Tuesday, November 23, 2021

ठान लें तो कुछ भी मुश्किल नहीं

                           - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट  कंसलटेंट

कोरोना महामारी से आम जन को सुरक्षा प्रदान करने के असंभव से प्रतीत होने वाले लक्ष्य को सामने रखकर सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरुआत इसी साल 16 जनवरी को हुई थी और आश्चर्यजनक रूप से सिर्फ 279 दिनों में विविधताओं और विषमताओं से भरे 135 करोड़ आबादी वाले हमारे देश ने 100 करोड़ वैक्सीन डोज लगाने का एक बड़ा मुकाम हासिल कर लिया. इस ऐतिहासिक अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए देशवासियों का अभिनन्दन किया और उन्हें हार्दिक बधाई दी. यहां अगर हम पीछे मुड़ कर देखें तो हमें बहुत गर्व होगा कि किन-किन अप्रत्याशित और अत्यंत चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से एक-एक कर निबटते हुए देश ने यह अपूर्व कीर्तिमान बनाया. कहने की जरुरत नहीं कि प्रधानमन्त्री के कुशल नेतृत्व में केन्द्र सरकार ने इस बात को सिद्ध कर दिया कि मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए. बेशक इसमें राज्य सरकारों ने भी कमोबेश अपनी-अपनी भूमिका का निर्वहन किया. क्या छात्र-छात्राएं इससे सीख लेकर अपने छात्र जीवन की चुनौतियों से सफलतापूर्वक निबट सकते हैं? अगर हां तो इसके लिए क्या-क्या करना होगा? 


यह बिल्कुल सही बात है कि जितनी बड़ी चुनौती, उतनी बड़ी तैयारी. ऐसे समय अपनी सारी ऊर्जा को एकीकृत और केन्द्रित करने की आवश्यकता होती है. चुनौती बड़ी और तैयारी  छोटी हो तो परिणाम का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. यह भी उतना ही सही है कि चुनौती कितनी भी बड़ी हो, घबराने से उससे निबटने की पहल ही कमजोर पड़ जाती है. मनोबल ऊँचा रहे तो चुनौती का सामना करने में मजा आता है और राह आसान प्रतीत होता है. इस स्थिति में तैयारी में पूरा मन लगा रहता है. नतीजतन तैयारी बेहतर हो पाती है और परिणाम सुखद.

 
फुल प्रूफ प्लानिंग के बगैर सफलता की कामना बेमानी है. लॉक डाउन हो या अनलॉक की प्रक्रिया, हर समय केन्द्र सरकार ने फुल प्रूफ प्लानिंग से कार्य को अंजाम देने का पूरा प्रयास किया. छिटपुट दुर्घटनाएं बेशक हुई, लेकिन हर बार स्थिति को जल्दी काबू में कर लिया गया.  विद्यार्थियों को अध्ययन काल में कुछ ऐसे ही सब कुछ सुनिश्चित करना चाहिए. मसलन पढ़ाई प्लानिंग के हिसाब से चले, फिर भी अगर किसी अप्रत्याशित कारण से व्यवधान उपस्थित हो जाय तो डैमेज कण्ट्रोल की व्यवस्था अपनाई जा सके. यह भी प्लानिंग का हिस्सा होता है.  

  
व्यवहारिक कार्य योजना का स्पष्ट मतलब है कि प्लानिंग के अनुसार हम हर कार्य को अंजाम दे पाएं. इस मामले में खुद की क्षमता और योग्यता के हिसाब से कार्य योजना बनानी चाहिए. हर विद्यार्थी अपने आप में अनोखा होता है. उसके अध्ययन का तरीका, समय प्रबंधन, शारीरिक संरचना आदि दूसरे से जुदा होती है. ऐसे में देखादेखी करने की कोई जरुरत नहीं है. बस अपनी प्लानिंग के मुताबिक़ कार्य योजना बनाएं और उस पर निष्ठापूर्वक अमल करें. 

 
आंतरिक संसाधनों का समुचित उपयोग किस तरह किया जाय, यह हमें कोरोना महामारी के रोकथाम और रिकॉर्ड टाइम में स्वदेशी वैक्सीन विकसित करने के मामले में अच्छी तरह दिखाई पड़ी. कुछ इसी तरह हर विद्यार्थी अपने पास उपलब्ध संसाधन जैसे पैसे, पाठ्य पुस्तक, रहने-खाने आदि से संबंधित संसाधन का समुचित उपयोग करें. ऐसा पाया गया है कि कई विद्यार्थी हर समय संसाधन के अभाव का रोना रोते रहते हैं, जब कि उनकी जरुरत के लिए जरुरी संसाधन उनके पास पहले से ही उपलब्ध होते हैं. अच्छा करने के लिए और संसाधन चाहिए की मानसिकता से बेहतर है कि जो उपलब्ध है, पहले उसका भरपूर उपयोग सुनिश्चित करें. 

 
देखा गया है कि समावेशी सोच और समयबद्ध कार्यान्वयन से सफलता की राह आसान हो जाती है. कोरोना टीकाकरण के देशव्यापी अभियान में आरम्भ से ही इस बात पर पूरा ध्यान दिया गया है. गरीब-अमीर किसी के साथ कोई भेदभाव किए बगैर सबको नियमानुसार एक निर्धारित टाइम फ्रेम में वैक्सीन लगाने का कार्य किया गया. सभी विद्यार्थियों को अपने जीवन में इसी सोच को उतारने की बहुत जरुरत है. सिर्फ हम ही सुविधा या साधन संपन्न हों, बाकी साथी-सहपाठी नहीं, यह सोच सही नहीं है. सामजिक प्राणी होने के नाते हमें मानवता की कसौटी पर खुद को कसना जरुरी है. तभी हम सही मायने में सफल होंगे और सुखी भी.  

 (hellomilansinha@gmail.com)      

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के  16-30 नवम्बर , 2021 अंक में प्रकाशित

#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com   

Tuesday, November 9, 2021

नशा को कहें ना और जिंदगी को हां

                              - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट  कंसलटेंट

नशे के शिकार विद्यार्थियों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है. नशे के अवैध व्यवसाय में संलिप्त लोगों और अपराधी तत्वों के लिए स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी सॉफ्ट टारगेट हैं. देश को आर्थिक, सामजिक, शैक्षणिक और सामरिक दृष्टि  से कमजोर करना भी उनके एजेंडा में शामिल है. यह बहुत चिंता का विषय है. हाल ही में मुंबई में नारकोटिक्स कण्ट्रोल ब्यूरो ने छापेमारी करके जिस तरह कुछ युवक-युवतियों को पकड़ा है और उनके पास से जो जानकारी मिल रही है, उससे इस भयानक संक्रमण के बढ़ते दायरे का अनुमान लगाया जा सकता है. बताते चलें कि नशीला पदार्थ विद्यार्थियों के शारीरिक तथा मानसिक स्थिति को बहुत दुष्प्रभावित  करता है. आमतौर  पर इसकी शुरूआत मौजमस्ती, उत्सुकता, मजबूरी या प्रलोभन, दोस्तों के दबाव या बहकावे जैसे एकाधिक कारणों से होती है, जो धीरे-धीरे आदत में बदलने के बाद व्यक्ति इसका आदी हो जाता है. आंकड़े बताते हैं कि  चरस, गांजा, अफीम, कोकीन, हेरोइन जैसे खतरनाक नशीली चीजों  के सेवन से लाखों विद्यार्थियों की जिंदगी बर्बाद हो रही है. इसी सन्दर्भ में आइए आज उन अहम बिन्दुओं पर चर्चा करते हैं जिससे छात्र-छात्राएं नशीले पदार्थों के सेवन से बचे रह सकें. 


किसी भी प्रलोभन में न पड़ें. अधिकतर मामलों में यह पाया गया है कि छात्र-छात्राएं किसी-न-किसी  प्रलोभन के चक्कर में नशे का शिकार होते हैं. प्रलोभन आर्थिक सहित कुछ भी हो सकता है. प्रलोभन देनेवाला व्यक्ति विद्यार्थी विशेष की मजबूरी और कमजोरी का आकलन कर उसे अपने जाल में आसानी से फंसाता है. यह व्यक्ति आपका कोई दोस्त, सहपाठी या परिचित हो सकता है. अतः इस पर विचार करना अनिवार्य है कि कोई यूँ ही रुपया-पैसा या अन्य प्रलोभन क्यों दे रहा है? 

 
क्षणिक मौज-मस्ती के लिए अपने भविष्य को दांव पर न लगाएं. आजकल रात में दोस्तों के साथ पार्टी में जाना कोई अनहोनी बात नहीं रह गई है. पहली बार इन पार्टियों में जानेवाले विद्यार्थियों पर अपराधी तत्वों की पैनी नजर रहती है और उनकी यह कोशिश होती है कि किसी तरह उन्हें नशीले पदार्थ का सेवन करवाया जाय, बेशक मुफ्त में ही सही. सिगरेट, गांजा, बीयर, शराब आदि आम नशीले पदार्थों से शुरुआत होती है और एक बार जब नशा न करने का बंधन टूट जाता है तो फिर आगे नशे की अंधेरी सुरंग में विचरण में कोई संकोच नहीं रहता है. शातिर अपराधी तत्व इन अवसरों का विडियोग्राफी कर लेते है और जरुरत पड़ने पर ब्लैकमेलिंग के लिए उसका बखूबी इस्तेमाल करते हैं. लिहाजा ऐसे मौज-मस्तीवाले पार्टी और ऐसे दोस्तों से बराबर दूर रहें. 

 
अध्ययन पर पूरा फोकस  बनाए रखें. आजकल पढ़ाई का इतना प्रेशर होता है कि अगर कोई भी विद्यार्थी अपने अध्ययन के लक्ष्य को सामने रखकर आगे बढ़े तो  मौज-मस्ती और नशाखोरी की ओर उसका ध्यान कतई नहीं जा सकता है. उसके लिए तो अच्छी तरह पढ़ना किसी नशे से कम नहीं होता. खुद को इस कार्य में संलग्न रखने के लिए वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने की कोशिश करता है. इसके लिए वह पौष्टिक खानपान और व्यायाम के प्रति भी गंभीर रहता है.  

 
बराबर घरवालों के संपर्क में रहें. कई सर्वेक्षणों में यह बात उभर कर आई है कि भावनात्मक रूप से परिवारजनों से जुड़े रहनेवाले विद्यार्थी अपेक्षाकृत कम संख्या में नशे के शिकार होते है. एकाकीपन और घर-परिवार से दुराव की भावना नशे की ओर किसी-न-किसी रूप से प्रेरित  करती है, ऐसा देखने में आता है. अपने घर से दूर दूसरे शहर और वह भी हॉस्टल में रहकर पढ़नेवाले विद्यार्थियों को पर्व-त्यौहार और लम्बी छुट्टियों में घर जरुर जाना चाहिए, जिससे कि उन्हें रिश्तों की महत्ता की अनुभूति हो और वे खुशी के पलों को  भरपूर जी सकें. 

  
भूल-चूक हो जाए तो तुरत स्वीकार कर सही रास्ते पर चलना शुरू करें. सावधानी बरतने के बावजूद भी कोई दुर्घटना हो जाए और आप नशा करने लगें, तो उस चक्कर से यथाशीघ्र निकलें. इसमें किसी दोस्त से कुछ पूछने या खुद किसी दुविधा में रहने की कोई जरुरत नहीं है. बेहतर यह होगा कि तुरत घर जाएं और अपने अभिभावक से सब कुछ साफ-साफ बता दें. वे नाराज हों या गुस्सा करें तो सब कुछ सहन करें और उनके सुझाए रास्ते पर चलें. पीछे मुड़कर देखने और उस आत्मघाती मार्ग पर लौटने की बात सोचना भी गलत होगा. जीवन से बड़ा कुछ भी नहीं होता. नशे की लत क्षणिक मजा दे सकता है, लेकिन यह जीवन को नरक बनाने का अहम जरिया है. 

 (hellomilansinha@gmail.com)

                  

             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.            पाक्षिक पत्रिका "यथावत" के 01-15 नवम्बर, 2021 अंक में प्रकाशित  

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