- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट
Monday, August 30, 2021
Tuesday, August 24, 2021
बच्चों को दीजिए संस्कार युक्त, रोगमुक्त, सानंद जीवन
- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ... ...
कहते हैं स्वस्थ जीवन, सुखी जीवन का आधार होता है. यह भी कहा जाता है कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं. आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश की आबादी का 20 % हिस्सा स्कूली बच्चों का है, यानी 25 करोड़ से भी ज्यादा. लिहाजा, हमारे बच्चों को शिक्षित करने के साथ–साथ तन्दुरस्त बनाए रखना अनिवार्य है, तभी आने वाले समय में वे एक समर्थ इंसान के रूप में जीवन की तमाम चुनौतियों से निबटते एवं अपनी जिम्मेदारिओं को निबाहते हुए समाज एवं देश को भी मजबूत बना पायेंगे. लेकिन ऐसा कैसे संभव होगा?
यह एक तथ्य है कि हमारे देश में आजादी के करीब सात दशक बाद भी हमारे गांवों की अधिकांश आबादी आधुनिक चिकित्सा पद्धति के दायरे से बाहर हैं और वे अब तक मुख्यतः पारम्परिक चिकत्सा पद्धति पर निर्भर रहे हैं. ऐसा इसलिए कि हमारा देश पारम्परिक ज्ञान के मामले में अत्यधिक समृद्ध रहा है और हजारों सालों से चली आ रही पूर्णतः स्थापित परम्पराओं की एक पूरी श्रृंखला सामाजिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में उपलब्ध रही है. लेकिन हमारी शहरी आबादी कारण–अकारण स्वास्थ्य ज्ञान के इस असीमित स्त्रोत का उपयोग अपने व्यवहारिक जीवन में नहीं करते हैं और फलतः सामान्य शारीरिक परेशानियों या बीमारियों, जैसे सर्दी-जुकाम, डायरिया –कब्ज, सिर दर्द –बदन दर्द आदि से ग्रसित होने पर भी आधुनिक चिकित्सा पद्धति (यानी एलोपैथी) को अपनाने को विवश हो जाते हैं, जब कि आज की हमारी आधुनिक चिकित्सा काफी मंहगी है और उसके कई नकारात्मक आयाम भी हैं.
फिर भी ऐसा क्यों हो रहा है ? दरअसल बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के सामाजिक प्रभावों के अलावे लगातार तेजी से संयुक्त परिवारों के टूटने और उतनी ही तेजी से एकल परिवारों के बढ़ते जाने के कारण दादा–दादी , नाना–नानी जैसे बुजुर्गों के मार्फ़त बच्चों में स्वतः हस्तांतरित होने वाले व्यवहारिक स्वास्थ्य ज्ञान का सिलसिला ख़त्म हो रहा है. ऐसे में, घरेलू उपचार की इस समृद्ध धरोहर को फिर से किसी –न- किसी रूप में पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है, जिससे एक बड़ी आबादी को सामान्य रोगोपचार के मामले में कुछ हद तक आत्मनिर्भर बनाया जा सके.
कहना न होगा, इस महती कार्य को प्रभावी ढंग से लक्ष्य तक ले जाने में स्कूलों की भूमिका अहम है. इसके लिए एक सुविचारित व सुनियोजित जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से कक्षा -7 से लेकर कक्षा -12 तक के बच्चों को प्रेरित कर उनसे अपने घर के बुजुर्गों से सामान्य बिमारियों में किये जाने वाले घरेलू उपचारों की जानकारी प्राप्त करने के लिए कहा जाएगा और फिर उन तमाम जानकारियों पर चर्चा कर उन्हें उसके वैज्ञानिक आधार से परिचित करवाया जाएगा. इससे एक तो स्वास्थ्य के प्रति उनकी जागरूकता बढ़ेगी, घरेलू उपचारों की जानकारी होगी और उनका परिवार के बुजुर्गों के साथ जुड़ाव बढ़ेगा. साथ ही बढ़ेगा बुजुर्गों के प्रति बच्चों का सम्मान भी. इसके फलस्वरूप परिवार संस्कारयुक्त, रोग मुक्त, स्वस्थ एवं सानन्द रहेगा. बच्चों के सर्वांगीण विकास में इसका अहम योगदान तो रहेगा ही.
Tuesday, August 17, 2021
खेलकूद और व्यक्तित्व विकास
- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट
टोक्यो ओलिंपिक में विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं का दौर जारी है. विश्व व्यापी कोरोना महामारी के घटते-बढ़ते ग्राफ के बीच खेल के इस महाकुम्भ का आयोजन खेल भावना के बुनियादी मूल्यों को बखूबी दर्शाता है. कोरोना महामारी के कारण छाए मायूसी, उदासी, चिंता और आशंका के माहौल में ओलिंपिक का आयोजन आशा और उत्साह का एक बड़ा परिवर्तन लेकर आया है. सच्चाई यह है कि वास्तविक एवं संभावित सभी तरह की चुनौतियों से मुकाबला करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना छात्र-छात्राएं खेल के मैदान में अनायास ही सीख लेते है. इससे उनका स्वस्थ मनोरंजन भी होता है. लेकिन क्या विश्व के सबसे युवा देश के सभी विद्यार्थी इसका समुचित लाभ उठा पा रहे हैं? यह बहुत विचारणीय विषय है. बहरहाल, यह जानना सभी विद्यार्थियों के लिए जरुरी है कि खेलकूद के जरिए वे कौन-कौन सी अहम बातों से लाभान्वित हो सकते हैं, जो उनके व्यक्तित्व विकास में बहुत सहायक होंगी. हां, इसके लिए उन्हें निष्ठापूर्वक इंडोर या आउटडोर किसी भी खेल का नियमित अभ्यास करना पड़ेगा.
1. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: अध्ययन सहित हर क्षेत्र में अपेक्षित ऊर्जा और उत्साह से जुटे रहना अनिवार्य होता है. इसके लिए शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होना आवश्यक है. खेलकूद के जरिए यह हासिल करना आसान होता है. रोजाना एक घंटे के नियमित अभ्यास से भी आपके शरीर का हर अंग सक्रिय हो जाता है, आपका मेटाबोलिज्म और इम्यून सिस्टम बेहतर होता है और आपमें ऊर्जा व उत्साह की कमी नहीं रहती. जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण व्यापक और सकारात्मक बनता है. आपके खानपान में भी एक बेहतर अनुशासन दिखाई पड़ता है. आपको रात में नींद भी अच्छी आती है. कुल मिलाकर इससे आपका मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर बना रहता है. तनाव प्रबंधन सहित इसके अन्य कई लाभ आपको बराबर मिलते रहते हैं.
2. लक्ष्य के प्रति समर्पण: बिना समर्पण की भावना के लक्ष्य तक पहुंचना बहुत मुश्किल होता है, कई बार तो असंभव भी. स्पोर्टस आपको अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण हेतु प्रेरित करता है. लुईस ग्रीज़र्ड ने सही कहा है कि "ज़िन्दगी का खेल काफी कुछ फुटबॉल की तरह है. आपको अपनी समस्याओं से जूझना पड़ता है, अपने डर को ब्लॉक करना पड़ता है, और जब मौका मिले तब अपना पॉइंट स्कोर करना होता है." सभी खेलों में कमोबेश यही सिद्धांत लागू होता है.
3. योजना और कार्यान्वयन: सब जानते हैं कि किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए यथोचित कर्म करना बहुत जरुरी होता है. इसके लिए पहले फुलप्रूफ योजना बनाना और फिर उस योजना को सही ढंग से कार्यान्वित करना उतना ही अनिवार्य होता है. अनेक उदाहरण आसपास ही मिल जायेंगे जहां विद्यार्थी विशेष ने लक्ष्य तो बड़ा तय कर लिया लेकिन उसे हासिल करने के लिए अपेक्षित प्लानिंग एंड एग्जिक्युसन के मामले में सही कदम नहीं उठा पाए. खुशी की बात है कि खेलते-खेलते आप प्रबंधन के ये अहम सूत्र मैदान में स्वतः सीखते रहते हैं.
4. समय प्रबंधन और आत्मविश्वास: किसी भी खेल में इनका अतिशय महत्व होता है. यह अकारण नहीं है. अगर 90 मिनट के फुटबॉल मैच में या 70 मिनट के हॉकी मैच में तय समय के अन्दर गोल कर सकें तो यह बेहतर खेल का परिचायक होता है. आपकी टीम ने शुरुआती कुछ मिनटों में या मध्यांतर से पहले दो-तीन गोल करके बढ़त हासिल कर ली तो प्रतिद्वंदी टीम पर दवाब बनाना आसान हो जाता है, जिसका असर खेल के अंत तक रहता है. बेहतर समय प्रबंधन से हासिल सफलता से आपका और पूरी टीम का आत्मविश्वास भी बढ़ता है.
5. टीम वर्क एवं समावेशी सोच: क्रिकेट से लेकर कबड्डी तक ज्यादातर खेल टीम के रूप में खेले जाते हैं. आप कितने भी योग्य हों और आपका व्यक्तिगत योगदान कितना भी महत्वपूर्ण हो , लेकिन उसकी कीमत तब कम हो जाती है जब आप एक टीम के रूप में अपना 100 % नहीं दे पाते हैं. ऐसे एकल प्रतियोगिताओं में भी कोच, मैनेजर और कई सहायक होते हैं जो आपकी एक्सटेंडेड टीम होती है. देखा गया है कि व्यक्तिगत रूप से सभी खिलाड़ियों का स्तर बेहतर होते हुए भी टीम मैच नहीं जीत पाती है क्यों कि खिलाड़ियों में टीम भावना की कमी थी. कहने की जरुरत नहीं कि खेल के मैदान में हमें यह अहम सीख मिलती है कि हम कैसे टीम वर्क और समावेशी सोच के साथ न केवल खेल प्रतियोगिताओं में सफलता हासिल करें, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सफल हो सकें.
(hellomilansinha@gmail.com)
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के 01-15 अगस्त, 2021 अंक में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com
Tuesday, August 10, 2021
लाइफ स्किल: पहचानें अपनी क्षमता
-मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट
मनुष्य की हार तब होती है, जब वह खुद पर यकीन करना छोड़ देता है. वास्तविकता यह है कि आप जैसा दूसरा कोई नहीं है; आप किसी का कॉपी-पेस्ट वर्सन नहीं हैं; आप में असीम क्षमताएं हैं, केवल उनका समुचित दोहन किया जाना शेष है. इस तथ्य को अच्छी तरह जान लें और मान लें तो एक अच्छी शुरुआत स्वतः हो जाएगी. दरअसल अपनी क्षमताओं को जो पहचान लेगा और उसके अनुरूप काम करने लगेगा, सफलता का साथ उसे मिलता रहेगा.
क्षमताओं को उपलब्धियों में तब्दील करने के लिए जरुरी है कि आप जीवन को सजगता से जीएं और इसके हर मिनट का आनंद लें. सदा सीखने की कोशिश करते रहें और खुद को हमेशा युवा ही समझें. ऐसे भी रोचक तथ्य तो यही है कि मनुष्य कभी भी बूढ़ा नहीं होता, सिर्फ उसकी उम्र बढ़ती है. अगर आप खुद को तन-मन से स्वस्थ रखेंगे तो न सिर्फ सकारात्मक ऊर्जा का विकास होगा, बल्कि आपका जीवन भी उत्साह, उमंग और आनंद से भर उठेगा.
खुद के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने के लिए एक सरल मंत्र है. इसे आजमाकर जरुर देखें. सुबह सो कर उठने के बाद सबसे पहले कुछ पल आईने के सामने खड़े होकर खुद को निहारें और एक प्यारभरी मुस्कान से खुद का अभिवादन करें. इसके बाद खुद से कई बार कहें "आइ एम द बेस्ट", "आई केन एंड आई विल." अर्थात मैं सबसे अच्छा हूँ, मैं कर सकता हूँ और मैं करूंगा. इससे न सिर्फ शरीर में स्फूर्ति महसूस होगी, बल्कि आत्मविश्वास बढेगा और विचार भी बेहतर बनेंगे. दरअसल, मन को जैसा समझाएंगे, मानस भी वैसा बनेगा और व्यक्तित्व भी वैसा ही बनेगा.
एक और दिलचस्प बात. संघर्ष और सफलता दोनों बहुत अच्छे दोस्त हैं और करीब-करीब साथ ही चलते हैं. दुनिया के किसी भी सफलतम व्यक्ति का इतिहास उठाकर अगर हम देखेंगे तो पायेंगे कि उन्होंने जीवन में संघर्ष का मार्ग कभी नहीं छोड़ा और न ही कभी असफलता से घबराए. कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि एकाधिक असफलताओं के बाद ही उन्होंने सफलता का स्वाद चखा है. कहने का सीधा अर्थ यह है कि यदि आप असफलता से बिना डरे, संघर्ष का दामन थामे रहे तो सफलता ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकती है. फल मिलने में वक्त लग सकता है, लेकिन मिलता जरूर है.
(hellomilansinha@gmail.com)