- मिलन सिन्हा
अमूमन 12वीं यानी प्लस-टू की परीक्षा के बाद छात्र-छात्राओं के लिए अपने कैरियर को ध्यान में रख कर उपयुक्त कोर्स चुनने का मुश्किल वक्त होता है. अच्छे अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी इंजीनियरिंग या मेडिकल की तैयारी के लिए आंतरिक एवं बाहरी दवाब महसूस करते हैं और चाहे–अनचाहे इन्हीं दोनों कोर्सेज में से किसी एक में दाखिला लेने की पुरजोर चेष्टा करते हैं. कॉमर्स और आर्ट्स के अधिकांश विद्यार्थी भी पारम्परिक कोर्सों में ही एडमिशन के लिए प्रयास करते देखे गए हैं. देश में कोचिंग के बाजार के निरंतर फैलने का यह भी एक बड़ा कारण है. कहना न होगा, निम्न एवं मध्यम आय वर्ग के परिवारों के लड़के- लड़कियां औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद एक अच्छी नौकरी की चाहत रखते हैं. लेकिन क्या नौकरी के आज के बाजार में सिर्फ परंपरागत स्नातक या स्नातकोत्तर डिग्री के बूते मनचाही नौकरी पाना आसान है?
देश में शिक्षित बेरोजगारों से संबंधित आंकड़े बताते हैं कि परंपरागत कोर्सों में अच्छे अंक या ग्रेड के साथ उत्तीर्ण होने के बावजूद ऐसे छात्र-छात्राओं में से अनेक या तो बेरोजगार हैं या कोई ऐसी-वैसी नौकरी कर रहे हैं जिनका उनकी डिग्री से कोई प्रत्यक्ष वास्ता नहीं होता है, जब कि ऐसी डिग्रियां अर्जित करने में काफी वक्त व मोटी रकम खरचने पड़ते हैं. यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि व्यापार एवं उद्योग की बदलती जरूरतों के लिहाज से ऐसे कई कोर्स विभिन्न शिक्षण संस्थानों तथा स्किल डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट में अब उपलब्ध हैं जिन्हें नौकरी के बाजार में अपेक्षाकृत ज्यादा अहमियत दी जा रही है. देखा जा रहा है कि नियोक्ता के तौर पर आजकल निजी क्षेत्र की कम्पनियां आम तौर पर ऐसे उम्मीदवार को तरजीह देते हैं जिनका एकेडमिक बैकग्राउंड तो ठीक-ठाक हो, साथ ही जो नयी चीजें सीखने तथा चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए तत्पर रहे. कारण, ऐसे नए कर्मियों को तीन से छह माह की अवधि का उपयुक्त ऑन-द-जॉब ट्रेनिंग देकर दक्ष बनाना आसान होता है. अतः यह आवश्यक है कि विद्यार्थी अभी से अपने एकेडमिक कोर्स के चयन के साथ-साथ अपने जॉब/बिज़नेस कैरियर की प्लानिंग को भी यथोचित महत्व दें.
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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