- मिलन सिन्हा
किताबें हमारे जीवन में अहम रोल निभाती रही हैं. दुनिया से हमारा परिचय करवाते रहने का यह एक सशक्त जरिया है. गीता, कुरान, बाइबिल जैसे ग्रंथों की बात न भी करें, तब भी ऐसी बहुत से किताबें हैं जो अनेक महान व्यक्तियों के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन का माध्यम बनी हैं. गाँधी जी को ही लें. उनके जीवन में जॉन रस्किन एवं लियो टॉलस्टॉय की किताबों की भूमिका का जिक्र गाँधी जी ने खुद किया है. दूसरी ओर महापुरुषों की जीवन गाथा पढ़ कर लाखों-करोड़ों लोगों ने अपने जीवन में अकल्पनीय बदलाव लाया है, लाते रहेंगे. गाँधी जी आत्म कथा, ‘सत्य के प्रयोग’ को पढ़ कर न जाने कितने ही भटके हुए लोगों ने फिर से एक सार्थक और सम्मानजनक जिंदगी जीना प्रारंभ किया. यह सिलसिला आगे भी चलता रहेगा.
बहरहाल, उदारीकरण के इस दौर में देखने में आता है कि नौकरी या व्यवसाय में जाने के बाद हममें से अनेक लोग जाने-अनजाने पढ़ना छोड़ देते हैं या छुट्टी आदि में भूले-भटके पढ़ लेते हैं. ऐसे भी टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल और इंटरनेट के इस दौर में हमारा समय कैसे गुजर जाता है पता ही नहीं चलता. तभी तो गुलजार साहब को लिखना पड़ता है, “किताबें झांकती है बंद अलमारी के शीशे से/ बड़ी हसरत से तकती हैं / महीनों अब मुलाक़ात नहीं होती / जो शामें उनकी शोहबत में होती थीं ....” लेकिन इससे यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी कि लोगों में पढ़ने, जानने और समझने की प्यास बुझती जा रही है. हर साल देश के विभिन्न शहरों में पुस्तक मेला का आयोजन और उसमें भाग लेनेवाले लाखों–करोड़ों पुस्तक प्रेमियों ने इस बात को स्पष्टतः रेखांकित किया है कि इंटरनेट जैसे संचार तकनीक के बढ़ते प्रभाव और किताबों के डिजिटल फॉर्म में कंप्यूटर के स्क्रीन पर सुलभता के बावजूद किताबों को अपने हाथ में लेकर पढ़ने का जो एक अलग ही आनंद होता है, उससे लोग अपने को वंचित नहीं करना चाहते. हाँ, आवश्यकता तो है ही इस बात की कि हम किताबों के साथ कुछ समय बिताने की आदत डालें जिससे किताबें हमारे घर-परिवार का अभिन्न हिस्सा तथा हमारे सुख-दुःख का साथी बनी रहें. शायद तभी हम अपनी शख्सियत को तलाशने एवं तराशने के काम को निरंतरता प्रदान करते हुए एक बेहतर इंसान बने रह पायेंगे.
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।