Sunday, June 28, 2015

मोटिवेशन : विज्ञापन और हमारा खान-पान

                                                   - मिलन सिन्हा 
clipमानव शरीर रूपी इस अदभुत मशीन के बारे में जितना जानें, कहें और लिखें, कम ही होगा. बचपन से बुढ़ापे तक अनवरत धड़कने वाला जहाँ हमारा यह दिल है, वहीं अकल्पनीय सोच, खोज व अनुसंधान-आविष्कार का जनक हमारा मस्तिष्क. सोचने से करने तक के सफ़र में निरंतरता को साधे रखने का इस मशीन का कोई जोड़ नहीं है . लेकिन क्या यह सब बस यूँ ही होता रहता है या इस शरीर को चलाए रखने के लिए आहार रूपी संसाधन की भी रोजाना जरुरत होती है ?  सही है, लेकिन जैसे मिलावट वाले तेल से गाड़ी की सेहत खराब हो जाती है, वैसे ही अशुद्ध व मिलावटी खान–पान से हमारा शरीर कमजोर, अस्वस्थ और अंततः बीमार हो जाता है. दिलचस्प बात है कि ज्यों ही हम अपने खान–पान की चर्चा करते हैं , त्यों ही हम एक विराट बाजार पर प्रकारांतर से अपनी बढ़ती निर्भरता की बात स्वीकारते हैं, जहाँ आजकल लाखों नहीं बल्कि करोड़ों ऐसे खाद्द्य एवं पेय पदार्थ – ब्रांडेड-अनब्रांडेड, प्रोसेस्ड-सेमी प्रोसेस्ड, पैक्ड–अन पैक्ड, नेचुरल–आर्टिफीसियल, न जाने क्या-क्या और क्यों उपलब्ध है. और हम लोग खरीद कर जाने-अनजाने कितना और कैसे उनका सेवन भी कर रहे हैं. दिनभर के 1440 मिनट में जैसे 2 मिनट का हिस्सा है, शायद वैसे ही ‘टू मिनट मैगी’ प्रकरण का हमारे अनियंत्रित और  विज्ञापन पोषित एक बहुत बड़े मार्केट में है, जहाँ फ़ूड सेफ्टी रेगुलेशन के दायरे में  बाजार में बिकने वाली चीजों को जांचने-परखने का कोई प्रचलन कम-से-कम जमीन पर तो दिखाई नहीं पड़ता है . फिर जब देश के करोड़ों नादान तथा अपेक्षाकृत कम जागरूक लोग खाद्द्य व पेय सामाग्रियों के विज्ञापन में नामचीन व लोकप्रिय हस्तियों को इन पदार्थों का बढ़–चढ़ कर प्रचार करते हुए देखते हैं, तो वे भी इनके उपयोग के लिए प्रेरित हो जाते हैं. इस क्रम में  न केवल आम लोगों की जेब ढीली होती है, अपितु उनकी सेहत भी खराब होती है. लिहाजा यह आवश्यक हो गया है कि विज्ञापनों में चीजों की गुणवत्ता से जुड़े दावों की पूरी जांच-पड़ताल की जाए एवं तथ्यों को सार्वजनिक किया जाय. साथ ही, आम लोगों को इस  संबंध में सतत जागरूक होते तथा करते रहने की नितांत आवश्यकता है, जिससे वे एक जागरूक व जानकार उपभोक्ता के तौर पर चीजों का उपयोग कर सकें.

                    और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

Saturday, June 13, 2015

मोटिवेशन : मौसम के साथ एडजस्टमेंट

                                                                                     - मिलन सिन्हा 

clipदेशभर में अप्रत्याशित गर्मी पड़ रही है, मानसून की पहली फुहार का इन्तजार लम्बा हो रहा है और ऊपर से मौसम वैज्ञानिकों ने इस बार सामान्य से कम वर्षा का अनुमान भी व्यक्त किया है. गर्मी से सब बेहाल हैं, विशेष कर बच्चे, बूढ़े और ऐसे करोड़ों देशवासी जो रोटी, कपड़ा, मकान जैसे बुनियादी आवश्यकताओं से आज भी जूझ रहे हैं. देश की राजधानी दिल्ली सहित देश भर में पानी की घोर किल्लत है. आम लोगों को पीने का पानी भी बमुश्किल मिल पा रहा है. गाँवों में तो फिर भी कुछ पेड़-पौधे बचे हैं जिनके छाँव में लोग सकून के कुछ पल गुजार सकते हैं, लेकिन हमारे अधिकांश महानगरों, नगरों एवं कस्बों में बढ़ती जनसंख्या  तथा निरंतर कटते–उजड़ते पेड़ों-बागों के बीच ईंट-कंक्रीट-सीमेंट  के जंगल जिस बेतरतीब ढंग से फैलते गए हैं और जहां दो पहिया–चार पहिया वाहनों द्वारा उत्सर्जित गैस आदि के कारण प्रदूषण व तापमान में इजाफा हो रहा है, वहां इस मौसम में बाहर जाकर काम करना सेहत के लिए मुश्किलें पैदा करने वाला साबित हो रहा है. अनेक लोग तो लू, डिहाइड्रेशन आदि से मर भी रहे हैं. बहरहाल, मौसम के बदलते मिजाज को अपने अनुकूल बनाना नामुमकिन नहीं तो बेहद मुश्किल जरुर है और यह एक दीर्घकालिक पर्यावरण संरक्षण अभियान के बिना  संभव भी नहीं  हो सकता है. ऐसी परिस्थिति में मौसम के अनुकूल अपने रहन-सहन, आहार और पहनावे के साथ –साथ घर-ऑफिस के परिवेश को एडजस्ट करना बुद्धिमानी होगी . मसलन, गर्मी के इस मौसम में प्राकृतिक तौर पर उपलब्ध या तैयार तरल पदार्थ का अधिक सेवन करना चाहिए. नारियल पानी, बेल का शर्बत, सत्तू का घोल आदि पीना लाभदायक साबित होगा. घर से निकलने से पहले जरुर कुछ खा-पी लें और साथ में पानी का बोतल रख लें . पहनावे में  काले व गाढ़े रंग के बजाय सफ़ेद या बिलकुल हलके रंग के थोड़े ढीले सूती कपड़े पहनना मुनासिब होगा. संभव हो तो सुबह –शाम स्नान करें.  घर-ऑफिस के दरवाजों एवं खिड़कियों में खसखस की चटाई या मोटे सूती कपड़े के परदे लगाने चाहिए. कहने की जरुरत नहीं कि भीषण गर्मी के ऐसे मौसम में स्टाइलिश दिखने से ज्यादा आवश्यक है  सेहतमंद रहना एवं दिखना . 
                     
                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

Sunday, June 7, 2015

मोटिवेशन : सोच-समझ कर लें एडमिशन

                                                     - मिलन सिन्हा 
clipहाल ही में देश भर में दसवीं एवं बारहवीं कक्षाओं के रिजल्ट आये हैं. अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होनेवाले विद्यार्थियों की संख्या अच्छी-खासी है. स्वभावतः ऐसे घरों में ख़ुशी का माहौल है. बच्चों के साथ घर-परिवार के लोग आगे की पढ़ाई की योजना में लगे हैं. छात्र-छात्राओं सहित अभिभावकों को एडमिशन के लिए विभिन्न शिक्षण संस्थानों का चक्कर लगाते एवं फॉर्म आदि के लिए लम्बी कतारों में खड़े अपनी बारी का इन्तजार करते देखा जा रहा है. ऐसे समय निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा ऐसे विद्यार्थियों को अपने यहां नामांकन-पंजीकरण के उद्देश्य से बड़े-बड़े विज्ञापन दिए जाते हैं, अनेक सच्चे-झूठे वादे किये जाते हैं, कैरियर व रोजगार से जुड़े अनेकानेक सुनहरे सपने दिखाए जाते हैं. बाजारवाद के इस आर्थिक दौर में यह सब सामान्य हो चला है. बिहार, झाड़खंड जैसे प्रदेशों जहाँ उत्कृष्ट शिक्षण संस्थानों की आज भी बेहद कमी बनी हुई है और जहाँ से बड़ी संख्या में छात्र दिल्ली सहित अन्य बड़े स्थानों में मौजूद कॉलेजों में एडमिशन के लिए जाते रहे हैं, वहां इस बार भी दाखिला पाने की पुरजोर कोशिश हो रही है. 

शिक्षा खासकर उच्च शिक्षा के निरंतर मंहगे होते जाने के इस दौर में किसी भी सीमित आय वाले मध्यम व निम्न वर्गीय परिवारों के लिए अपने बच्चों को योग्य होते हुए भी नामचीन संस्थानों में मनचाहे कोर्स में एडमिशन दिलवाना और फिर दो-तीन-चार वर्षों तक पढ़ाई जारी रखवाना अत्यन्त मुश्किल काम होता है. लिहाजा बिना छात्रवृति और बैंक लोन के अनेक बच्चों के लिए आगे की शिक्षा एक सपना बनकर रह जाती है. ऐसी परिस्थिति में विज्ञापनों के मायाजाल में उलझे बगैर हर विद्यार्थी व उनके परिवारजनों को सारी संभावनाओं व उसके व्यवहारिक पक्षों-परिणामों पर गहन विचार-विमर्श करके किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए. ऐसे नाजुक मौकों पर भावना में बहकर या किसी दोस्त की देखा-देखी या किसी के सलाह को बिना जांचे-परखे किसी  भी कोर्स या संस्थान में एडमिशन  लेना मुनासिब नहीं होगा. कहने का अभिप्राय यह कि अपनी रूचि के अनुरूप और “भीड़ के साथ चलने की मानसिकता” से प्रेरित हुए बिना  हरेक विद्यार्थी को खूब सोच-समझ कर फैसला करने की आवश्यकता है जिससे कि उनका व उनके परिवार का भविष्य हर मायने में आज से बेहतर बन सके.

                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं