- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ...
कई अवसरों पर गुरुजनों को आपने यह कहते हुए सुना होगा कि हम बाकी सभी रिश्तों के साथ पैदा होते हैं, लेकिन दोस्ती ही एक मात्र रिश्ता है जिसे हम खुद बनाते हैं. बिलकुल सही बात है. दोस्त हम खुद बनाते हैं, कारण कई हैं. औपचारिक रूप से यह सिलसिला अमूमन स्कूल में एडमिशन के बाद शुरू हो जाता है, जो किशोरावस्था में थोड़ा तेज हो जाता है. उस समय हार्मोनल चेंज के साथ घरेलू रिश्ते में बदलाव दिखने लगता है. माता-पिता, भाई-बहन और अन्य रिश्तेदार से कहीं ज्यादा प्रगाढ़ता दोस्तों के साथ नजर आने लगती है. ऐसा कमोबेश सभी छात्र-छात्राओं के साथ होता है. शहरों-महानगरों में पढ़नेवाले विद्यार्थियों में यह चेंज काफी साफ़ नजर आता है. इसके एकाधिक सामाजिक-मनोवैज्ञानिक कारण हैं. कुछ लोग सहपाठी को दोस्त की संज्ञा दे देते हैं, पर हर सहपाठी दोस्त नहीं होता और न ही सब दोस्त सहपाठी. हां, यह पाया गया है कि कई सालों तक एक साथ पढ़ाई करने के कारण ज्यादातर दोस्त स्कूल-कॉलेज में ही बनते हैं और सबसे ज्यादा टिकाऊ और भरोसेमंद होते हैं. इसके पीछे का मनोविज्ञान भी साफ़ और सरल है. ऐसे तो दोस्ती का दायरा बहुआयामी होता है, तथापि आमतौर पर घर के लोगों के अलावे अधिकांश विद्यार्थी सबसे ज्यादा समय अपने दोस्तों के साथ बिताते हैं और यह उनकी स्वाभाविक इच्छा भी होती है. सिनेमा हॉल हो या मॉल या पिकनिक स्पॉट या स्पोर्ट्स स्टेडियम, हर जगह अपने दोस्तों के साथ विद्यार्थियों को देखना आम बात है. दरअसल, हर विद्यार्थी सामान्यतः अपनी हर छोटी-बड़ी बात पहले दोस्त से ही शेयर करता है. दोस्त नजदीक न भी हो तो करीब ही लगता है. कहते हैं कि एक मजबूत दोस्ती के लिए हर रोज बात करने या आसपास रहने की ज़रुरत नहीं होती. दोस्ती का यह संबंध जब तक दिल में जिंदा रहता है, दोस्ती बनी रहती है. दिलचस्प बात है कि हर विद्यार्थी किसी-न-किसी मामले में दूसरे से अलग होता है. कई मामलों में तो उनके मत बिलकुल भिन्न होते हैं, फिर भी वे एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त होते हैं. उनके बीच अमीरी-गरीबी, जाति-धर्म, भाषा-क्षेत्र जैसी कोई बात दीवार नहीं बन पाती है. तभी तो कई बार तकरार और छोटे-मोटे झगड़े के बाद भी उनकी दोस्ती मजबूत बनी रहती है. शायद वे जाने-अनजाने प्रख्यात अंग्रेजी कवि-नाटककार विलियम शेक्सपीयर की इस उक्ति को चरितार्थ करते हैं कि "एक दोस्त वो होता है जो आपको वैसे ही जानता है जैसे आप हैं, आपके बीते हुए कल को समझता है, आप जो बन गए हैं उसे स्वीकारता है और आपकी उन्नति में साथ होता है." लेकिन क्या सबका सबके साथ दोस्ती एक समान चलती है साल-दर-साल?
जरा सोचिए, बचपन से लेकर अबतक आपके जितने दोस्त बने, क्या सबके साथ आप आज भी जुड़े हुए हैं और वह भी उसी प्रगाढ़ता के साथ. नहीं न. कितने दोस्तों के नाम तक भूल गए होंगे और कुछ के चेहरे तक. इसका मतलब यह कि समय और परिस्थिति के साथ दोस्ती की परिभाषा और मायने भी कम या ज्यादा बदलते गए. लेकिन इस बीच कुछ दोस्त बराबर आपके साथ बने रहे. कभी मौका निकाल कर इस बात पर सोच-विचार जरुर करें. बहुत सारी बातें एकदम साफ़ हो जाएंगी. सकारात्मक दृष्टि से सोचें तो आप पायेंगे कि वही दोस्त रह गए और शायद आगे भी रहेंगे जो सच्चे दोस्त हैं. प्रसिद्ध लेखक विलीयम पेन सच्चे दोस्त को इन शब्दों में परिभाषित करते हैं- एक सच्चा दोस्त उचित सलाह देता है, तुरत मदद करता है, संयम से सब कुछ करता है, हिम्मत से आपकी रक्षा करता है तथा बिना बदले दोस्ती कायम रखता है. कहने का अभिप्राय यह कि सच्चा व अच्छा दोस्त ही आपके दर्द को अपना मानता है, आप पर विश्वास करता है, आपको अच्छाई से जोड़ता है और बिना किसी अपेक्षा के हर मौसम और मुसीबत में आपके साथ रहता है. इसके विपरीत दोस्ती के नाम पर कई विद्यार्थी सिर्फ अपना मतलब साधने का काम करते हैं. मतलब निकल गया तो फिर पहचानने से भी वे इनकार कर देते हैं. ऐसे लोग ही आपको गलत रास्ते पर ले जाते हैं. इससे अच्छे विद्यार्थियों को नाहक बहुत नुकसान होता है. महात्मा बुद्ध का तो इस विषय में स्पष्ट मत है कि "एक जंगली जानवर की अपेक्षा एक धूर्त एवं दुष्ट दोस्त से अधिक डरना चाहिए. जंगली जानवर तो सिर्फ आपके शरीर को नुकसान पहुंचाएगा, लेकिन एक बुरा दोस्त आपके माइंड को भी दूषित कर देगा." अतः सभी छात्र-छात्राओं को ऐसे कथित दोस्तों को पहचानने और उनसे सावधान रहने की सख्त जरुरत है. निसंदेह, जीवन में दोस्तों की बहुत अहमियत है, लेकिन सिर्फ सच्चे और अच्छे दोस्तों की, बेशक उनकी संख्या कुछ कम ही हो.
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और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.
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