- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर... ....
सभी जानते और मानते हैं कि किसी भी देश का युवा उस देश के निर्माण और विकास में अहम रोल अदा करता है. हमारे देश को तो युवाओं का देश कहा जाता है, क्यों कि संसार के सबसे ज्यादा युवा हमारे देश में रहते हैं. कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी में पढ़नेवाले छात्र-छात्राओं के अलावे स्कूल के अनेक विद्यार्थियों को भी युवा की श्रेणी में रखा जा सकता है. ऐसे, सही अर्थों में उम्र ही युवा होने का एकमात्र मापदंड नहीं होता है. युवा कहलाने के लिए हर विद्यार्थी में कुछ सामान्य गुणों का होना भी जरुरी माना गया है. स्वामी विवेकानंद इसे इन शब्दों में परिभाषित करते हैं : युवा वह है जो अनीति से लड़ता है; जो दुर्गुणों से दूर रहता है; जो काल की चाल को बदल देता है; जिसमें जोश के साथ होश भी है; जिसमें राष्ट्र के लिए बलिदान की आस्था है; जो समस्याओं का समाधान निकालता है; जो प्रेरक इतिहास रचता है; जो बातों का बादशाह नहीं, बल्कि करके दिखता है. आगे वे यह भी बताते हैं कि यह संसार ही चरित्र-गठन हेतु एक विशाल नैतिक व्यायामशाला है, जिसमें हम सबको नियमित अभ्यास से इसे हासिल करना पड़ता है.
स्वामी जी के इन विचारों की कसौटी पर अगर हरेक विद्यार्थी अपने को कसे तो उन्हें अपने व्यक्तित्व में ऐसे कई गुणों का अभाव दिखेगा. इसमें अस्वाभाविक कुछ नहीं है. कोई भी विद्यार्थी जन्म से ही सभी अच्छे गुणों से युक्त नहीं होता. इसके लिए सतत प्रयासरत रहना आवश्यक माना गया है. उसी तरह कोई भी बच्चा अवगुणों के साथ जन्म नहीं लेता है. सारी बुरी आदत - झूठ बोलना, व्यसन करना अर्थात शराब, ड्रग्स, सिगरेट, गुटका, तम्बाकू आदि का सेवन करना, मारपीट, तोड़फोड़, लूटपाट, छेड़खानी आदि में शामिल रहना, बुजुर्गों का अनादर-अपमान करना या किसी गैर कानूनी कार्य में संलिप्त रहना, सब कुछ यहीं उनकी आदत में शुमार होता है. इसके लिए किसी दूसरे को दोष देना और आगे उन्हीं आदतों से ग्रसित रहना खुद को धोखा देना है. फिर भी ऐसा कहना ठीक नहीं होगा कि गलत आदतों से ग्रस्त कोई विद्यार्थी उससे बाहर नहीं आ सकता. हां, इसके लिए उन्हें ही ठोस निर्णय लेकर सही दिशा में बढ़ते रहना होगा. दूसरे लोग इस कार्य में बस उनकी कुछ सहायता कर सकते हैं, उनको अच्छा सीखने एवं करने के लिए मोटीवेट कर सकते हैं और जरुरत हो तो सिखा भी सकते हैं. इसी कारण अभिभावक, शिक्षक, अच्छे दोस्त और प्रकृति भी हर समय उनके साथ होते हैं. जॉन लुब्बोक तो कहते हैं, "पृथ्वी और आकाश, जंगल और मैदान, झीलें और नदियां, पहाड़ और समुद्र ये सभी उत्कृष्ट शिक्षक हैं और हममें से कुछ को इतना सिखाते हैं जितना हम किताबों से नहीं सीख सकते." कहने की दरकार नहीं कि देश-विदेश में अनेक विद्यार्थी हैं जिन्होंने गलत कार्य और मार्ग को एक झटके में छोड़ दिया और फिर सही मार्ग पर चलते हुए सच्चे युवा होने का धर्म बखूबी निभाया है.
सच तो यह है कि यह जिंदगी आपको रोज यह अवसर -छोटा या बड़ा, देती है जिससे आप तमाम परेशानी या समस्या के बावजूद सद्गुणों को समेटते चल सकते हैं. देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने एक भाषण में कहा है, "समस्याएं होती है. हर किसी के नसीब में मक्खन पर लकीर करने का सौभाग्य नहीं होता है. पत्थर पर लकीर करने की ताकत होनी चाहिए और अगर हम अपने आप को युवा कहते हैं तो उसकी पहली शर्त यह होती है कि वो मक्खन पर लकीर करने के रास्ते न ढूंढे, वो पत्थर पर लकीर करने की ताकत के लिए सोचे. अगर यही इरादे लेकर के हम चलते हैं तो हम अपनी तो जिन्दगी बनाते हैं, साथ ही कइयों की जिन्दगी में बदलाव लाने का कारण भी बनते हैं.
जाहिर है कि हर विद्यार्थी को जो खुद को युवा कहता और मानता है, उन्हें स्वामी जी और अन्य महान लोगों की महत्वपूर्ण बातों को एक स्थान पर मोटे अक्षरों में लिखकर रखना चाहिए. रोज एक बार उसे बढ़िया से पढ़ना और उस पर चिंतन करना चाहिए, जिससे कि उस पर दृढ़ता से अमल करना आसान हो जाए. जीवन के इस लम्बे और सबसे अहम दौर में विद्यार्थियों को यह भी सुनिश्चित करते रहने की जरुरत है कि वे शारीरिक और मानसिक रूप से बराबर स्वस्थ और सजग रहें. आलस्य एवं उदासी को पीछे छोड़ कर्मपथ पर आगे बढ़ते हुए जीवन के इन्द्रधनुषी रंगों का खुद तो आनंद लें ही, दूसरों को भी इसका भरपूर आनंद लेने दें. ऐसे भी फ्रांज काफ्का ने सही कहा है, "युवा खुश रहता है क्यों कि उसमें सौन्दर्य देखने की क्षमता होती है. जो व्यक्ति खूबसूरती को तलाश सकता है, वह कभी बूढ़ा नहीं होता." तो फिर हमेशा युवा बनें रहें.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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