- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ...
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सामान्यतः इंटरमीडिएट और 12वीं यानी प्लस-टू की परीक्षा के बाद विद्यार्थियों के लिए अपने कैरियर को ध्यान में रख कर उपयुक्त कोर्स चुनने का कठिन समय होता है. ऐसा देखा गया है कि साइंस के अच्छे विद्यार्थी पर मुख्यतः इंजीनियरिंग या मेडिकल में एडमिशन के लिए आंतरिक एवं बाहरी दवाब होता है और चाहे–अनचाहे वे इन्हीं दोनों कोर्स में से किसी एक में दाखिला लेने की कोशिश करते हैं. ऐसे पिछले कुछ वर्षों से विद्यार्थी एग्रीकल्चर साइंस और उससे जुड़े कई कोर्स में भी रूचि दिखा रहे हैं. इसके पीछे अधिकांश विद्यार्थी एवं उनके अभिभावकों की भावना मूलतः यह होती है कि एक बार इनमें से किसी कोर्स में एडमिशन हो गया तो नौकरी या अपना व्यवसाय अथवा प्रैक्टिस करके जीवन यापन करना आसान हो जाएगा. इंजीनियरिंग पढ़ने को इच्छुक विद्यार्थियों के लिए गौरतलब बात है कि आईआईटी, एनआईटी के साथ-साथ हजारों निजी और सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में परंपरागत कोर्स के अलावे अब इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग जैसे कोर्स की पढ़ाई हो रही है, क्यों कि देश-विदेश के रोजगार बाजार में इनकी अच्छी मांग है. इसी तरह मेडिकल की पढ़ाई के मामले में भी नए-नए कोर्स शामिल हो रहे हैं. विद्यार्थी पैरामेडिकल साइंस से जुड़े कई कोर्स में दाखिला ले सकते हैं, जिनका चिकित्सा क्षेत्र में अच्छी उपयोगिता है और आगे इसमें रोजगार की संभावना काफी बढ़नेवाली है.
कॉमर्स और आर्ट्स के अच्छे विद्यार्थी चार्टर्ड एकाउंटेंसी, कॉस्ट एकाउंटेंसी आदि को चुनते हैं और तदनुरूप कोशिश करते हैं. ऐसे साइंस, कॉमर्स और आर्ट्स के अधिकांश विद्यार्थी बीएससी, बीए, बीकॉम जैसे पारम्परिक कोर्सों में एडमिशन के लिए प्रयास करते देखे गए हैं. उन सभी विद्यार्थियों के लिए बीबीए (बैचलर इन बिज़नस एडमिनिस्ट्रेशन), बीसीए (बैचलर इन कंप्यूटर एप्लीकेशन), होटल मैनेजमेंट, फोटोग्राफी, इवेंट मैनेजमेंट, जर्नलिज्म जैसे कई और विकल्प मौजूद हैं. भारत सरकार के डिजिटल पहल के साथ ही उससे संबंधित क्षेत्र रोजगार के नए द्वार खोल रहे हैं और विद्यार्थियों के पास उससे जुड़े विभिन्न कोर्स की पढ़ाई कर नौकरी व रोजगार पाने का मौका है.
कहना न होगा, निम्न एवं मध्यम आय वर्ग के परिवारों के लड़के-लड़कियां औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद एक अच्छी नौकरी की चाहत रखते हैं. लेकिन नौकरी के आज के बाजार में सिर्फ परंपरागत स्नातक या स्नातकोत्तर डिग्री के बूते मनचाही नौकरी पाना आसान नहीं है. देश में शिक्षित बेरोजगारों से संबंधित आंकड़े भी बताते हैं कि परंपरागत कोर्सों में अच्छे अंक या ग्रेड के साथ उत्तीर्ण होने के बावजूद ऐसे विद्यार्थियों में से अनेक या तो बेरोजगार हैं या कोई ऐसी-वैसी नौकरी कर रहे हैं जिनका उनकी डिग्री से कोई प्रत्यक्ष वास्ता नहीं होता है, जब कि ऐसी डिग्रियां अर्जित करने में काफी वक्त एवं मोटी रकम खरचने पड़ते हैं. यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि व्यापार एवं उद्योग की बदलती जरूरतों के लिहाज से ऐसे कई कोर्स विभिन्न शिक्षण संस्थानों तथा स्किल डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट में अब उपलब्ध हैं जिन्हें नौकरी के बाजार में अपेक्षाकृत ज्यादा अहमियत दी जा रही है. देखा जा रहा है कि नियोक्ता के तौर पर आजकल निजी क्षेत्र की कम्पनियां आम तौर पर ऐसे उम्मीदवार को तरजीह देते हैं जिनका एकेडमिक बैकग्राउंड तो ठीक-ठाक हो, साथ ही जो नयी चीजें सीखने तथा चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए तत्पर रहे. कारण, ऐसे नए कर्मियों को तीन से बारह माह की अवधि का उपयुक्त ऑन-द-जॉब ट्रेनिंग देकर दक्ष बनाना आसान होता है. अतः यह आवश्यक है कि विद्यार्थी अभी से अपने एकेडमिक कोर्स के चयन के साथ-साथ अपने जॉब / बिज़नेस कैरियर की प्लानिंग को भी यथोचित महत्व दें.
कहते हैं न कि जानकारी समाधान तक पहुंचने का एक अहम जरिया है. लिहाजा, नए भारत के निर्माण के मौजूदा दौर में विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों को इस बात पर भी गंभीरता से विचार करना पड़ेगा कि नौकरी के अलावा स्व-रोजगार के निरंतर बढ़ती संभावनाओं को ध्यान में रखकर विद्यार्थी कोर्स का चुनाव करें. अगर नौकरी और स्व-रोजगार दोनों के दरवाजे खुले रखने हैं तो यह मुनासिब होगा कि विद्यार्थी वैसे कोर्स में दाखिला लें, जिससे बाद में दोनों को साधने की संभावना बनी रहे. दोस्तों के देखा-देखी किसी भी कोर्स को चुनना और आगे चार-पांच साल व्यतीत करना, समय और पैसे दोनों की बर्बादी है. निराशा और तनाव जो झेलना पड़ेगा, सो अलग. अभिभावकों और शिक्षकों से भी विद्यार्थियों के साथ विचार-विमर्श करने और उनका उचित मार्गदर्शन करने की अपेक्षा स्वाभाविक है. (hellomilansinha@gmail.com)
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