- मिलन सिन्हा
गरीब की बेटी
बांस की फसल
जैसी है आज
उससे बेहतर
कैसे रहे कल
गाँव या क़स्बा हो
या हो नगर महानगर
कठिन है
जिंदगी का सफ़र
घर में न आसानी
बाहर तो
है ही परेशानी
कभी डर अपहरण का
कभी चीर हरण का
इधर दुर्योधन
तो
उधर दु:शासन
भाई के नाम पर भी
न कोई अर्जुन
न कोई किशन
दुनिया सिमट रही है
ग्लोबल विलेज
बन रही है
घोषणाओं की है भरमार
अमल के नाम पर
व्यवस्था है लाचार
लेकिन
नहीं है वह निराश
अपनी आन्तरिक शक्ति का
उसे है एहसास
मन में है विश्वास
बन पायेगी वह भी
एक न एक दिन
कोई मेधा या किरण
कोई इला या तीजन ।
('हिन्दुस्तान' में 19 अक्टूबर,2008 को प्रकाशित)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
गरीब की बेटी
बांस की फसल
जैसी है आज
उससे बेहतर
कैसे रहे कल
गाँव या क़स्बा हो
या हो नगर महानगर
कठिन है
जिंदगी का सफ़र
घर में न आसानी
बाहर तो
है ही परेशानी
कभी डर अपहरण का
कभी चीर हरण का
इधर दुर्योधन
तो
उधर दु:शासन
भाई के नाम पर भी
न कोई अर्जुन
न कोई किशन
दुनिया सिमट रही है
ग्लोबल विलेज
बन रही है
घोषणाओं की है भरमार
अमल के नाम पर
व्यवस्था है लाचार
लेकिन
नहीं है वह निराश
अपनी आन्तरिक शक्ति का
उसे है एहसास
मन में है विश्वास
बन पायेगी वह भी
एक न एक दिन
कोई मेधा या किरण
कोई इला या तीजन ।
('हिन्दुस्तान' में 19 अक्टूबर,2008 को प्रकाशित)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
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