Wednesday, October 12, 2016

प्रेरक प्रसंग : रुपयों का दान...

                                                                               - मिलन सिन्हा 

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सन 1933 में जर्मनी से लौटने के बाद डा. राममनोहर लोहिया अपने पुराने कर्म-स्थल कलकत्ता में कठिन संघर्ष का जीवन बिता रहे थे. ऐसे समय एक धनी मित्र से मिलने गए. इधर उस मित्र के लोहिया के पास कई पत्र आ चुके थे. धनी मित्र लोहिया जी की तत्कालीन आर्थिक स्थिति से वाकिफ थे. कुशल-क्षेम पूछने के बाद संपन्न मित्र ने लोहिया जी को नौकरी-धंधा करने की सलाह दी, पर उन्होंने इस पर अपनी असहमति प्रकट की. मित्र को निराशा हुई, फिर भी, लौटते वक्त लोहिया जी की जेब में उसने जबरदस्ती दो सौ रूपये ठूंस दिये. अब लोहिया जी के लिए इतने पैसे खर्च करना समस्या बन गयी. साथ गए एक अन्य मित्र के साथ मिलकर रूपये खर्च करने की योजना बनायी गयी. कपड़े एवं किताब सहित कुछ आवश्यक सामग्री खरीदने और भरपेट भोजन करने के पश्चात् भी पर्याप्त पैसे बच गये, तब दोनों मित्र घूमते- घूमते खिदिरपुर तक आये. रात काफी हो चुकी थी. योजना थी कि बंदरगाह के मजदूरों की बस्ती देखी जाए एवं जो जगा हुआ मिले उसे कुछ आर्थिक सहायता दी जाए. सुबह चार बजे तक दोनों वहां घूमते रहे, लोगों का हाल पूछते रहे और पैसे बांटते रहे. घर लौटने पर देखा कि अभी भी जेब में तीस रूपये बाकी हैं. उस समय दोनों मित्र सो गये. 

दिन में करीब दस बजे लोहिया जी की नींद एक स्त्री की आवाज सुनकर खुली. वह स्त्री उनके मित्र से कुछ आर्थिक सहायता मांग रही थी. लोहिया जी के बाहर आने से पूर्व ही मित्र ने पांच रूपये दे दिये थे. लोहिया जी के पूछने पर उस स्त्री ने बताया कि उसका पति राजनीतिक बंदी है एवं अलीपुर जेल में अन्य छः हजार स्त्री –पुरुषों के साथ राजनीतिक आरोपों के कारण यातनाएं भोग रहा है. परिवार की दयनीय स्थिति का भी उसने वर्णन किया. लोहिया जी के पूछने पर मित्र ने उक्त स्त्री को पांच रूपये देने की बात कही. सुनकर लोहिया जी की आंखें लाल हो गयीं. आक्रोश से चेहरा तमतमा गया. एक राजनीतिक बंदी की विवश बीवी को मात्र पांच रूपये सहायतार्थ देने की बात उनके लिए लज्जाजनक एवं असहनीय थी. उन्होंने मित्र को खूब खरी-खोटी सुनायी और रात के बचे हुए सारे रूपये उस असहाय स्त्री को दे दिये.

                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
    
# लोकप्रिय मासिक पत्रिका “कादम्बिनी” के जुलाई,1978 अंक में प्रकाशित 

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