- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट
हर साल पन्द्रह अगस्त को देशभर के विद्यार्थी भी ब्रिटिश शासन से देश की आजादी का उत्सव मनाते हैं. देश के हर भाग में राष्ट्रगान के साथ-साथ तिरंगा फहराने का कार्यक्रम हर्ष व उल्लास से संपन्न होता है. देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत गीत दिनभर आपको आल्हादित, उत्साहित और उत्प्रेरित करते रहते हैं. कहने की जरुरत नहीं कि देशप्रेम की भावना साधारण लोगों को असाधारण कार्य करने को सदा प्रोत्साहित और प्रेरित करती रही है. देश आजादी के 75वें साल में प्रवेश कर रहा है. इस वर्ष को बड़े स्तर पर और यादगार तरीके से सेलिब्रेट करने की योजना सरकार और समाज की प्राथमिकता में है. इस ऐतिहासिक अवसर पर आइए देश के उन तीन सपूतों को याद करते चलें जिन्होंने देश की आजादी के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया, पर आजादी के जश्न में शामिल नहीं हो सके. अगर वे लोग कुछ और वर्ष जीवित रहते तो शायद देश को 1947 से पहले ही आजादी मिल जाती. ऐसा मेरे अलावे करोड़ों अन्य देशवासियों की मान्यता है.
भगत सिंह एक ऐसे क्रांतिकारी थे जो मात्र साढ़े 23 वर्ष के छोटे से जीवन में ही ब्रिटिश शासन को आजादी के मुत्तलिक अपने फौलादी इरादे बता दिए. भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को पंजाब प्रांत के बावली गाँव मे हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है. उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था. 1919 में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार ने उन्हें काफी दुखी और विचलित किया था. भगत सिंह का कहना था कि "यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा. जब हमने विधान सभा में बम फेंका तो हमारा लक्ष्य किसी को मारना नहीं था. हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था. अंग्रेजों को भारत छोड़ना चाहिए और देश को तुरत आजाद करना चाहिए." देश की आजादी के लिए जान की परवाह किये बिना लड़ने वाला यह नायाब योद्द्धा अपने साथी राजगुरु और सुखदेव के साथ 23 मार्च 1931 को फांसी पर चढ़ गया, पर दुनिया के लिए स्वतंत्रता और देशप्रेम की एक प्रेरक मिसाल छोड़ गया.
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा में पंडित सीताराम तिवारी के घर हुआ था. मां जगरानी देवी उन्हें संस्कृत का विद्वान बनाना चाहती थीं. इसी कारण किशोरावस्था में ही शिक्षा ग्रहण हेतु उन्हें बनारस भेजा गया. जलियावाला बाग नरसंहार सहित ब्रिटिश शासन के अन्य दमनकारी कृत्यों से आजाद का युवा मन काफी उद्वेलित था. गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर जज के समक्ष प्रस्तुत किया गया. जज ने जब उनका नाम पूछा तो उन्होंने कहा, आजाद है मेरा नाम. पिता का नाम पूछने पर बोले, 'स्वतंत्रता'. घर का पता पूछने पर कहा, "जेल." उन्हें सरेआम 15 कोड़े लगाने की सजा सुनाई गई. जब उनकी पीठ पर कोड़े बरस रहे थे तब वे "वंदे मातरम्" का उदघोष कर रहे थे. तभी से उन्हें सब लोग आजाद के नाम से जानने लगे. आजाद कहते थे कि "दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे." इस बात को उन्होंने 27 फरवरी, 1931 को साबित कर दिया, जब इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेज पुलिस ने उनपर अचानक हमला कर दिया.उस समय वे साथी क्रांतिकारी सुखदेव राज के साथ कुछ विचार–विमर्श कर रहे थे. आजाद ने पुलिस पर गोलियां चलाईं ताकि उनके साथी सुखदेव बचकर निकल सकें. पुलिस से लोहा लेते हुए उन्होंने पिस्तौल की आखिरी गोली खुद को मार ली और देश के लिए प्राण की आहुति दे दी.
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हुआ. पिता गंगाधर रामचंद्र तिलक अपने समय के नामचीन शिक्षक थे. दुर्भाग्यवश युवा तिलक 16 वर्ष की उम्र में अनाथ हो गए, लेकिन कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने अध्ययन जारी रखा और आगे बी.ए. आनर्स की डिग्री पूना के डेक्कन कॉलेज से और कानून की डिग्री बंबई विश्वविद्यालय से हासिल की. वे कई विषयों के ज्ञाता थे. 'स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे मैं लेकर रहूँगा' का नारा देनेवाले और उसे जन-जन तक पहुँचानेवाले तिलक ताउम्र देश को आजाद करने में तन-मन से जुटे रहे. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे जिनसे ब्रिटिश सरकार खौफ खाती थी. स्वतंत्रता संग्राम के संघर्षभरे दौर में उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा. 1 अगस्त 1920 को उनका देहांत हुआ. लोकमान्य तिलक कहते थे कि अगर आपके विचार सही, लक्ष्य ईमानदार और प्रयास संवैधानिक हों तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपकी सफलता निश्चित है.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के 16-31 अगस्त, 2021 अंक में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com
No comments:
Post a Comment