Sunday, December 16, 2018

मोटिवेशन : अच्छाई और सच्चाई में है सफलता का राज

                                                  - मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एवं लेखक 
देश-विदेश सब जगह अच्छाई और सच्चाई के साथ जीनेवाले लोगों की संख्या अच्छी-खासी है. वे मेहनत से पीछे नहीं हटते. संघर्ष को वे साथी मानते हैं और अपनी स्थिति को मजबूत करने का सतत प्रयास करते हैं. शार्ट-कट में उनका विश्वास नहीं होता. वे जीवन को एक खूबसूरत यात्रा समझते हैं. यात्रा के उतार –चढ़ाव, आसानी-परेशानी, सफलता-असफलता और ख़ुशी–गम के बीच से तमाम अनुभूतियों–अनुभवों को समेटते हुए जीवन पथ पर आगे बढ़ते रहते हैं. वे जानते और मानते हैं कि हर रात के बाद एक नई सुबह आती है, आशा और उमंग का संचार करती है. उनके जीवन में जो भी चुनौतियां आती हैं उसका समाधान पाने में वे पूरे सामर्थ्य से लग जाते हैं. वे असफलता को सिर पर रखते हैं और सफलता को दिल में. वे जानते हैं कि असफलता का निरपेक्ष विश्लेषण करके उसके पीछे के कारणों को बेहतर ढंग से जानना संभव होता है और आगे की कार्ययोजना में उन सीखों को इस्तेमाल करना सर्वथा अपेक्षित और बेहतर होता है.  

हर मनुष्य के जीवन में कभी–न-कभी कोई बड़ी समस्या आती है, कई बार तो बार-बार आती है; छोटे-छोटे अंतराल में आती रहती है, उस समय ऐसे लोग उत्तेजित, क्रोधित, आतंकित या भयभीत होने के बजाय ज्यादा शांत रहने का प्रयत्न करते हैं. 

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि समस्या आने पर जब हम विचलित, असंतुलित व असामान्य हो जाते हैं तब उस समस्या को सुलझाने की हमारी शक्ति कम हो जाती है, कारण ऐसे वक्त मन-मस्तिष्क में उलझन का जाल मजबूत हो जाता है और समाधान आसान होने पर भी नामुमकिन प्रतीत होने लगता है. इसके विपरीत, थोड़ी देर शांत रहने और फिर समस्याविशेष का नए सिरे से विश्लेषण करने एवं उसका समाधान तलाशने की कोशिश करने  पर हमें अधिकांश मौके पर सफलता हाथ लगती है. ऐसा इसलिए भी कि समस्या कैसी भी हो, उसका कोई-न-कोई समाधान तो उपलब्ध होता ही है. और फिर अपने जीवन की समीक्षा करने पर जब वे पाते हैं कि जीवन में असफलताओं से अधिक सफलताएं मिली है तो उसे याद कर खुश हो जाते हैं, उत्साह-उमंग से भर जाते हैं. 

यह भी देखने-सुनने में आता है कि पुरजोर कोशिश करने के बावजूद कई लोग अनबुझ कारणों से बार-बार हारते रहते हैं. लेकिन वे हार नहीं मानते और कोशिश का दामन नहीं छोड़ते, क्यों कि ऐसे लोग मानते हैं कि कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती. ऐसे लोग उस कठिन समय में महान आविष्कारक थॉमस अल्वा एडिसन जैसे महान लोगों को याद कर प्रेरित होते हैं. कारण यह है कि एडिसन को बिजली के बल्ब का आविष्कार से पहले हजारों बार असफलता का सामना करना पड़ा था. लेकिन जब किसी ने उनसे इस बाबत पूछा कि आप अपनी हजारों असफलता को कैसे देखते हैं तो एडिसन का उत्तर कम प्रेरणादायी नहीं था. उन्होंने कहा कि मैंने बल्ब के आविष्कार के क्रम में हजारों बार प्रयोग किये जिसका परिणाम बस अनुकूल नहीं रहा. सच है, सफलता और खुशी दोनों ही अच्छाई और सच्चाई के साथ कोशिश करनेवालों के पीछे-पीछे चलती रहती है.     (hellomilansinha@gmail.com) 

                 और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
# दैनिक जागरण में 16.12.18 को प्रकाशित

#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com  

Sunday, December 9, 2018

आत्मविश्वास से मिलेगी मंजिल, बढ़ते रहें आगे

                                  - मिलन  सिन्हामोटिवेशनल स्पीकर एवं स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ...
ऐसे तो आजकल हर उम्र का आदमी तनाव से थोड़ा या ज्यादा परेशान दिखता है. लेकिन तेज रफ़्तार जिंदगी में ‘यह दिल मांगे मोर’ की अपेक्षा के साथ जीनेवाले लोगों में तनाव का स्तर कुछ ज्यादा ही होता है. वैसे देखा जाए तो तनाव से आदमी का रिश्ता कोई नया नहीं है. समय के हर दौर में लोग कम या अधिक तनाव से ग्रसित रहे हैं, खासकर वे लोग जो अवैध, अनैतिक एवं अवांछित तरीके से सिर्फ अपना मतलब साधने में विश्वास करते हैं. 

बहरहाल, परीक्षा के मौसम में स्कूली बच्चे एवं युवा तनाव से कुछ ज्यादा ही परेशान रहते हैं.  ऐसे समय डर एवं आशंका के कारण तनाव में इजाफा होता है. इसके कई कारण हैं- वास्तविक एवं काल्पनिक दोनों. तनाव की इस अवस्था में उनकी सहजता, सरलता एवं स्वभाविकता दुष्प्रभावित होती है. उलझन, परेशानी और तनाव अनावश्यक रूप से बढ़ जाते हैं. अधिकतर मामलों में अभिभावक–शिक्षक या प्रियजन इसे ठीक से समझ नहीं पाते हैं या समझकर भी तत्काल बच्चे से खुलकर बात नहीं करते. ऐसे में  बच्चे का कॉनफ्यूज़न बढ़ता जाता है. कई बार तो अपनी भावनाओं और परेशानियों को साझा करना संभव नहीं दिखता. तब बच्चे अपने-आप को असहाय, अकेला और लाचार समझने लगते हैं. और कभी-कभी तो कई तरह के आत्मघाती फैसला कर लेते हैं. 

सवाल है कि आखिर इस तरह की स्थिति से बच्चे कैसे बचें और उबरें जिससे  चुनौतियों का डटकर सामना कर सकें, परीक्षा में बेहतर कर सकें?  

जानकार मानते हैं कि थोड़ा तनाव तो अच्छा होता है; एक ड्राइविंग फ़ोर्स की तरह काम करता है जो हमें थोड़ी तीव्रता से कुछ करने को प्रेरित करता है. ऐसे समय शरीर के सारे अंग कुछ ज्यादा सक्रियता एवं नियोजित ढंग से काम को अंजाम देने में जुट जाते हैं. हम असहज या असामान्य होने के बजाय सहज और सामान्य तरीके से कुछ ज्यादा फोकस होकर काम करते हैं क्यों कि पूरा ध्यान लक्ष्य को प्राप्त करने में लगा रहता है. मजे की बात यह कि इस तरह का तनाव अल्पकालिक होता है और काम  के पूरा होने या सफल होने पर ज्यादा ख़ुशी का एहसास भी करवाता है. 

हां, बराबर तनाव ग्रस्त रहना वाकई चिंता का विषय है, वो भी परीक्षा के समय. लिहाजा, तनाव के मूल कारण को जानने–समझने का प्रयास करें और फिर चिंता छोड़कर अपेक्षा प्रबंधन, प्राथमिकता निर्धारण, समय प्रबंधन, योजनाबद्ध तैयारी, नियमित अभ्यास के साथ ही आकस्मिक परिस्थिति एवं परिवर्तन को दिल से स्वीकार करते हुए आगे बढ़ने की यथासाध्य कोशिश करें. इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा और तनाव भी बहुत कम होगा. परीक्षा के समय अपनी सामान्य दिनचर्या को तिलांजलि न देकर अपने खाने-सोने आदि को भी यथासंभव ठीक रखें. इससे आपका शरीर उस महत्वपूर्ण समय में यथोचित उर्जा और उत्साह से लबरेज रहेगा. एक बात और. जब भी जरुरत महसूस हो तो सोशल मीडिया में समाधान तलाशने के बजाय अपने अभिभावक-शिक्षक–गुरुजन से अपनी परेशानी साझा करें और उनके सुझावों पर अमल करें. बहुत लाभ होगा.       (hellomilansinha@gmail.com) 


                      और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
# दैनिक जागरण में 09.12.18 को प्रकाशित

#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com