Tuesday, February 12, 2013

आज की कविता : अंतर

                                      - मिलन सिन्हा 
अंतर 
एक वह था 
जो 
हमेशा  ऊंचे पहाड़ों 
एवं 
ऊंची अट्टालिकाओं से 
प्रेरणा लेता रहा 
और निरंतर 
भागता रहा ऊपर 
कभी 
भूल कर भी 
नीचे नहीं देखा । 
और एक मैं था 
जो 
बराबर गड्ढों और नालों को 
ढूंढ़ता रहा 
कीड़े बीनता रहा 
एवं 
उन कीड़ों को 
धोकर, साफकर 
एक नया रूप देने की 
कोशिश करता रहा । 
और आज 
जब कि वह 
अंतरिक्ष में काल कोठरियां खोज रहा है 
मैं 
यहाँ की काल कोठरियों को 
धो-पोंछ कर 
एक नया रूप देने का प्रयत्न कर रहा हूँ ।

('समग्रता' में अगस्त '79 में प्रकाशित )

                                                     और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

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