- मिलन सिन्हा
अपने रोजमर्रा की जिंदगी में हम घर-बाहर हर जगह लोगों को बात-बेबात गुस्सा करते देखते हैं, गुस्से में अपशब्द कहते, वस्तुओं को तोड़ते-फोड़ते, खुद अपना भी माथा ठोकते हुए देखते हैं. गुस्से में बेकाबू लोगों के तो कहने ही क्या? हम खुद भी गुस्से में यह सब करते हैं, बेशक कम या ज्यादा, बराबर या कभी-कभी. देखा गया है कि गुस्से की हालत में ‘हम किसी से कम नहीं’ वाली मानसिकता हमारे सिर चढ़ कर बोलने लगती है. मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि उस वक्त हमारा मानसिक संतुलन ठीक नहीं रह पाता है, फलतः चीखने-चिल्लाने के साथ हम अतार्किक एवं हिंसक भी हो जाते हैं. बहरहाल, हमने शायद ही कोई व्यक्ति देखा हो, जिसे गुस्सा आता ही न हो. आम हो या खास, हर मनुष्य को गुस्सा आता है और गुस्सा आना कोई अवगुण नहीं, अनहोनी भी नहीं. पर सवाल तो उठता है कि गुस्सा आता क्यों है और जब चाहे-अनचाहे आ ही जाता है तो फिर गुस्से को काबू में कैसे रखा जाए जिससे कोई बड़ी दुर्घटना न हो जाय?
कहते हैं कि गुस्सा स्वभावतः अन्याय, अत्याचार, शोषण, असफलता, अतृप्त इच्छा, अक्षमता आदि से जुड़ा वह सामान्य भाव है जो मानव ही नहीं जीव मात्र में उत्पन्न होता है और अधिकांश मामले में किसी न किसी रूप में प्रकट होता है. क्रोध आने पर उसे कैसे नियंत्रित किया जाय, इसके लिए कुछ जाने-पहचाने सिद्धांत व नुस्खें हैं जिसका लाभ प्रयोग की दृढ़ता पर निर्भर करता है. मसलन, गुस्से की स्थिति में उस स्थान विशेष से हट जायें, कहीं बैठ जायें और आँख बंद कर दीर्घ श्वास लें व छोड़ें, एक से दस तक गिनती करें, कुछ समय के लिए शांत रहने की कोशिश करें, किसी अच्छे मित्र से बात करें आदि. तमाम शोध तथा सर्वेक्षण बताते हैं कि इन छोटे प्रयासों से गुस्से को नियंत्रित करना एवं इसके एकाधिक दुष्प्रभावों से बचना संभव हो जाता है. ऐसे, योग में कई आसन-प्राणायाम बताये गए हैं जिनके नियमित अभ्यास से गुस्से को काबू में रखना और उस विशिष्ट उर्जा को अपने व समाज के फायदे के लिए काम में लाना सहज हो जाता है.
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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