- मिलन सिन्हा
आमतौर पर देखा गया है कि
अधिकांश लोग दिन-रात पैसे कमाने और जोड़ने में अपना ज्यादा ध्यान लगाये रहते हैं. इस काम को अंजाम
देने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते, कई बार तो गलत-सही का ख्याल भी नहीं रहता. बेशक, पैसा जीवन में अहम रोल अदा करता है, लेकिन सिर्फ पैसे
के पीछे भागने वाले लोग जीवन की अन्य मौलिक आवश्यकताओं को भूल जाने की गंभीर गलती
करते हैं जिसका मलाल उन्हें बाद में वर्षों तक सालता रहता है. इनमें संबंधों के मायनों
को न समझना और उसे अपेक्षित महत्व न देना शामिल है ,जब कि हम अच्छी तरह जानते हैं कि सम्बन्ध बनाना और निभाना सुख और समृधि दोनों
के लिए अनिवार्य है. एक अरसे से ‘रिलेशनशिप बियॉन्ड बैंकिंग’, ‘रिलेशनशिप देट
काउंट्स’, ‘ओनली रिलेशनशिप मैटर्स’ सरीखे कॉरपोरेट विज्ञापन
हमारा ध्यान आकर्षित करते रहे हैं, जो रिश्तों की महत्ता को बखूबी रेखांकित करते हैं. विचारणीय प्रश्न है
कि पैसे तो जैसे-तैसे भी बनाए जा सकते हैं, लेकिन अच्छे रिश्ते ऐसे–वैसे या जैसे-तैसे नहीं बनाये जा
सकते. इसके लिए सतत
ईमानदारी तथा आपसी समझ-बूझ अनिवार्य है. सभी जानते हैं कि संबंधों में आई खटास को मिठास में
बदलना कितना मुश्किल होता है.
सच कहें तो जन्म से ही हमारे
संबंधों का दायरा बढ़ना शुरू हो जाता है. आगे यह सिलसिला घर-परिवार से निकल कर बन्धु-बान्धव, पड़ोसी-सहकर्मी आदि से लेकर देश-दुनिया तक फैलने की
संभावनाओं से भरा होता है. यही कारण है कि सभी प्रबंधन संस्थाओं में रिलेशनशिप
बिल्डिंग/पब्लिक रिलेशन यानी रिश्ते निर्माण/जन-संपर्क को
पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है. नेतृत्व क्षमता के समुचित विकास में इसका अतिशय महत्व
होता है. तभी तो तमाम ज्ञान, कौशल आदि गुणों से
लैस होने के बावजूद रिश्ते बनाने व निभाने में कम निपुण व्यक्ति को किसी भी टीम
में कैप्टन की जिम्मेदारी नहीं दी जाती है.
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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