- मिलन सिन्हा
आज हम सब फिर हर्ष व उत्साह से गणतंत्र दिवस मना
रहे हैं. लेकिन इसमें बापू का वह ‘गण’ कहाँ है, कैसा है, इनका सटीक जवाब 66 साल के
इस विशाल गणतंत्र में किसके पास है ?
कटु सत्य है कि करोड़ों देशवासी अब भी रोटी, कपड़ा, मकान के साथ -साथ स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की समस्या से बेजार -बेहाल है .
इस बीच कई मायनों में हमारा गणतंत्र,
‘गन’तंत्र बनता दिख रहा है. एक ओर गन (बंदूक) से लैस असामाजिक व उग्रवादी-आतंकी
तत्व, तो दूसरी ओर गन (बंदूक) से लैस सरकारी वर्दीधारी. तंत्र तो तब भी मजबूत व
महफूज था और अब भी है – कमोवेश.
मैं भी कहता हूँ, निराश होने की कोई जरुरत
नहीं, क्यों कि देश ने इस लम्बी अवधि में हर क्षेत्र में कुछ-न-कुछ प्रगति तो की
है. तथापि सत्ता प्रतिष्ठान से सम्बद्ध
लोग भी क्या इस तथ्य को नकार पाएंगे कि जितने चुनावी एवं सरकारी वायदे इन नेताओं ने जनता से इन वर्षों में किया, उसका दस प्रतिशत भी वे पूरा करने में नाकाम रहे, कारण जो भी रहे हों.
दिलचस्प तथ्य यह भी है कि संवैधानिक व्यवस्था के तहत प्रदेशों में अलग-अलग दलों की चुनी हुई सरकारें शासन चलाती रहीं और यह दावा भी करती रही कि उनकी सरकार ने लोगों की भलाई के लिए सर्वोत्तम कार्य किया. विकास कार्यों को त्वरित गति से समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाने में राज्य सरकारों की महती भूमिका से तो हम सभी भली-भांति परिचित हैं ही.
तब फिर यह हालत क्यों ?
देखिये, दुष्यंत कुमार क्या कहते हैं :
यहाँ तक आते आते सूख जाती है कई नदियां
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा.
सभी
यह मानेंगे कि किसी भी पैमाने से आजादी के ये 68 साल किसी भी देश को अपनी जनता
को बुनियादी जरूरतों से चिंतामुक्त करके देश को सम्पन्न और शक्तिशाली बनाने के
लिए बहुत लम्बा अरसा होता है. और वह भी तब,
जब कि इस देश में न तो
प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी रही है और न तो मानव संसाधन की.
तो फिर यह तो साफ़ है कि साल-दर-साल गलती-पर-गलती होती रही - नीति, योजना,कार्यवाही और
सबसे ऊपर नीयत के मामले में.
चुनांचे, हम सभी को अब देश/ प्रदेश की
सरकारों से पूरी गंभीरता से कुछ बुनियादी
सवाल पूछने पड़ेंगे और उनका जवाब भी माँगना पड़ेगा, बेशक संविधान के दायरे में रहते
हुए. और फिर मिल कर बनानी पड़ेगी एक समावेशी कार्य योजना जिसे समयबद्ध तरीके से आम जनता की
भलाई के लिए लागू किया जा
सकें, तभी गणतंत्र की सार्थकता हम साबित कर पायेंगे.
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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