-मिलन सिन्हा
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं ।
गतांक से आगे... पुरी के समुद्र में स्नान करनेवाले और तैरते–खेलते हर उम्र के लोग बड़ी संख्या में आपको मिल जायेंगे –पूरे उत्साह, उर्जा और उमंग से लबरेज. ऐसे कार्यकलाप में शामिल युवाओं का छोटा-बड़ा ग्रुप भी आपको यहां-वहां दिख जायेंगे. स्नानादि करते वक्त कोई दुर्घटना न हो जाए, इसके लिए इहतियाती इंतजाम के तहत समुद्र तट के पास ही विभिन्न स्थानों पर गोताखोर तथा सुरक्षाकर्मी मौजूद दिखे.
समुद्र किनारे बैठ कर सूर्योदय और सूर्यास्त का आनंद उठाना हर कोई चाहता है. प्रकृति का यह अप्रतिम सौन्दर्य आपको अंदर तक आनन्दित कर देता है, आपकी यादों में वर्षों तक रचा-बसा रहता है. ऐसे, सागर तट पर सैकड़ों लोग भी मिलेंगे जो घंटों रंग-बिरंगे छतरियों के नीचे कुर्सी या रेत पर बैठे चाय, कॉफ़ी, कोल्ड ड्रिंक, गन्ने का रस, डाब आदि का सेवन करते और समुद्र की लहरों का आनन्द लेते रहते हैं. शायद उनके यहां आने और आनंद के सागर में डुबकी लगाने के पीछे छुपी प्रेरणा या भावना को स्वर देने के लिए पास ही में एक झालमूढ़ी बेचने वाले के मोबाइल (एफएम ) पर यह गाना बज रहा था, 'दिल ढूंढ़ता है फिर वही फुर्सत के रात-दिन ....'
कहने की जरुरत नहीं कि सुबह और शाम के वक्त सागर तट पर भीड़ ज्यादा होती है और चहल-पहल भी. संध्या समय गर्मागर्म समोसे, आलू चाप, पकौड़ी आदि के साथ चाय-काफी का आनन्द उठाते पर्यटकों के झुण्ड छोटे-छोटे दुकानों के पास देखे जा सकते हैं. तट पर और उसके आसपास भी सफाई व्यवस्था को अच्छा बानाए रखने के लिए सफाई कर्मी तत्परता से लगे दिखाई पड़ते हैं.
सागर तट पर घूमने के क्रम में सौभाग्य से हमें दिखे रेत पर रेत से अपनी कला का प्रदर्शन करते कई आर्टिस्ट. ऐसे तो इस कला की बात चलते ही विश्व प्रसिद्ध कलाकार सुदर्शन पटनायक का नाम सबसे ऊपर आता है जिनकी बनाई कलाकृतियों को आप पुरी के समुद्र तट पर बहुधा देख सकते हैं. लेकिन उनके अलावे भी कई लोग हैं जो नियमित रूप से अपने इस कला कर्म में तन्मयता से लगे दिख जाते हैं. दिलचस्प बात यह कि ये कलाकार रेत अर्थात बालू पर कई घंटों के मेहनत से किसी कलाकृति का निर्माण करते हैं, जो महज कुछ घंटों तक ही प्रदर्शित हो पाता है. जानकर अच्छा लगा कि हर साल नवम्बर के शुरू में पुरी समुद्र तट महोत्सव (पुरी बीच फेस्टिवल) बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इसमें रेत कलाकार भी बढ़–चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. दरअसल इस फेस्टिवल में ओड़िशा की वास्तुकला, चित्रकला, व्यंजनकला आदि के साथ-साथ सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़े रंग-बिरंगे कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, जो स्थानीय लोगों के अलावे पर्यटकों को भी पसंद आते हैं. .... ....आगे जारी
(hellomilansinha@gmail.com) और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं ।
# साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' में प्रकाशित
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