-मिलन सिन्हा, योग विशेषज्ञ एवं मोटिवेशनल स्पीकर
विश्वभर के 170 से ज्यादा देश आज (21 जून) चौथा “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” मना रहे हैं. स्वभाविक रूप से हमारे लिए यह उत्सव और गौरव का दिन है. देश के हर हिस्से में हर उम्र के लोग आज इस योग उत्सव में शामिल होंगे. दरअसल, आज तेज रफ़्तार जिन्दगी में तमाम दुश्वारियों और उससे जुड़े अनेकानेक रोगों से जूझते करोड़ों लोगों के स्वस्थ और सानंद रहने का सरल एवं सुगम समाधान तो योग से जुड़ कर ही प्राप्त किया जा सकता है. आज इस अवसर पर कुछ प्रमुख रोगों के लिए उपयुक्त योगाभ्यासों के विषय में जानते हैं:
1.रोग: मानसिक तनाव (स्ट्रेस)
उपयुक्त योगक्रिया: भ्रामरी प्राणायाम
विधि: किसी भी आरामदायक आसन जैसे सुखासन, अर्धपद्मासन में सीधा बैठ जाएं. शरीर को ढीला छोड़ दें. आँख बंद कर लें. अब प्रथम अंगुलियों (तर्जनी) से दोनों कान बंद कर लें. दीर्घ श्वास लें और भंवरे की तरह ध्वनि करते हुए मस्तिष्क में इन ध्वनि तरंगों का अनुभव करें. यह एक आवृत्ति है . इसे 5 आवृत्तियों से शुरू कर यथासाध्य रोज बढ़ाते रहें.
अवधि: रोजाना 5-10 मिनट
लाभ: यह प्राणायाम मस्तिष्क की कोशिकाओं को सक्रिय करता है; गले में स्पंदन पैदा करता है जिससे गले के सामान्य रोगों में लाभ तो मिलता ही है, स्वर में मधुरता भी लाता है. क्रोध, दुश्चिंता, उच्च रक्तचाप आदि में भी लाभकारी.
2.रोग: मधुमेह (डायबिटीज)
उपयुक्त योगक्रिया: पश्चिमोत्तानासन
विधि: दोनों हथेलियों को जांघ पर रखते हुए पांवों को सामने फैला कर सीधा बैठ जाएं. श्वास छोड़ते हुए सिर को धीरे-धीरे आगे की ओर झुकाते हुए हाथ की अँगुलियों से पैर के अंगूठों को पकड़ने की कोशिश करें और माथे को घुटने से स्पर्श करने दें. शुरू में जितना झुक सकते हैं, उतना ही झुकें. अंतिम स्थिति में जितनी देर रह सकें, रहें और फिर श्वास लेते हुए प्रथम अवस्था में लौटें. इसे 5-10 बार करें.
अवधि: रोजाना 5-8 मिनट
सावधानी: पीठ दर्द, साइटिका और उदार रोग से पीड़ित लोग इसे न करें.
लाभ: इससे उदर-संस्थान के सभी अंगों की क्रियाशीलता बढ़ती है; मेरुदंड की नसों और मांसपेशियों में खून के प्रवाह में सुधर होता है; पेट के आसपास की चर्बी घटती है. गुर्दे और श्वसन संबंधी रोगों में भी इस आसन का सकारात्मक असर होता है.
3.रोग: ह्रदय रोग
उपयुक्त योगक्रिया: उज्जायी प्राणायाम
विधि: आराम के किसी भी आसन में सीधा बैठ जाएं. शरीर को ढीला छोड़ दें. अपने जीभ को मुंह में पीछे की ओर इस भांति मोड़ें कि उसके अगले भाग का स्पर्श ऊपरी तालू से हो. अब गले में स्थित स्वरयंत्र को संकुचित करते हुए मुंह से श्वसन करें और अनुभव करें कि श्वास क्रिया नाक से नहीं, बल्कि गले से संपन्न हो रहा है. ध्यान रहे कि श्वास क्रिया गहरी, पर धीमी हो. इसे 10-20 बार करें.
अवधि: रोजाना 5-8 मिनट
लाभ: इस योग क्रिया से ह्रदय की गति संतुलित रहती है; पूरे नर्वस सिस्टम पर गहरा सकारात्मक असर पड़ता है; मन-मानस को शांत करके अनिद्रा से परेशान लोगों को राहत देता है. ध्यान के अभ्यासियों के लिए बहुत ही फायदेमंद.
4.रोग: पीठ व कमर दर्द (बेक पेन)
उपयुक्त योगक्रिया: भुजंगासन
विधि: पांव को सीधा करके पेट के बल लेट जाएं. माथे को जमीन से सटने दें. हथेलियों को कंधे के नीचे जमीन पर रखें. अब श्वास लेते हुए धीरे-धीरे सिर तथा कंधे को हाथों के सहारे जमीन से ऊपर उठाइए. सर और कंधे को जितना पीछे की ओर ले जा सकें, ले जाएं. ऐसा लगे कि सांप अपना फन उठाये हुए है. श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे वापस प्रथम अवस्था में लौटें. इसे 5-10 बार दोहरायें.
अवधि: रोजाना 5 मिनट
सावधानी: हर्निया, आंत संबंधी रोग से ग्रसित लोग इसे न करें.
लाभ: इसके एकाधिक लाभ हैं. इससे अभ्यास से मेरुदंड लचीला और मजबूत होता है; पेट, किडनी, लीवर आदि ज्यादा सक्रिय होते हैं; महिलाओं के प्रजनन संबंधी तकलीफों को दूर करने में मदद मिलती है. यह आसन कब्ज को दूर करने और भूख को बढाने में भी असरकारी है.
5.रोग: गुर्दा (किडनी) रोग
उपयुक्त योगक्रिया: शशांक आसन
विधि: वज्रासन यानी घुटनों के बल पंजों को फैला कर सीधा ऐसे बैठें कि घुटने पास-पास एवं एड़ियां अलग-अलग रहे. हथेलियों को घुटनों पर रखें. श्वास लेते हुए धीरे-धीरे हांथों को ऊपर उठाएं. अब श्वास छोड़ते हुए धड़ को सामने पूरी तरह झुकाएं जिससे कि माथा और सामने फैले हाथ जमीन को स्पर्श करें. श्वास लेते हुए धीरे-धीरे प्रथम अवस्था में लौटें. इसे रोजाना 10 बार करें.
अवधि: रोजाना 6-8 मिनट
सावधानी: स्लिप डिस्क से पीड़ित लोग इसका अभ्यास न करें.
लाभ: इससे एड्रिनल ग्रंथि की क्रियाशीलता में सुधर होता है; मूलाधार चक्र को जागृत करने में सहायता मिलती है; कब्ज की समस्या में लाभ पहुंचता है; कुल्हे और उसके आसपास की मांशपेशियों को सामान्य बनाए रखने में सहायता मिलती है.
6.रोग: सर दर्द, माइग्रेन
उपयुक्त योगक्रिया: अनुलोम-विलोम
विधि: वज्रासन को छोड़ आराम के किसी भी आसन में सीधा बैठ जाएं. शरीर को ढीला छोड़ दें. हाथों को घुटने पर रख लें. आँख बंद कर लें और सारा ध्यान श्वास पर केन्द्रित करें. अब दाहिने हाथ के प्रथम और द्वितीय (तर्जनी तथा मध्यमा) अंगुलियों को ललाट के मध्य बिंदु पर रखें और तीसरी अंगुली (अनामिका) को नाक के बायीं छिद्र के पास और अंगूठे को दाहिने छिद्र के पास रखें. अब अंगूठे से दाहिने छिद्र को बंद कर बाएं छिद्र से दीर्घ श्वास लें और फिर अनामिका से बाएं छिद्र को बंद करते हुए दाहिने छिद्र से श्वास को छोड़ें. इसी भांति अब दाहिने छिद्र से श्वास लेकर बाएं से छोड़ें. यह एक आवृत्ति है. इसे कम–से-कम 10-15 बार करें.
अवधि: रोजाना 5-7 मिनट
लाभ: नाड़ी शोधन प्राणायाम का यह सबसे सरल अभ्यास है. इससे शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़ता है और कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का निष्कासन होता है; रक्त शुद्ध होता है; मस्तिष्क की कोशिकाएं सक्रिय होती है जिससे ब्रेन बेहतर रूप में कार्य करता है; मन–मानस को शान्ति मिलती है और मानसिक तनाव भी कम होता है.
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और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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