-मिलन सिन्हा
गतांक से आगे... थोड़ा फ्रेश होकर हम सागर तट के पास स्थित अपने होटल से निकल पड़े. दो-तीन मिनट में हम समुद्र तट पर थे. पुरी के समुद्र की बात ही कुछ अलग है. साफ़ पानी, दूर तक फैला समुद्र, उसके साफ़ –सुथरे तट और उसके सामान्तर चलते मुख्य सड़क से सटे कतार में एक के बाद दूसरे होटल की लम्बी कड़ी. उत्तर भारत में जब अक्टूबर से फरवरी तक ठंढ से लोग ठिठुरते रहते हैं, तब पुरी में पर्यटकों की बहुत भीड़ होती है. कारण यहाँ मौसम बहुत सुहाना होता है – न ज्यादा गर्मी और न ज्यादा ठण्ड. सागर तट पर तो मेले जैसा माहौल रहता है. आज भी वहां वही हाल था. कुछ बच्चे और युवा तटीय रेत पर कुछ-कुछ खेल रहे थे तो कुछ घोड़े और ऊंट की सवारी का मजा ले रहे थे. तट पर हर तरह की खाने-पीने की चीज बिक रही थी - गोलगप्पे, चाट, भुट्टे, आलू चिप्स, हर तरह के मौसमी फल और तरह-तरह की मिठाइयाँ. मदन मोहन नाम से एक मिठाई भी थी. सुनकर चौंका. हिन्दी सिनेमा के प्रख्यात संगीतकार मदन मोहन के सुरीले संगीत से सजे गाने याद आ गए. मिठाईवाला आवाज लगाते आगे बढ़ गया था. झटक के उसके पास गया और छेने की रसदार मिठाई मदन मोहन का आनन्द उठाया. वाकई नाम के अनुरूप स्वादिष्ट.
तट पर घूमते हुए हमने देखा कि कहीं मोतियों के हार बिक रहे थे तो कहीं भगवान जगन्नाथ, बलराम एवं देवी सुभद्रा के तरह-तरह के आकर्षक फोटो, छोटे-बड़े शंख, सीप से बनी चीजें आदि. रोचक बात है कि सागर तट के आसपास घूम-घूमकर मोती और मोती के हार आदि बेचनेवाले ज्यादातर लोग ओड़िशा के सीमा से लगे आंध्र प्रदेश के रहनेवाले हैं. उनसे बात करने पर पता चला कि समुद्र में पाए जाने वाले सीप से निकाले गये प्राकृतिक मोती के अलावे कृत्रिम मोती के व्यवसाय में ये लोग सालों से लगे हुए हैं. सागर तट पर टहलते-घूमते लोगों में बीच-बीच में यहां-वहां हलचल होते रहते हैं और आप लोगों को छोटे-छोटे झुण्ड में देख सकते हैं. दरअसल, जब भी कोई नाव समुद्र से तट पर आता है, तो साथ में जाल में फंसी मछली आदि के अलावे छोटे-बड़े सीप भी होते हैं, जिनमें प्राकृतिक मोती होने की बात नाविक-मछुआरे करते रहते हैं. ऐसे मोती को देखने और खरीदने की चाह में हलचल होती है, पर्यटकों की भीड़ लगती है. जानकार कहते हैं कि बिना जांचे-परखे सिर्फ जल्दबाजी में ऐसी खरीदारी घाटे का सौदा भी साबित हो सकता है.
पुरी के समुद्र तट के सामान्तर मुख्य सड़क के फुटपाथ पर सुबह-शाम अनेक लोगों को टहलते-दौड़ते देखना अच्छा लगता है. यह सड़क आगे करीब तीन किलोमीटर तक वैसी ही खूबसूरत है. आगे एक लाइट हाउस भी है. आसपास की गलियों में पर्यटकों को सहज आकर्षित करने वाली चीजों की स्थायी दुकानें भी हैं.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं ।
# साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com
No comments:
Post a Comment