐसे लोगों को सेंधा नमक इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है, क्यों कि आयोडीन की अधिकता भी हमारे शरीर के लिए नुकसानदेह हैं. रोचक बात यह भी है कि सेंधा नमक में अनेक मिनरल्स प्राकृतिक रूप से मौजूद होते हैं जो हमारे सेहत के लिए बहुत लाभकारी हैं. 

देखा जाए तो आजकल हमलोग नमक और नमकवाली चीजें कुछ अधिक ही खा रहे हैं.  हम अपने मुख्य भोजन में दाल, साग-सब्जी, मांस-मछली-अंडा, आचार, पापड़ आदि का खूब सेवन करते हैं, जिसमें नमक का जमकर प्रयोग होता है. नतीजतन, हमारे शरीर में नमक की मात्रा  यानी सोडियम की मात्रा मानक स्तर से कहीं ज्यादा बढ़ जाती है और इससे हमलोग अनायास ही ह्रदय रोग, हाइपरटेंशन, दमा, ओेस्टोपोरोसिस, किडनी स्टोन जैसी कई  घातक बीमारी की चपेट में आ जाते हैं.

हम सब यह भी जानते हैं कि नमक का व्यापक प्रयोग खाने की चीजों में स्वाद के अलावे परिरक्षक (प्रिज़र्वेटीव) के रूप में भी किया जाता रहा है. मक्खन, आचार, भुजिया, गाठिया, चिप्स, कुरकुरे जैसे अनेक डब्बाबंद एवं पैकेट में मिलनेवाली नमकीन चीजों में नमक यानी सोडियम  की मात्रा अपेक्षाकृत ज्यादा होने का यह भी एक कारण है. काबिलेगौर बात है कि यही अधिक सोडियम युक्त चीजें रोगों को बढ़ानेवाला साबित हो रहा है. 

दिलचस्प तथ्य है कि कई बार डॉक्टर आदि के कहने पर हम नमक तो खाना कम कर देते हैं लेकिन डिब्बाबंद पेय सहित कुछ अन्य चीजों का ज्यादा सेवन करने लगते हैं. जानने योग्य बात है कि इन सबमें बेकिंग सोडा या  प्रिज़र्वेटीव का उपयोग होता है जिसमें सोडियम मौजूद होता है.

पाया गया है कि एक औसत भारतीय वयस्क के दैनिक आहार में 8 ग्राम से ज्यादा नमक होता है अर्थात 3 ग्राम से ज्यादा सोडियम जब कि बेहतर स्वास्थ्य के लिए करीब 4 ग्राम नमक काफी है अर्थात करीब 1.5 ग्राम सोडियम. बताते चलें कि एक रिपोर्ट के मुताबिक़ ब्रिटेन में एक जागरूकता अभियान के परिणाम स्वरुप वर्ष 2003 से 2011 के बीच नमक के इस्तेमाल में 15 फीसदी की कमी आई. इसका सीधा एवं सकारात्मक असर स्ट्रोक तथा  ह्रदय रोग के मामले में 40% तक की  कमी के रूप में सामने आया. जापान, फ़िनलैंड, अमेरिका सहित अन्य कई देशों ने भी समय-समय पर जागरूकता अभियान के जरिए लोगों को इस दिशा में प्रेरित करने का काम किया है और इससे इन देशों में ह्रदय रोग सहित अन्य कई रोगों के मरीजों की संख्या में कमी आई है.

ऐसा भी पाया गया है कि नमक या नमकीन चीजों का ज्यादा सेवन करनेवाले लोग अपेक्षाकृत जल्दी मधुमेह के शिकार होते हैं, क्यों कि ऐसे लोगों को नमकीन चीजें खाने के बाद मीठा खाने की प्रबल इच्छा होती है और सामान्यतः वे लोग जरुरत से ज्यादा मिठाई और मीठे पेय पदार्थ - पेप्सी, थम्स अप, कोकाकोला, स्प्राइट, माजा आदि का सेवन करते हैं.

सार-संक्षेप यह कि नमक या सोडियम हमारे शरीर के लिए जरुरी है, लेकिन इसका अत्यधिक सेवन सेहत के लिए बहुत हानिकारक है. अतः इसके सेवन में बुद्ध का मध्यम मार्ग अपनाना सबसे अच्छा माना गया है. हां, अंत में एक गौरतलब बात और. हर व्यक्ति को अपनी शारीरिक स्थिति एवं जरुरत के साथ-साथ मौसम को ध्यान में रख कर नमक का उपयोग करना चाहिए.   
(hellomilansinha@gmail.com)

                 
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# दैनिक भास्कर में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com