- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
शैक्षणिक संस्थाओं में छात्र-छात्राओं को जीवन में ज्ञान और संस्कार के महत्व की बात गाहे-बगाहे सब कोई बताते हैं. आम तौर पर हमारे घर-समाज में भी यह चर्चा का एक अहम विषय होता है. व्यक्ति और समाज ज्ञानवान और संस्कारवान हो तो देश न केवल सही मायने में समृद्ध व समर्थ बनता है, बल्कि विश्व को मानवता और विश्वबंधुत्व का पाठ पढ़ाने में सक्षम भी माना जाता है. विद्यार्थियों के लिए इसकी अहमियत को समझना और उसे सतत जीवन में अपनाने के बहुमूल्य फायदे हैं. यह काम मुश्किल भी नहीं है. इसकी बढ़िया शुरुआत तो बस माता, पिता और गुरु की महत्ता को जानने-समझने और उनको सम्मान देने से हो जाती है. इसकी बुनियाद पर चलते हुए विद्यार्थियों का जीवन हर मामले में उन्नत होता जाता है. ज्ञातव्य है कि रामायण, महाभारत सहित हमारे सभी प्राचीन ग्रंथों में माता, पिता और गुरु की महिमा की असंख्य प्रेरक कथाएं दर्ज हैं.
दरअसल, माता-पिता से बड़ा कोई हितैषी, मार्गदर्शक और रिश्तेदार नहीं होता. हमारा उनसे रिश्ता सबसे पुराना, आत्मीय और नैसर्गिक होता है. खुद अपने माता-पिता को इस नजरिए से देखने और जानने का प्रयास करें. यकीनन, उनके प्रति आपकी धारणा में एक बड़ा सकारात्मक बदलाव आएगा. जरा सोचिए, कैसे आपकी माँ हर रोज सुबह उठकर आपको स्कूल भेजने के लिए जगाती है, तैयार करती है, नाश्ता करवाती है, टिफिन बनाकर देती है और कई बार आपके गंदे जूते पॉलिश करके हंसते हुए आपको विदा करती है और जबतक आप आंख से ओझल नहीं हो जाते, तबतक आपको जाते हुए देखती रहती है. कहते हैं कि एक माँ अपने बच्चे को नौ महीने अपने गर्भ में पालती है, फिर अपनी गोद में और फिर आगे अपने स्नेह और प्यार की छाँव में. रुडयार्ड किपलिंग कहते हैं, 'भगवान सभी जगह नहीं हो सकते, इसलिए उन्होंने माँ को अपनी जगह घर-घर भेजा है."
हमारे जीवन में पिता एक संरक्षक, पथप्रदर्शक और सदा हौसला बढ़ानेवाले व्यक्ति के रूप में साथ रहते हैं. पिता एक ऐसा फलदार-छायादार पेड़ हैं जो हमारा भरण-पोषण करने के साथ-साथ हमें धूप, बारिश और तूफ़ान से बचाने का काम सहर्ष करते हैं. खुद पुराने कपड़े, जूते आदि से काम चलाते रहते हैं, लेकिन हर पर्व-त्यौहार में हमारे लिए नये कपड़े आदि खरीदने में संकोच या किफायत नहीं करते. हर पिता की दिली इच्छा होती है कि उनके संतान बहुत अच्छी शिक्षा ग्रहण करें, उनसे हर मामले में बेहतर बनें और अच्छी तरह जीएं. इस हेतु वे यथासाध्य सर्वदा प्रयासरत रहते हैं.
टेक्नोलॉजी चालित हमारे आज के जीवन में गुरु की अहमियत को माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक एवं टेक विशेषज्ञ बिल गेट्स इन शब्दों में रेखांकित करते हैं, " टेक्नोलॉजी एक औजार मात्र है. बच्चों को एक साथ पढ़ाने और प्रोत्साहित करने में शिक्षक की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण है." भारतीय संस्कृति में तो गुरु को भगवान से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है. गुरु की महिमा पर संत कबीर द्वारा लिखे इस दोहे को सभी विद्यार्थियों ने जरुर पढ़ा होगा. वे लिखते हैं, "गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरू आपने जो गोविन्द दियो बताय." यहां संत कबीर कहते हैं कि जब गुरू और गोविन्द (ईश्वर) एक साथ खड़े हों, तब पहले किन्हें प्रणाम करना चाहिए - गुरू को या ईश्वर को? हां, पहले गुरु को नमन करना चाहिए, क्यों कि गुरु के कारण ही हम गोविन्द के विषय में जान पाए हैं. संत कबीर एक अन्य दोहे में लिखते हैं, "गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष (मोक्ष); गुरू बिन लखै न सत्य को, गुरू बिन मिटै न दोष." कहने का मतलब यह कि बिना गुरू के ज्ञान मिलना संभव नहीं है. गुरु के बिना मोक्ष का मार्ग नहीं मिल सकता है. बिना गुरू के सत्य एवं असत्य का ज्ञान नहीं होता; उचित-अनुचित के भेद का ज्ञान नहीं होता. और तो और दोष भी नहीं मिटता." अन्य अनेक विद्वानों ने भी गुरु की महत्ता का खूब बखान किया है.
अतः हर विद्यार्थी अपने माता-पिता से कम-से-कम कर्तव्य, त्याग और संयम की प्रेरणा तो ले ही सकता है. उसी तरह अपने गुरु से समर्पण, सहयोग और सकारात्मकता की सीख ले सकता है. सार संक्षेप यह कि आज के तथाकथित आधुनिक युग में जब कि भौतिक समृद्धि, चकाचौंध, आडम्बर आदि का आकर्षण ज्यादा है, छात्र-छात्राओं को यह बात अच्छी तरह समझनी होगी कि माता, पिता और गुरु की बातों को अमल में लाकर ही वे जीवन में सफलता, समृद्धि, स्वास्थ्य और खुशी के बीच बेहतर संतुलन स्थापित कर पायेंगे और अपने जीवन को वास्तव में सार्थक भी बना सकेंगे.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.
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