Tuesday, February 28, 2017

यात्रा के रंग : अब पुरी में -3 (रेत कला और ...)

                                                                    -मिलन सिन्हा 
गतांक से आगे... पुरी के समुद्र में स्नान करनेवाले और तैरते–खेलते हर उम्र के लोग बड़ी संख्या में आपको मिल जायेंगे –पूरे उत्साह, उर्जा और उमंग से लबरेज. ऐसे कार्यकलाप में शामिल युवाओं का छोटा-बड़ा ग्रुप भी आपको यहां-वहां दिख जायेंगे. स्नानादि करते वक्त कोई दुर्घटना न हो जाए, इसके लिए इहतियाती  इंतजाम के तहत समुद्र तट के पास ही विभिन्न स्थानों पर गोताखोर तथा सुरक्षाकर्मी मौजूद दिखे.

समुद्र किनारे बैठ कर सूर्योदय और सूर्यास्त का आनंद उठाना हर कोई चाहता है. प्रकृति का यह अप्रतिम सौन्दर्य आपको अंदर तक आनन्दित कर देता है, आपकी यादों में वर्षों तक रचा-बसा रहता है. ऐसे, सागर तट पर सैकड़ों लोग भी मिलेंगे जो घंटों रंग-बिरंगे छतरियों के नीचे कुर्सी या रेत पर बैठे  चाय, कॉफ़ी, कोल्ड ड्रिंक, गन्ने का रस, डाब आदि का सेवन करते और समुद्र की लहरों का आनन्द लेते रहते हैं. शायद उनके यहां  आने और आनंद के सागर में डुबकी लगाने के पीछे छुपी प्रेरणा या भावना को स्वर देने के लिए  पास ही में एक  झालमूढ़ी बेचने वाले के मोबाइल (एफएम ) पर यह गाना बज रहा था,  'दिल ढूंढ़ता है फिर वही फुर्सत के रात-दिन ....' 

कहने की जरुरत नहीं कि सुबह और शाम के वक्त सागर तट पर भीड़ ज्यादा होती है और चहल-पहल  भी. संध्या समय गर्मागर्म समोसे, आलू चाप, पकौड़ी आदि के साथ चाय-काफी का आनन्द उठाते पर्यटकों के झुण्ड छोटे-छोटे दुकानों के पास देखे जा सकते हैं. तट पर और उसके आसपास भी सफाई व्यवस्था को अच्छा बानाए रखने के लिए सफाई कर्मी तत्परता से लगे दिखाई पड़ते हैं. 

सागर तट पर घूमने के क्रम में सौभाग्य से हमें दिखे रेत पर रेत से अपनी कला का प्रदर्शन करते कई आर्टिस्ट. ऐसे तो इस कला की बात चलते ही विश्व प्रसिद्ध कलाकार सुदर्शन पटनायक का नाम सबसे ऊपर आता है जिनकी बनाई कलाकृतियों को आप पुरी के समुद्र तट पर बहुधा देख सकते हैं. लेकिन उनके अलावे भी कई लोग हैं जो नियमित रूप से अपने इस कला कर्म में तन्मयता से लगे दिख जाते हैं. दिलचस्प बात यह कि ये कलाकार रेत अर्थात बालू  पर कई घंटों के मेहनत से किसी कलाकृति का निर्माण करते हैं, जो महज कुछ घंटों तक ही प्रदर्शित हो पाता है. जानकर अच्छा लगा कि  हर साल नवम्बर के शुरू में पुरी समुद्र तट महोत्सव (पुरी बीच फेस्टिवल) बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इसमें रेत कलाकार भी बढ़–चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. दरअसल इस फेस्टिवल में ओड़िशा की वास्तुकला, चित्रकला, व्यंजनकला आदि के साथ-साथ सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़े रंग-बिरंगे कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, जो स्थानीय लोगों के अलावे पर्यटकों को भी पसंद आते हैं.  .... ....आगे जारी 
                                        (hellomilansinha@gmail.com) 
                           और भी बातें करेंगे, चलते-चलतेअसीम शुभकामनाएं
# साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' में प्रकाशित 

#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com

Tuesday, February 14, 2017

यात्रा के रंग : अब पुरी में -2 (खूबसूरत समुद्र तट)

                                                                                                      -मिलन सिन्हा 
गतांक से आगे... थोड़ा फ्रेश होकर हम सागर तट के पास स्थित अपने होटल से निकल पड़े. दो-तीन मिनट में हम समुद्र तट पर थे. पुरी के समुद्र की बात ही कुछ अलग है. साफ़ पानी, दूर तक फैला समुद्र, उसके साफ़ –सुथरे तट और उसके सामान्तर चलते मुख्य सड़क से सटे कतार में एक के बाद दूसरे होटल की लम्बी कड़ी. उत्तर भारत में जब अक्टूबर से फरवरी तक ठंढ से लोग ठिठुरते रहते हैं, तब पुरी में पर्यटकों की बहुत भीड़ होती है. कारण यहाँ मौसम बहुत सुहाना होता है – न ज्यादा गर्मी और न ज्यादा ठण्ड. सागर तट पर तो मेले जैसा माहौल रहता है. आज भी वहां वही हाल था. कुछ बच्चे और युवा तटीय रेत पर कुछ-कुछ खेल रहे थे तो कुछ घोड़े और ऊंट की सवारी का मजा ले रहे थे. तट पर हर तरह की खाने-पीने की चीज बिक रही थी - गोलगप्पे, चाट, भुट्टे, आलू चिप्स, हर तरह के मौसमी फल और तरह-तरह की मिठाइयाँ. मदन मोहन नाम से एक मिठाई भी थी. सुनकर चौंका. हिन्दी सिनेमा के प्रख्यात संगीतकार मदन मोहन के सुरीले संगीत से सजे गाने याद आ गए. मिठाईवाला आवाज लगाते आगे बढ़ गया था. झटक के उसके पास गया और छेने की रसदार मिठाई मदन मोहन का आनन्द उठाया. वाकई नाम के अनुरूप स्वादिष्ट.


तट पर घूमते हुए हमने देखा कि कहीं  मोतियों के हार बिक रहे थे तो कहीं भगवान जगन्नाथ, बलराम एवं देवी सुभद्रा के तरह-तरह के आकर्षक फोटो, छोटे-बड़े शंख, सीप से बनी चीजें आदि. रोचक बात है कि सागर तट के आसपास घूम-घूमकर मोती और मोती के हार आदि बेचनेवाले ज्यादातर लोग ओड़िशा के सीमा से लगे आंध्र प्रदेश के रहनेवाले हैं. उनसे बात करने पर पता चला कि समुद्र में पाए जाने वाले सीप से निकाले गये प्राकृतिक मोती के अलावे कृत्रिम मोती के व्यवसाय में ये लोग सालों से लगे हुए हैं. सागर तट पर टहलते-घूमते लोगों में बीच-बीच में यहां-वहां हलचल होते रहते हैं और आप लोगों को छोटे-छोटे झुण्ड में देख सकते हैं. दरअसल, जब भी कोई नाव समुद्र से तट पर आता है, तो साथ में जाल में फंसी मछली आदि के अलावे छोटे-बड़े सीप भी होते हैं, जिनमें प्राकृतिक मोती होने की बात नाविक-मछुआरे करते रहते हैं. ऐसे मोती को देखने और खरीदने की चाह में हलचल होती है, पर्यटकों की भीड़ लगती है. जानकार कहते हैं कि बिना जांचे-परखे सिर्फ जल्दबाजी में ऐसी खरीदारी घाटे का सौदा भी साबित हो सकता है. 


पुरी के समुद्र तट के सामान्तर मुख्य सड़क के फुटपाथ पर सुबह-शाम अनेक लोगों को टहलते-दौड़ते देखना अच्छा लगता है. यह सड़क आगे करीब तीन किलोमीटर तक वैसी ही खूबसूरत है. आगे एक लाइट हाउस भी है. आसपास की गलियों  में पर्यटकों को सहज आकर्षित करने वाली चीजों की स्थायी दुकानें भी हैं.
                                        (hellomilansinha@gmail.com) 
                           और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं ।
# साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' में प्रकाशित 

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Saturday, February 4, 2017

लघु कथा : वास्तविकता

                                                                  - मिलन सिन्हा 
clipकुमार साहब एक नामी  वकील थे. जब वे अदालत में जाते तो अपनी दलीलों से सबको निरुत्तर कर देते.

आज वकील साहब ने दहेज़ के खिलाफ  जोरदार दलीलें प्रस्तुत की . जज साहब सहित न्यायालय में उपस्थित सारे लोग वकील साहब के तर्कों से अभिभूत थे. 

बाहर निकलते ही उनके मुवक्किल प्रसाद जी ने उन्हें ख़ुशी –ख़ुशी एक हजार रूपये दिए. वकील साहब ने पैसे रख लिए और फिर प्रसाद जी  को अलग ले जाते हुए कहा, ‘भैया, आप मुझे परसों तक पचास हजार रूपये उधार दे सकते हो ? बड़ा  जरुरी काम है .

‘हाँ, हाँ , वकील साहब. पचास हजार क्यों, और भी रुपये की जरुरत हो तो ले लीजिये......’ प्रसाद जी ने निःसंकोच जवाब दिया .

पूरी रकम के साथ प्रसाद जी दूसरे ही दिन शाम को वकील साहब के घर पहुंच गए . कुमार साहब बाहर बरामदे में चिंतामग्न बैठे थे. प्रसाद जी को देख कर उन्होंने दूसरी कुर्सी मंगवाई. चाय के लिए भी कहा. प्रसाद जी ने रूपये वकील साहब को दे दिए. फिर कुछ सहमते हुए पूछ ही लिया, ‘जनाब, आपको पहले कभी इतना चिंताग्रस्त नहीं देखा है. सब खैरियत तो है ?

वकील साहब के चेहरे पर एक अजीब- सा भाव साफ़ उभर आया. धीरे से कहा उन्होंने, ‘प्रसाद जी, जानते हैं, ये रूपये मैं आपसे क्यों उधार  ले रहा हूँ ? नहीं  न ! दहेज़ के लिए ! कल देना है मुझे दहेज़ की पूरी रकम, तब जाकर कहीं मेरी बेटी की शादी की तिथि तय हो पायेगी.’

चाय आ चुकी थी, पर प्रसाद जी सुन्न बैठे रहे कुछ देर. फिर चुपचाप उठकर चले गए .
  
               और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय अखबार 'प्रभात खबर - "सुरभि " में  22 जनवरी , 2017 को प्रकाशित