- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर...
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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वास्तव में हमारे युवाओं, खासकर विद्यार्थियों को सुबह से शाम तक तनाव से परेशान देखना आम बात हो गई है. यह सही है क्यों कि निरंतर बढ़ते प्रतिस्पर्धा के मौजूदा दौर में उनके लिए अपेक्षा, उत्पादकता, आनंद आदि के बीच तालमेल बिठाना कठिनतर होता जा रहा है. परिणामस्वरूप, वे अक्सर थके-हारे, मायूस और अस्वस्थ नजर आते हैं. इससे उनका उत्साह, आत्मविश्वास और उत्पादकता तो प्रभावित होता है, इसका नकारात्मक असर पारिवारिक सुख-शान्ति पर भी पड़ता है.
दरअसल, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो तनावग्रस्त रहने और उसी अवस्था में कार्य करते रहने की बाध्यता के कारण ऐसे युवा तनाव-जनित अनेक बीमारियों के शिकार भी हो रहे हैं, और वह भी बड़ी संख्या में. इन बीमारियों में सिरदर्द, माइग्रेन, डिप्रेशन से लेकर ह्रदय रोग, मधुमेह, कैंसर आदि शामिल हैं. स्वाभाविक तौर पर यह किसी भी व्यक्ति और उनके परिवार के लिए सुखद स्थिति नहीं कही जा सकती. तो फिर सवाल है कि बिना किसी डॉक्टर के पास गए और बिना दवाइयों के सेवन के इस स्थिति से कैसे पार पाया जाय.
जोर देने की जरुरत नहीं कि इन सभी स्वास्थ्य समस्याओं का एक मात्र सटीक समाधान हमें योग से जुड़ कर मिल सकता है. योग के विषय में विश्व प्रसिद्ध ‘बिहार योग विद्द्यालय, मुंगेर’ के संस्थापक स्वामी सत्यानन्द सरस्वती ने बहुत सही कहा है, “योग मानवता की प्राचीन पूंजी है, मानव द्वारा संग्रहित सबसे बहुमूल्य खजाना है. मनुष्य तीन वस्तुओं से बना है – शरीर, मन व आत्मा. अपने शरीर पर नियंत्रण, मन पर नियंत्रण और अपने अन्तरात्मा की आवाज को पहचानना – इस प्रकार शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक इन तीनों अवस्थाओं का संतुलन ही योग है. योग एक ऐसा रास्ता है, जो मनुष्य को स्वयं को पहचानने में मदद करता है. मानव शरीर को स्वस्थ और निरोग बनाता है एवं मनुष्य को बाहरी तनावों, शारीरिक विकारों से मुक्ति दिलाता है जो मनुष्य की स्वाभाविक क्रियाओं में अवरोध उत्पन्न करते हैं. योग द्वारा मनुष्य अपने मन तथा व्यक्तित्व की अवस्थाएं तथा दोषों का सामना करता है. यह मनुष्य को उसके संकुचित और निम्न विचारों से मुक्ति दिलाता है... …”
कहने का अभिप्राय यह कि योग अर्थात आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि का विज्ञान कहता है कि हम योग से जुड़कर अपने शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षमताओं के बीच बेहतर संतुलन कायम कर न केवल खुद को आज और भविष्य में भी ज्यादा स्वस्थ, उत्पादक और खुश रख सकते हैं, बल्कि अपने परिवारजनों को सही रूप में योग से जुड़ने और उसके असीमित सकारात्मक पहलुओं को जानने –समझने को प्रेरित कर सकते हैं. इस तरह हम खुद के अलावे अपने परिवार, समाज और देश को सही अर्थों में मजबूत, समर्थ, संपन्न और खुशहाल बना सकते हैं.
हां, इसे मूर्तरूप देने के लिए स्वामी विवेकानन्द के इस कथन कि “सब शक्ति हमारे अन्दर है. हम सब कुछ कर सकते हैं” पर पूर्ण विश्वास करते हुए पूरी आस्था और निष्ठा से किसी योग्य प्रशिक्षक की देखरेख में योगाभ्यास प्रारंभ करना मुनासिब होगा.
सूर्योदय के आसपास शौच आदि से निवृत होकर पहले आसन, फिर प्राणायाम और अंत में ध्यान – इस क्रम में पूरे योगाभ्यास को 30-40 मिनट में भी पूरा किया जा सकता है.
आसन में पवनमुक्तासन से शुरू करके सूर्य नमस्कार तक की क्रिया की जा सकती है. सच कहें तो सूर्य नमस्कार का 8-10 राउंड अपने-आप में सम्पूर्ण आसन अर्थात व्यायाम है. इसके विकल्प के रूप में कुछ देर के सामान्य वार्मअप एक्सरसाइज के बाद पवनमुक्तासन श्रेणी के चार-पांच आसन जैसे ताड़ासन, कटि-चक्रासन, भुजंगासन, शशांकासन, नौकासन नियमित रुप से करें, तब भी अपेक्षित लाभ मिलेगा.
प्राणायाम यानी ब्रीदिंग एक्सरसाइज में अनुलोम-विलोम, कपालभाती, उज्जायी, शीतली और भ्रामरी से शुरू कर सकते हैं. इसके बाद ध्यान मुद्रा यानी मेडिटेशन में कम-से-कम 5-10 मिनट बैठें.
संक्षेप में कहें तो 10-15 मिनट का आसन, 10-15 मिनट का प्राणायाम और 5-10 का ध्यान अगर नियमितता, तन्मयता और निष्ठा से करें तो अप्रत्याशित लाभ के हकदार बनेंगे. (hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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