- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
क्या सभी विद्यार्थी देश की गौरवशाली संस्कृति व सभ्यता पर गर्व करते हैं? इस विषय पर गंभीरता से सोच-विचार करने की जरुरत है. संस्कृति और सभ्यता किसी भी देश की पहचान होती है. यह सर्वज्ञात है कि भारत की संस्कृति व सभ्यता सबसे प्राचीन और महान है. स्कूल-कॉलेज में विद्यार्थियों को यह पढ़ाया जाता है कि हमारे देश की संस्कृति और सभ्यता की यात्रा कितनी चुनौतीपूर्ण, रचनात्मक और गौरवशाली रही है. हां, यह सही है कि आजादी यानी वर्ष 1947 से पहले करीब सवा चार सौ वर्षों तक हमारा देश आंशिक या पूर्णतः मुगलों और अंग्रेजों के शासनाधीन रहा. इस दौरान सुनियोजित तरीके से देश के लोगों को यह बताने और समझाने के साथ-साथ जोर-जबरदस्ती यह मनवाने की पूरी कोशिश होती रही कि हमारी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व करने लायक कोई बात नहीं है. उस दौरान पाठ्यक्रमों के मार्फत यह बड़ा प्रयास भी लगातार चलता रहा कि बच्चे शुरू से ही यह जानने और मानने लगें कि भारतवासी गरीबी, अशिक्षा और गुलामी की मानसिकता से पीड़ित हैं. लेकिन उस दौर में भी हमारे देश में अनेक वीर योद्धा, संत और विद्वान् हुए जिन्होंने अपने-अपने तरीके से लोगों को यह बताने की अपनी कोशिश जारी रखी कि हमारे देश की सभ्यता व संस्कृति बहुत उन्नत रही है और भारतवासियों ने प्राचीन काल से ही ज्ञान-विज्ञान, संगीत-साहित्य, कृषि-जलवायु, योग-आयुर्वेद आदि हर विषय में मानवजाति को बराबर लाभान्वित करने का काम किया है और आगे भी करते रहेंगे.
इसी सन्दर्भ में स्वामी विवेकानंद कहते हैं, "मैं चुनौती देता हूँ कि कोई भी व्यक्ति भारत के राष्ट्रीय जीवन का कोई भी ऐसा काल मुझे दिखा दे जिसमें यहां समस्त संसार को हिला देने की क्षमता रखनेवाला आध्यात्मिक महापुरुषों का अभाव रहा हो.... ...हमारा पवित्र भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि है. यहीं बड़े-बड़े महात्माओं और ऋषियों का जन्म हुआ है. यह सन्यास और त्याग की भूमि है तथा केवल यहीं, आदि काल से लेकर आज तक मनुष्य के लिए जीवन के सर्वोच्च आदर्श का द्वार खुला हुआ है ... ...यह देश दर्शन, धर्म, आचरण-शास्त्र, मधुरता, कोमलता और प्रेम की मातृभूमि है.... ....हमारी इस मातृभूमि में इस समय भी धर्म और अध्यात्मिक ज्ञान का जो स्त्रोत बहता है, वह समस्त जगत को आप्लावित करके प्रायः समाप्तप्राय, अर्धमृत तथा पतन उन्मुखी पाश्चात्य और दूसरी जातियों में भी नव-जीवन का संचार करेगी."
इस मामले में प्रसिद्ध कवि, लेखक, विचारक और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के विचार भी बड़े प्रासंगिक हैं. वे पूछते हैं, हमारी धरती ने विश्व को क्या नहीं दिया? वे कहते हैं कि श्रीमद् भागवत गीता जैसी अदभुत रचना विश्व को भारत ने ही दी है. गीता में दिया गया दिव्य ज्ञान समस्त मानवजाति को विश्वकल्याण की भावना से ओतप्रोत कर देता है. 'अमर आग है' शीर्षक कविता में वे लिखते हैं: अमर भूमि में, समर भूमि में, धर्म भूमि में, कर्म भूमि में, गूंज उठी गीता की वाणी, मंगलमय जन-जन कल्याणी. अपढ़, अजान विश्व ने पाई, शीश झुकाकर एक धरोहर. कौन दार्शनिक दे पाया है, अबतक ऐसा जीवन दर्शन?"
इतना ही नहीं, विद्यार्थियों को यह जानकर भी गौरव और प्रसन्नता होगी कि अनेक जाने-माने विदेशी विद्वानों-वैज्ञानिकों ने भी समय-समय पर भारत की गौरवशाली संस्कृति और सभ्यता पर खुलकर अपने विचार व्यक्त किए हैं. नोबेल पुरस्कार से सम्मानित फ्रांसीसी लेखक और नाटककार रोमां रोलां कहते हैं, "यदि इस धरती पर कोई ऐसी जगह है जहां प्राचीन काल के आरंभिक दिनों से ही, जब मानव ने सपने देखने शुरू किये और उसके सभी सपनों को आश्रय मिला, तो वो स्थान भारत है." विख्यात अमेरिकी लेखक, इतिहासकार और दार्शनिक विल ड्यूरेंट इन शब्दों में अपने विचार व्यक्त करते हैं, "भारत हमारी जाति की मातृभूमि थी, और संस्कृत यूरोप की भाषाओं की जननी; वो हमारे दर्शन की जननी थी; अरबों के माध्यम से हमारे गणित के अधिकतर ज्ञान की जननी; बुद्ध के माध्यम से क्रिश्चियनिटी में अपनाये गए आदर्शों की जननी; ग्रामीण समुदायों के माध्यम से स्वशासन और लोकतंत्र की जननी. भारत माता कई मायनों में हम सबकी माता है." और अंत में महान भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन के अनमोल विचार: "हम भारतीयों के कृतज्ञ हैं, जिन्होंने हमें गिनना सिखाया, जिसके बिना कोई सार्थक वैज्ञानिक खोज नहीं की जा सकती थी." हां, ऐसे और अनेकानेक प्रेरक मंतव्य सहज सुलभ हैं.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 07.02.2021 अंक में प्रकाशित
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 07.02.2021 अंक में प्रकाशित
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