- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ...
गलती करना या हो जाना असामान्य बात नहीं है. यह भी सामान्य बात है कि गलती करने पर माता-पिता, घर-बाहर के बड़े-बुजुर्ग, शिक्षक सहित कई लोग इस बाबत छात्र-छात्राओं को टोकते और रोकते हैं. उनका एक मात्र मकसद उन्हें सुधारने और सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करने का होता है. बहरहाल, कई विद्यार्थी अपनी गलती को देख नहीं पाते, किन्तु दूसरों की गलती उन्हें तुरत दिख जाती है. इतना ही नहीं, कई बार कुछ विद्यार्थी अपनी गलती को छुपाते हैं. किसी के बताने और गलती करते हुए पकड़े जाने के बाद भी बेवजह उसे सही ठहराने का प्रयास करते हैं या इसका दोष दूसरे पर डालने का पूरा प्रयास भी करते हैं. कुछ विद्यार्थी तो बारंबार गलती करते हैं. और-तो-और ऐसे विद्यार्थियों को एक गलती को बार-बार दोहराने की आदत हो जाती है, बावजूद इसके कि उन्हें पिछली गलती के लिए टोका गया था या चेतावनी दी गई थी या दंडित भी किया गया था. ऐसे विद्यार्थियों को देर-सबेर बड़ी समस्या से जूझना पड़ता है.
इसके विपरीत अच्छे विद्यार्थी "गलती की हो तो मानें भी" सिद्धांत पर चलते हैं. वे कभी भी न तो एरर ब्लाइंड होते हैं और न ही अहंकार से चालित. सतत सफलता की सीढ़ियां चढ़ते जाने वाले ऐसे विद्यार्थी गलती करने के मामले में कंजूस भी होते हैं और सॉरी बोलने में फ्रंट रनर. मजे की बात है कि ये लोग अपनी हर गलती से कुछ-न-कुछ सीखते हैं और अनुभव समृद्ध होते हैं. इससे उनमें सही-गलत की बेहतर समझ भी पैदा होती है. लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में सबसे अहम बात होती है उनका अपनी गलती को मन से स्वीकारना और भविष्य में उस गलती को न दोहराने का सकल्प लेना. आइए, गलती स्वीकारने और उससे सबक लेने के फायदे और गलती न स्वीकारने के नुकसान पर थोड़ा और गौर करते हैं.
दरअसल, अपनी गलती को स्वीकारने के एकाधिक फायदे हैं. सभी विद्यार्थी जानते हैं कि गलती स्वीकारने से दिल हल्का हो जाता है. अगर दंड आदि के भागी बने तब भी उसे सामान्य रूप से झेलने की शक्ति आ जाती है. कोई असहजता या अपराध बोध नहीं रहता. आगे कदम बढ़ाना मुश्किल नहीं होता और भविष्य में उनके कामयाब होने के चांस बढ़ जाते हैं. एक और अच्छी बात यह होती है कि झूठ बोलने और बहाने बनाने से भी बच जाते हैं. सोचनीय तथ्य है कि हम एक झूठ को छुपाने के लिए एक-के-बाद-एक कई झूठ बोलते हैं और खुद अपनी जिंदगी को सरलता से जटिलता की ओर ले जाते हैं और बाद में इसके दुष्परिणाम के भागी बनते हैं. हां, यहां इस बात को बिलकुल महत्व देने की जरुरत नहीं है कि गलती मानने से लोग क्या कहेंगे, कितना ताना मारेंगे आदि? उस समय केवल यह सोचना अच्छा होता है कि कैसे इस नकारात्मक स्थिति से निकल कर अध्ययन और सामान्य दिनचर्या के सकारात्मक माहौल को फिर से जीना शुरू करें.
गलती स्वीकारना वाकई हिम्मत का काम है. इससे विद्यार्थी का आत्मविश्वास कम होने की बजाय बढ़ता है. वे आगे वही गलती शायद ही कभी दोहराते हैं. इतना ही नहीं, वे पिछली गलती के कारण का विश्लेषण भी करते हैं. इससे उन्हें सीख मिलती है और आगे की कार्य योजना को बेहतर बनाने का अवसर मिलता है. ज्ञानीजनों का स्पष्ट मत है कि जो विद्यार्थी अपनी गलती को स्वीकार कर माफ़ी मांग लेता है और फिर उस गलती को सुधारने में लग जाता है, उसका जीवन पहले से ज्यादा अच्छा बनने लगता है. इस मानसिकता को बनाए रखना अच्छे गुणों से लैस होते जाने की गारंटी देता है. किशोरावस्था में गांधी जी के जीवन में घटी एक घटना एक प्रेरक मिसाल है, जिसमें गलती करने और फिर उसे अपने पिता जी को स्वयं बताने के साथ-साथ आगे गलती न करने के संकल्प का वर्णन है. अनेक अन्य महापुरुषों की आत्मकथा में ऐसे ही मिलते-जुलते प्रेरक प्रसंग मिलते हैं. चाणक्य सही कहते हैं कि जो व्यक्ति अपनी गलतियों के लिए स्वयं से लड़ता है, उसे कोई भी हरा नहीं सकता.
एकाधिक शोध और सर्वेक्षण बताते हैं कि जो विद्यार्थी अपनी गलती को छुपाने या अस्वीकार करने का प्रयास करते हैं, वे अंदर-ही-अंदर एक अनबुझ भय से ग्रसित हो जाते हैं. उनमें से कई तो अंदर-ही-अंदर घुटते रहते हैं, किसी से साफ़ तौर पर कह नहीं पाते और फिर पढ़ाई-लिखाई से उनका मन भटकता है. इस दौर में मन में कई तरह के नकारात्मक विचार आते हैं. इस सबका समेकित दुष्प्रभाव उनके स्वास्थ्य और परीक्षा फल पर पड़ता है. सार-संक्षेप यह कि जाने-अनजाने जब भी गलती हो, उसे तुरत स्वीकार करें, सॉरी बोलें और खुद में सुधार करते रहें.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 19.01.2020 अंक में प्रकाशित
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